Text of PM’s speech at inauguration of global Patidar business summit in Gujarat


नमस्‍ते,


गुजरात के लोकप्रिय मुख्‍यमंत्री श्री भूपेंद्र भाई पटेल, केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी मनसुख भाई, पुरुषोत्तम रूपाला, अनुप्रिया जी, गुजरात भाजपा के अध्‍यक्ष सी आर पाटिल, सरदार धाम के प्रमुख सेवक श्री गगजी भाई सुतारिया, पाटीदार समाज के सभी वरिष्‍ठ जन, देश-विदेश से आए सभी अतिथिगण, उदयोग जगत के साथी, देवियो और सज्‍जनों।


वैसे आज का कार्यक्रम ऐसा है कि गुजरात की सरकार और गुजरात भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह आपके बीच होती। लेकिन आज एक कार्यक्रम का क्‍लैश हो गया। हमारे राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष भी आज अहमदाबाद में हैं तो उनका भी एक बहुत बड़ा कार्यक्रम सभी सांसद और विधायक और मंत्रियों के साथ है। तो मैंने कहा, चलिए मैं जा रहा हूं, मैं संभाल लूंगा। तो वो सब दुविधा में थे लेकिन मैंने उनसे कहा कि मैं जाऊंगा, चिंता मत कीजिए, आप अपना कार्यक्रम करते रहिए।


मुझे खुशी हुई बहुत सारे परिचित चेहरे मैं मेरे सामने देख रहा हूं। हम सब जानते हैं कि दुनिया के सबसे तेजी से विकसित हो रहे शहरों में एक शहर सूरत है और आप सब आज सूरत में बैठ करके नए संकल्‍प ले रहे हैं। आप सबका बहुत-बहुत अभिनंदन। कुछ महीने के अंतराल में सरदार धाम से जुड़े साथियों, देश-दुनिया में गुजरात और भारत के गौरव को बढ़ाने वाले आप सभी बहनों-भाइयों को फिर से मुझे मिलने का मौका मिला है। ये गुजरात के प्रति और भारत के प्रति हमारे साझा संकल्‍पों, साझा प्रतिबद्धता का ही प्रमाण है।


साथियो,


देश को जब नई-नई आजादी मिली थी तो आजादी के प्रारंभिक दिन थे और उस समय सरदार साहब ने जो कहा था और उन मुश्किल भरे हालात में सरदार साहब के शब्‍दों की ताकत देखिए। उन्‍होंने कहा था, ‘भारत में संपदा की, वेल्‍थ की कोई कमी नहीं है। हमें बस अपने दिमाग, अपने संसाधनों को इनके सदुपयोग के लिए लगाना होगा।’ मैं कहता हूं कि आज़ादी के मुकाबले में आने वाले 25 सालों के लिए जब हम एक संकल्प के साथ निकले हैं, तो सरदार साहब की इस बात को हमने कभी भूलना नहीं चाहिए। आज भारत के पास इतना कुछ है। हमें बस अपने आत्मविश्वास को, आत्मनिर्भरता के अपने जज्बे को मज़बूत करना है। ये आत्मविश्वास तभी आएगा जब विकास में सबकी भागीदारी होगी, सबका प्रयास लगेगा।


साथियों,


बीते 8 सालों में देश में बिजनेस का, उद्यम का, क्रिएटिविटी का एक नया विश्‍वास जगाने का प्रयास किया जा रहा है। अपनी नीतियों, अपने एक्शन के माध्यम से सरकार का निरंतर प्रयास है कि देश में ऐसा माहौल बने कि सामान्य से सामान्य परिवार का युवा भी entrepreneur बने, उसके सपने देखे, वो entrepreneurship पर गर्व करे।


Make in India, Make for the world- इसको नए भारत की नई संस्कृति बनाने के लिए मैं समझता हूं, काम किया जा रहा है। इसलिए आधुनिक कनेक्टिविटी के इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास, नए शहरों के निर्माण, पुराने शहरों में स्मार्ट सुविधाएं विकसित करने, नियमों, कायदों, दस्तावेजों, कंप्लायेंसेंस के बोझ से देश को मुक्त करने, और इनोवेशन की, आइडिया की हैंडहोल्डिंग, ऐसे सभी कामों पर एक साथ काम किया जा रहा है।


साथियों,


मुद्रा योजना आज देश के उन लोगों को भी अपना बिजनेस करने का हौसला दे रही है, जो कभी इसके बारे में सोचते भी नहीं थे। स्टार्ट अप इंडिया से वो इनोवेशन, वो टैलेंट भी आज यूनिकॉर्न के सपने साकार होते देख रहा है, जिसको कभी रास्ता नहीं दिखता था। Production linked incentive यानि PLI योजना ने पुराने सेक्टरों में तो मेक इन इंडिया का उत्साह तो भरा ही है, सेमीकंडक्टर जैसे नए सेक्टर्स के विकास की संभावनाएं भी उभर करके सामने आ रही हैं।


अब देखिए, कोरोनाकाल की अभूतपूर्व चुनौतियों के बावजूद देश में MSME सेक्टर आज तेज़ी से विकास कर रहा है। लाखों करोड़ रुपए की मदद देकर MSMEs से जुड़े करोड़ों रोज़गार बचाए गए और आज ये सेक्टर नए रोज़गार का तेज़ी से निर्माण कर रहा है। यहां तक कि रेहड़ी-ठेले जैसा बहुत छोटा व्यापार-कारोबार करने वाला देशवासी भी आज भारत की ग्रोथ स्टोरी से अपने-आपको जुड़ा महसूस करता है। पहली बार उसको भी पीएम स्वनिधि योजना से फॉर्मल बैंकिंग सिस्टम में भागीदारी मिली है। हाल ही में हमारी सरकार ने इस योजना को दिसंबर 2024 तक के लिए extend कर दिया है।


साथियों,


छोटे से बड़े, हर व्यवसाय, हर कारोबार का देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। सबका प्रयास की यही भावना तो अमृत काल में नए भारत की ताकत बन रही है। मुझे खुशी है कि इस बार की समिट में आप इस विषय पर विस्तार से चर्चा कर रहे हैं।


जब सुरत के लोगों को मिल रहा हूँ, और इतनी बड़ी मात्रा में देश-विदेश से लोग आये हो, और अभी गगजीभाई भावुक होकर विस्तार से जो वर्णन कर रहे थे, एक नई आशा और उमंग जगाई, ऐसी बातें हमेंशा से गगजीभाई के पास होती है। आप गगजीभाई के साथ बात करें तो निराशा का कोई नाम नहीं होता। हमेंशा कुछ नया करने की बात, शायद गगजीभाई का स्वभाव ही बन गया है, और समाज के लिए करना, खुद को मिटा के करना, और इसके कारण ही ये सभी काम में सफलता मिलती है। और अब जब मैं आप सब के बीच मन को खोलकर बात कर रहा हुं, तब हमें विचार करना पड़ता है कि, सिर्फ जमीन लेनी और बेचनी,,,सब हसने लगे हैं, कोई काम करे उसमें मुझे कोई दिक्कत नहीं है, परंतु क्या हमें यही करना है। फिर बड़ी- बड़ी योजनाएँ, बडी-बडी स्कीमें, इतने फ्लैट बनाएगें, इतने बंगले बनाएंगे, चलो ये भी एक काम है। हीरे की दुनिया में हम हीरो बन गयें, लेकिन आज मैं आपको कुछ अलग क्षेत्र में ले जाना चाहता हूँ। और मुझे विश्वास है कि, गगजीभाई मुझे समझते है, इसलिए गगजीभाई मुझे बराबर पकड़ेंगे। भले ही हम सब ये समिट दो साल में करते हो, परंतु मेरा एक विचार है कि गगजीभाई 10-15 ग्रुप बनाईये, समाज के और उसमें 25-30 प्रतिशत बुजुर्ग हो, जो अनुभवी है, और 40-50 प्रतिशत जोशीले युवा हो, जिन्हें नई दुनिया के बारे में खबर है। और उनको अलग-अलग विषय बांट दो, कि भाई बताओ इस विषय में हमको गुजरात को, भारत को आगे बढाना हो, तो दुनिया में क्या है, उसके लिए रो-मटिरियल्स का क्या है, मार्केट का क्या है, सरकार की नितीओं में क्या दिक्कत हो सकती है। इसका बराबर एक विषय लेकर काम करें। और सरकार को भी आपका जो छोटा ग्रुप हो, वह सरकार की नीतियों को बनाने के लिए डोक्युमेन्टेन्स करे, चीजें दे, और वे बताएं हमको इस रास्ते पर अगर आगे बढना हो, तो इस निती में यह कमी है। उसका विचार हो, फिर एक सरल डोक्युमेन्टेन्स करें बैंकिंग के लिए, बैंकिंग इन सब चीजों में आगे आती नहीं, मुझे पता है, हमारे यहां हर सप्ताह डायमंड़ वाले आकर शिकायत करते है, हर सप्ताह बैंकिंग वाले आकर शिकायत करते है, कि नामा लिख दिया है, कुछ करो हमारा, तो नीतियों में क्या गलती है, प्रायोरिटी के प्रश्न कहां खड़े होते है। इसी तरह फिनटेक पूरा कारोबार फायनान्स की दुनिया में टेक्नोलोजी, ऐसे अलग-अलग विषय पर हम निर्णय ले के इस बार दस विषय करना है। दस विषयों में बाहर के एक्सपर्ट को भी ले, अकैदेमिकान्सअनेक, किसी भी चीज में ग्लोबल स्टार्न्ड का ही विचार करना है, उससे छोटा सोचना ही नहीं है, और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपका यह ग्रुप इस तरह का डोक्युमेन्टन्स करके जो मेरा समय चाहेंगे, तो मैं उनका प्रेजन्टेशन देखुंगा, और सरकार को भी बिठाकर अलग-अलग विभागों के, और हम साथ मिलकर नीतियां बदलनी हो, युनिवर्सिटी में कोर्स बदलने की जरूरत पडें, कुछ ऐसे कोर्स होते हैं, जो हमें युनिवर्सिटी में पढाया जाता है, पर वो जमाना गया कि अब यह पढाना पड़े। स्कील डेवलपमेन्ट में चेन्ज करना हो तो उसमें विचार करे, एक तो उसके उपर अपनी टीम काम कर सके। दुसरा एक मुझे लगता है की, भारत सरकार जो नेशनल एज्युकेशन पोलीसी लाई है। NEP हिंदुस्तान में शिक्षा नीति को इतना अच्छा प्रतिसाद मिला है, इतना सारा गौरवंन्तित हो वही एक बड़ी घटना है। हिंदुस्तान में कोइ भी राजनीतिक विचारधारा के लोग हो, कोइ भी ऐकेडेमिक दुनिया के लोग हो, सबने उसे गौरवपूर्वक स्वीकार किया है। आपके यहाँ भी एक टीम बनाये, क्योंकी मेने देखा है की अपने यहाँ शिक्षण में भी समाज के लोग खूब अच्छा प्रयास कर रहे हैं। लेकीन यह नेशनल एज्युकेशन पोलीसी की स्टडी करके, अपने समाज के लोग जो ऐकेडेमिक में रहे हो, और गुजरात के अन्य लोग भी अपना गुजरात और हम जो दिशा में जाना चाहते है, हिंदुस्तान के किसी भी कोने में इसमें हम यह नेशनल एज्युकेशन पोलीसी का 100 प्रतिशत लाभ लेने के लिये हम अपनी व्यवस्थाओं में, नीति निर्धारण में क्या परिवर्तन ला सके। यह एक दुसरा काम। तीसरा काम मुझे मेरे साथीयों आपको कहना है, मेरे सामने आप सब लोग हो उसमे 99 प्रतिशत किसान के पुत्र हैं। अब आप सुरत में करोड़ो रुपयें में खेलते हो तो आनंद होता है मुझे। लेकीन भाई अपनी जो जड़ है ना, वो हमारे खेत ही हैं। खेती ही है। हमारे पूर्वजो का तो तप है ना वही है। अब मुझे बताइये की हम इतना आगे बढ़े, लेकीन क्या अपनी खेती आगे बढ पाइ ? अपने खेती के क्षेत्र में इन्वेस्टमेन्ट आता है? लगभग जमीन पर बिल्डर आये और बिल्डींग बना दे और इन्कम हो वह बात अलग है। सही मायने में जब नर्मदा का पानी गुजरात के कोने-कोने मे पहुंचा है, तब मे चाहता हूँ की गुजरात की खेती को आधुनिक बनाने के लिए वह भी एक बड़ा बिजनेस है आप मानके चलिये। दुनिया का पेट भरने की क्षमता है अपने में। लेकीन हम हमारे संसाधन का उपयोग पुरा नहीं करते। एक दो किसान प्रगतिशील हो, बहुत अच्छे से करते होंगे, मेरी आपसे विनंती है की, गुजरात की पुरी जमीन का अध्ययन करने वाली एक टीम बनाये, एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी के साथ, एग्रीकल्चर डिपार्टमेन्ट के साथ मिलकर और आप सोचिए आज से 25-50 साल पहले जो कोइ दीर्घद्रष्टा था। उसमे सरदार साहब भी थे, जो गुजरात में डेरी उद्योग का विकास ना हुआ हो तो, पशुपालन और डेरी उद्योग का विकास ना हुआ होता को दुष्कालग्रस्त अपना गुजरात रहता था। और दुध की दुनिया में हम ना पहुंचे होते तो, अपने गांव की अपने किसान की क्यां स्थिति हुई होती भाई। मुल्यवृध्धि हुई, आज दुनिया में नाम हुआ अमुल का, बनासडेरी हो की सागर डेरी हो, अब तो काठीयावाड में और कच्छ में भी डेरी खाड़ी हुई है। पशुपालन और दूध को बहुत बडी ताकात इन सबसे मिली, और इसी तरह वही शक्ति कृषि पेदाश को मिल शके ? ऐग्रो बेईज्ड इन्डस्ट्री में आपने पास आशा ना रखूँ, तो किसके पास रखूँ भाई? जिस तरह हीरा को चमका सकते हो, तो भाई उसी तरह मेरे किसान की महेनत और उसके पसीने को भी आप चमका सको उतनी ताकात है आप में। और इसलिए फूड प्रोसेसिंग बहुत बडा क्षेत्र है। पूरी दुनिया में बड़े मार्केट की संभावना है। हम इसमें अभी बहुत पीछे है। कारण, क्योंकी प्राइवेट इन्वेस्टमेन्ट खेत में अभी आ नहीं रहा है। और अपने यहां छोटे किसान है, बहुत ज्यादा, एक एकर, दो एकर जमीन होती है, लेकिन आपके यहाँ बडे पैमाने पे प्लान करके आधुनिक खेती, खेत उत्पादन भी जैसा-तैसा नहीं, अब आप सोचिए की, आप सब किसान पुत्र अरबों-खरबों में खेलते हो, और मेरे देश को 80 हजार करोड़ का खाने का तेल बहार से लाना पड़ता हो तो, मैं आपके पास से कुछ आशा रखूँ की ना रखूँ । हम यह बदलाव ला सकते हैं की नहीं ला सकते। आत्मनिर्भर की बात करते है तो सिर्फ डायमंड में ही थोड़ा आत्मनिर्भर होना है भाई। और इसीलिए फूड प्रोसेसिंग भारत सरकार की FPO की योजना बनी है, छोटे-छोटे खेत उत्पादन के संगठन, बहुत पैसा भारत सरकार देती है, आप सोचिए कितना बड़ा क्षेत्र है। उसी तरह आपको पता है की ओर्गेनिक उत्पादन आप भी आप में से 90 प्रतिशत बाजार में खरीदी के लिए जाते है, तब चार बार लेबल देखते होंगे की ओर्गेनिक है क्या ? आम खरीदने जाते हो तब भी आप ओर्गेनिक देखते हो। अब तो घर में भी अपनी माता-बहनें ओर्गेनिक लाये हो ऐसा पुछती हैं। खाने के लिए बैठते है, तब भी कहती है की अपने यहां सब्जी ओर्गेनिक है वैसा बोलती हैं। अब जब यह आकर्षण हमारे घर के डाईनिंग टेबल तक पहुँचा हो तब, हमारे अच्छे कर्मो की वजह से हमारे गुजरात के गवर्नर आचार्य देवव्रत जी समर्पित भाव से प्राकृतिक खेती का अभियान चला रहे है। गुजरात के किसानो ने प्राकृतिक खेती को गले लगाया है। क्या हम इसमें व्यापारीक बुध्धि से जुड़ सकते है, नेचरल फार्मिंग में। उसी तरह जिस प्रकार दूध में से अलग-अलग प्रोडक्ट के कारण डेरी उद्योग का विकास हुआ, वहीं ताकात गोबर में है। हमने गोबरधन, बहुत बडा प्रोजेक्ट भारत सरकार ने निर्णय लिया है। आप सब उद्योगकार आप जिस जिले से आते है, उस जिले में जिस तरह डेरी का पुरा मोडल है, उसी तरह गोबरधन का मोडल बना सकते हो? और उसमें से गैस उत्पादन हो, गैस इन्डस्ट्री में बिके और उसमें से प्राकृतिक खाद तैयार हो, वह भी लोगो के पास जाये, अपने यहाँ उमरेठ में एक प्रोजेक्ट है। अभी मैंने काशी में जहाँ से MP हूँ, वहां भी बनाया है। अपने यहाँ बनास डेरी ने भी अच्छा बनाया है। यह सब खेती के साथ जुड़े हुए है, क्या हम भी कर सकते हैं? अपना एक सपना है गुजरात का, की अपना अन्नदाता उर्जादाता बने। खेती, खेत और उद्योग, क्यों अपने किसान को हम ना समझायें की, उनके खेत की साइड की जमीन, दो पडोसी के बीच झगड़ा होता है, तो दो मीटर जमीन बर्बाद होती है। फेन्सिंग करने की वजह से दो मिटर जमीन बर्बाद होती है। उसके उपर सिर्फ सोलार पेनल लगाकर हमारा किसान अन्नदाता के साथ उर्जादाता भी बन सकता है। अपना गाँव समृद्ध हो सकता है। गुजरात सरकार ने नीति बनाई हुई है, किसान जब बिजली पैदा करता है, तो उसको खरीदने की नीति बनाई हुई है। लेकिन उसमे आप सब उद्योग जगत के लोगो को जुड़ना पडेगा। अपनी यंग जनरेशन को जुड़ना पडेगा। मैं इसलिए ग्राम आधारित अर्थकारक का आपके पास आग्रह रखता हूँ, क्योंकि बहुत बार हमको बड़ा-बड़ा अच्छा दिखता है, लेकीन यह पाया के काम के लिये क्या आप मेरी मदद कर सकते है क्या ? और में 100 प्रतिशत कहता हूँ की आप कर सकते हो। उसी तरह एक सेवा का काम, आजादी का अमृत महोत्सव है एक सपना हमने देखा है, पहले के जमाने मैं हमको पता है की, कोइ बड़ी घटना बनी हो, कोई बड़ा विजय हुआ हो, तो गाँव मे विजयस्थंभ लगाया होता है। कोइ गाँव मैं बड़ी घटना घटी हो, तो बड़ा सा गेट बनाया हुआ होता है, यह तो हम इतिहास में देखते आये है। आजादी के 75 साल हुए उसके याद में हम क्या कर सकते है ? जिसको आने वाली पिढीयां याद रख सके की आजादी के 75 वर्ष पर यह काम हमारे गाँव मे हुआ। और इसलिये एक छोटी सी बात मैंने कि है की, क्या हम हर एक जिले में क्या 75 बड़े से तालाब बना सके ? अमृत सरोवर मैंने नाम दिया है, हर एक जिले में 75, आप सोचिए वह पाने में हम सफल हुए, जब मैं गुजरात में था हमने चेकडेम की बात की, मैंने सुरत के सारे लोगो को जोडा था, आप सबने उसमें मुझे मदद भी की थी। और गुजरात में हमने चेकडेम का पुरा प्लान बनाया और पानी का लेवल जमीन से उपर आया। पानी का लेवल उपर आया तो जमीन की कीमत भी उपर आई, , अब हमको एक जिले में 75 तालाब औऱ तालाब यानी की मामुली नहीं पर्यटन का केन्द्र बने, आकर्षण का केन्द्र बने, शाम होते ही गाँव के बुजुर्गों को वहाँ जाकर बैठने का मन हो वैसे तलाब। आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर को 75 तालाब हर एक जिले में, 5 जिले में, 10 जिले में, 15 जिले क्या आप दत्तक ले सकते हो ? और इस 15 अगस्त से पहले कुछ कर के दिखा सकते हो ? आपको लगता होता की हम तो यहां पर फेक्टरी डालने की बात करते थे, और मोदी साहब तो जहाँ से आये थे, वहाँ भेजते है। जड़ ये यही ताकातवाला है भाई, आज हम जो फुले-फले है ना उसका कारण हमारी जडें मजबूत थी। वह जड़ सुख न जाये उसे मजबूत करने के लिए क्या हम कुछ विचार कर सकते है? और इसमें भी टेक्नोलोजी है, इसमे भी आधुनिकता है, इसमे भी दुनिया के बाजार को कब्जे करने की ताकात है। क्वालिटी खेत पेदाश और फूड प्रोसेसिंग बहुत बडी शक्ति है। अभी मैंने गुजरात में आयुर्वेद की बड़ी समिट मैंने की, दुनिया में भारत के आयुर्वेद की मांग बढ़ रही है। कोरोना के बाद बढ़ी है। मैंने देखा है की कुछ युवाओं ने आयुर्वेद के क्षेत्र में अच्छा स्टार्टअप खड़ा किया है। हमें पुरे क्षेत्र में पहुँच कर दुनिया में होलिस्टीक हेल्थकेर की जो चर्चा चल रही है, क्या उसमे हम नेतृत्व ले सकते है? इतने सारे क्षेत्र है साथियों की, सही मायने मे सुरत, अहमदाबाद, बरोडा जैसे शहरो से बाहर जाकर भी हम एक नया आर्थिक साम्राज्य खड़ा कर सकते है। और मैं आप सबसे दुसरी विनती करता हूँ की अब जो भी करना है, वह तय करते है, वह बड़े शहरो में नहीं करना है। मुझे याद है जब मे ज्योतिग्राम योजना लाये 24 घंटे बिजली, आपके यहाँ जब झंडा लेकर लड़के निकलते है, उनको पता ही नहीं होगा की, पहले अंधेरे में कैसे दिन निकलते थे। अभी मुर्दाबाद, मुर्दाबाद करके निकल पड़ते हैं आपके ही लड़के, उनको बताये के कैसे दिन हमने निकालते थे, और कहाँ से निकले। मुझे याद है की जब ज्योतिग्राम योजना आई, 24 घंटे बिजली मिलना शुरु हुई, तो सुरत के अंदर एक हीरा की घंटी, एक छोटी सी खोली मे 25 -25 लोग रहते थे, उनको हुआ की अब जब 24 घंटे बिजली मिलती ही है, तो हम भावनगर जिले में की, अमरेली जिले में जाकर घंटी क्यों ना डाले। और काफी सारे लोगों ने गाँव मे जाकर घंटी डाली, घर का भी कार्य करे, खेती भी करे, बुजुर्ग माता-पिता की भी सेवा करे और जब फ्री टाइम मिले तो हीरा भी घिसे। आवक हुई की नहीं हुई ? फायदा हुआ की नहीं हुआ? यह बदलाव जो आया 24 घंटे बिजली मिली और गुजरात के गाँव मे घंटी ले गये, आप ही सब ले गये और मेरे सामने मेरी आंखो के सामने आप सबने यह किया है। और इसलिये मैं आपकी जितनी भी तारीफ करता था वह कम थी। इसिलिए आज मैं कहता हूँ कि अब आप तय करे की, अब गुजरात के जो बड़े 15-20 शहर हैं, उसमे नहीं उसके बाद का जो शहर हैं, उसमें काम शुरु करना है। एक तो इन्वेस्टमेन्ट में बचत होगी। जमीन सस्ती मिलेगी, मकान सस्ता मिलेगा, आदमी सस्ता मिलेगा और गुजरात फैलेगा, विकास का दायरा बढेगा। और अब समय है की 25 से 30 ऐसे छोटे- छोटे शहर पकड़ें और उसे धधमता करें। आज से 30 साल पहले सुरत का कौन नाम देता था भाई। अब आगे चला गया की नहीं। इसी तरह छोटे- छोटे शहरो का मुझे विकास करना है। वह शहर की बगल में की नया शहर बन सकेगा। तो आपकी यह योजना के अंदर आप समिट मे इतने सारे लोग मिले हो, इस दिशा में विचार कर सकते हो ? तो मेरे मन में लंबे समय की योजना के लिये स्कीम बनाने के लिए एकेडेमिक वर्ल्ड हो, बिजनेस सर्कल हो, फिनटेक वाले हो, वह मेरे साथ आये और मैं समय देने के लिये तैयार हूं। कारण मुझे पता है, मुझे आपपर भरोसा है, और मैं आपको इसलिए काम सोंपता हुं, की मुझे तो आप पर भरोसा है की, 10 में से 2 रह जायेंगा। लेकिन 8 काम होंगे और वह आप ही करोंगे। दूसरे नहीं करेंगे इसलिए आपसे कहता हुं। आप जब बोलोंगे की मोदी साहब अब नहीं करना है, तब मैं बोलना बंद कर दूंगा। लेकिन आप करते हो, तो कहूँगा आप नहीं करोगे तो मैं नही करुंगा। और आपको यह सुनना इसलिए पड़ता है, क्योंकी आप करते हो। मैंने आजतक आपको जीतना कहा है, वह सब आपने किया है। और जब आप करते हो तो कहने का मन भी होता है। और इसलिए मेरी आपसे उम्मीद है, दोस्तो की एक नए विश्वास के साथ और वैश्विक, अब हम को छोटा कुछ करना ही नहीं है भाई, पीछे मुडकर देखना ही नहीं है। और मैं मानता हूँ की, अपने युवाओं जिन्होंने अच्छा काम किया है। अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी यह है की लडके बहुत अच्छी पढाइ में जगह बना रहे है। आपके यहाँ से बहुत सारे लडके मुझे मिलने आते है, मुझे बहुत आनंद होता है उनसे मिलके। बिलकुल नये विचार के साथ आते है। नया करने के मूड के साथ आते है। शिक्षण में भी नया सीखने की वृत्ति वाले बच्चे हैं। यह बहुत बड़ी संपत्ति है अपनी, इनको ध्यान में रखते हुए यह समिट को हम आगे ले जाये, भले ही दो साल में बड़ी समिट करे। लेकिन बीच के एक साल में जो हमने ग्रुप बनाये हैं, उनके विचार पर हम आगे बढ़े और 8 से 10 बड़ी चीजें पकडे उसमें ही छा जाना है। और दो साल के बाद और बड़ी 10 चीजे पकडेंगे। तो मुझे पुरा यकीन है की, आपकी पुरी टीम नया सोचने वाली टीम है। आगे का सोचने वाली टीम है, टेक्नोलोजी का सदउपयोग करने वाली टीम है, मेरी आपको बहुत सारी शुभकामनाएं है, आप सबसे मिलने का, बात करने का अवसर मिला, जो मन में आता गया वह कहता गया हूँ। उसमें से जितना पकड सको, उतना पकडना।


फिर मिलेगें, राम-राम।




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DS/TS/AK/NS




(Release ID: 1821397)
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Text of PM’s address on Hosts A Sikh Delegation at his Residence in New Delhi


NID फ़ाउंडेशन के मुख्य संरक्षक एवं चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के चान्सलर मेरे मित्र श्री सतनाम सिंहसंधूजी, NID फ़ाउंडेशन के सभी सदस्यगण और सभी सम्मानित साथीगण! आपमें से  कुछ लोगों को पहले से जानने का, मिलने का अवसर मुझे मिलता रहा है। गुरुद्वारों में जाना, सेवा में समय देना, लंगरपाना, सिख परिवारों के घरों पर रहना, ये मेरे जीवन का एक बहुत बड़ा स्वाभाविक हिस्सा रहा है। यहाँ प्रधानमंत्री आवास में भी समयसमय पर सिख संतों के चरण पड़ते रहते हैं और ये मेरा बड़ा सौभाग्य रहा है। उनकी संगत का सौभाग्य मुझे अक्सर मिलता रहता है।




भाइयों बहनों,


जब मैं किसी विदेश यात्रा पर जाता हूँ, तो वहाँ भी जब सिख समाज के साथियों से मिलता हूँ तो मन गर्व से भर उठता है। 2015 की मेरी कनाडा यात्रा आपमें से कई लोगों को याद होगी! और दलाई जी तो मैं मुख्यमंत्री नहीं था तब से जानता हूं। ये कनाडा के लिए चार दशकों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली standalone bilateral visit  थी और मैं केवल Ottawa और Toronto ही नहीं गया था। मुझे याद है, तब मैंने कहा था कि मैं Vancouver जाऊंगा और मैं वहां जाना चाहता हूँ। मैं वहाँ गया, गुरुद्वारा खालसा दीवान में मुझे माथा टेकने का सौभाग्य मिला। संगत के सदस्यों से अच्छी बातें हुई। इसी तरह, 2016  में जब मैं ईरान गया तो वहाँ भी तेहरान में भाई गंगा सिंह सभा गुरुद्वारा जाने का मुझे सौभाग्य मिला। मेरे जीवन का एक और अविस्मरणीय क्षण फ़्रांस में नवशपैल Indian Memorial की मेरी यात्रा भी है। ये मेमोरियल विश्व युद्ध के समय भारतीय सैनिकों के बलिदान के लिए उन्हें श्रद्धांजलि देता है और इनमें भी एक बड़ी संख्या हमारे सिख भाई बहनों की थी। ये अनुभव इस बात का उदाहरण हैं कि कैसे हमारे सिख समाज ने भारत और दूसरे देशों के रिश्तों की एक मजबूत कड़ी बनने का काम किया है। मेरा सौभाग्य है कि आज मुझे इस कड़ी को और मजबूत करने का अवसर मिला है और  मैं इसके लिए हर संभव प्रयास भी करता रहता हूँ।




साथियों,


हमारे गुरुओं ने हमें साहस और सेवा की सीख दी है। दुनिया के अलग अलग हिस्सों में बिना किसी संसाधन के हमारे भारत के लोग गए, और अपने श्रम से सफलता के मुकाम हासिल किए। यही स्पिरिट आज नए भारत की स्प्रिट बन गयी  है। नया भारत नए आयामों को छू रहा है, पूरी दुनिया पर अपनी छाप छोड़ रहा है। कोरोना महामारी का ये कालखंड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। महामारी की शुरुआत में पुरानी सोच वाले लोग भारत को लेकर चिंताएं जाहिर कर रहे थे।  हर कोई कुछ न कुछ कहता रहता था। लेकिन, अब लोग भारत का उदाहरण देकर दुनिया को बताते हैं कि देखिये भारत ने ऐसा किया हैं। पहले कहा जा रहा था कि भारत की इतनी बड़ी आबादी, भारत को कहाँ से वैक्सीन मिलेगी, कैसे लोगों का जीवन बचेगा ? लेकिन आज भारत वैक्सीन का सबसे बड़ा सुरक्षा कवच तैयार करने वाला देश बनकर के आज उभरा है। करोड़ों वैक्सीन डोज़ हमारे देश में लगाई जा चुकी हैं।  आपको भी सुनकर गर्व होगा कि इसमें भी 99 प्रतिशत वैक्सीनेशन हमारी अपनी मेड इन इंडिया वैक्सीन्स से हुआ है। इसी कालखंड में हम दुनिया के सबसे बड़े स्टार्टअप ecosystems में से एक बनकर के उभरे हैं। हमारे unicorns की संख्या लगातार बढ़ रही है। भारत का ये बढ़ता हुआ कद, ये बढ़ती हुई साख, इससे सबसे ज्यादा किसी का सिर ऊंचा होता है तो वो हमारे diaspora का है। क्योंकि, जब देश का सम्मान बढ़ता है, तो लाखों करोड़ों भारतीय मूल के लोगों का भी उतना ही सम्मान बढ़ जाता है। उनके प्रति दुनिया का नज़रिया बदल जाता  है। इस सम्मान के साथ नए अवसर भी आते हैं, नयी भागीदारियाँ भी आती हैं और सुरक्षा की भावना भी मजबूत होती है। हमारे diaspora को तो मैं हमेशा भारत का राष्ट्रदूत मानता रहा हूं। सरकार जो भेजती है वो तो राजदूत है। लेकिन आप जो हैं राष्ट्रदूत हैं। आप सभी भारत से बाहर, मां भारती की बुलंद आवाज हैं, बुलंद पहचान हैं। भारत की प्रगति देखकर आपका भी सीना चौड़ा होता है, आपका भी सिर गर्व से ऊंचा होता है। परदेस में रहते हुए आप अपने देश की भी चिंता करते हैं। इसलिए विदेश में रहते हुए भारत की सफलता को आगे बढ़ाने में, भारत की छवि को और मजबूत करने में भी आपकी बहुत बड़ी भूमिका है। हम दनिया में कहीं भी रहें, India first, राष्ट्र प्रथम हमारी पहली आस्था होनी चाहिए।




साथियों,


हमारे सभी दस गुरुओं ने राष्ट्र को सबसे ऊपर रखकर भारत को एक सूत्र में पिरोया था। गुरु नानकदेव जी ने पूरे राष्ट्र की चेतना को जगाया था, पूरे राष्ट्र को अंधकार से निकालकर प्रकाश की राह दिखाई थी। हमारे गुरुओं ने पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण पूरे भारत की यात्राएं कीं।  हर कहीं, कहीं पर भी जाइये उनकी निशानियाँ हैं, उनकी प्रेरणाएं हैं, उनके लिए आस्था है। पंजाब में गुरुदवारा हरमंदिर साहिब जी से लेकर उत्तराखंड में गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब तक, महाराष्ट्र में गुरुद्वारा हुजूर साहिब से लेकर हिमाचल में गुरुदावारा पोंटा साहिब तक, बिहार में तख्त श्री पटना साहिब से लेकर गुजरात के कच्छ में गुरुद्वारा लखपत साहिब तक, हमारे गुरुओं ने लोगों को प्रेरणा दी, अपनी चरण रज से इस भूमि को पवित्र किया। इसलिए, सिख परंपरा वास्तव मेंएक भारत, श्रेष्ठ भारतकी जीवंत परंपरा है।




भाइयों और बहनों,


आज़ादी की लड़ाई में और आज़ादी के बाद भी सिख समाज का देश के लिए जो योगदान है, उसके लिए पूरा भारत कृतज्ञता अनुभव करता है। महाराजा रणजीत सिंह का योगदान हो, अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई हो, या जलियाँवाला बाग हो, इनके बिना भारत का इतिहास पूरा होता है, न हिन्दुस्तान पूरा होता है। आज भी सीमा पर खड़े सिख सैनिकों के शौर्य से लेकर देश की अर्थव्यवस्था में सिख समाज की भागीदारी और सिख NRIs के योगदान तक, सिख समाज देश के साहस, देश का सामर्थ्य और देश के  श्रम का पर्याय बना हुआ है।




साथियों,


आज़ादी का अमृत महोत्सव हमारे स्वतन्त्रता संग्राम के साथसाथ हमारी संस्कृति और विरासत को celebrate करने का भी अवसर है। क्योंकि, आजादी के लिए भारत का संघर्ष केवल एक सीमित कालखंड की घटना नहीं है। इसके पीछे हजारों सालों की चेतना और आदर्श जुड़ी थी। इसके पीछे आध्यात्मिक मूल्य और कितने ही तपत्याग जुड़े हुए थे। इसीलिए, आज देश जब एक तरफ आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाता है, तो साथ ही लालकिले पर गुरु तेगबहादुर जी का 400वां प्रकाश पर्व भी मनाता है। गुरु तेगबहादुर जी के 400वें प्रकाश पर्व के पहले हमने गुरु नानकदेव जी का 550वां प्रकाश पर्व भी पूरी श्रद्धा के साथ देश विदेश में मनाया था।। गुरु गोबिन्द सिंह जी के 350वें प्रकाश पर्व का सौभाग्य भी हमें ही मिला था।




साथियों,


इसके साथ ही, इसी कालखंड में करतारपुर साहिब कॉरिडॉर का निर्माण भी हुआ। आज लाखों श्रद्धालुओं को वहाँ शीश नवाने का सौभाग्य मिल रहा है। लंगर को टैक्स फ्री करने से लेकर, हरमिंदर साहिब को FCRA की अनुमति तक, गुरुद्वारों के आसपास स्वच्छता बढ़ाने से लेकर उन्हें बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर से जोड़ने तक, देश आज हर संभव प्रयास कर रहा है और मैं सतनाम जी का आभार वयक्त करता हूं उन्होंने जिस प्रकार से वीडियो को संक्लित करके दिखाया है। पता चल सकता है कि पूरी श्रद्धा के साथ हर क्षेत्र में किस प्रकार से काम हुआ है।  आप लोगों से समयसमय पर जो सुझाव मिलते हैं, आज भी काफी सुझाव मेरे पास आपने दिए हैं।  मेरा प्रयास रहता है कि उनके आधार पर देश सेवा के रास्ते पर आगे बढ़ता रहे।




साथियों,


हमारे गुरुओं के जीवन की जो सबसे बड़ी प्रेरणा है, वो है हमारे कर्तव्यों का बोध !आज़ादी के अमृतकाल में देश भी आज कर्तव्यों को प्राथमिकता देने की बात कर रहा है।सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयासयही मंत्र हम सबको भारत के उज्जवल भविष्य को सुनिश्चित करता है। ये कर्तव्य केवल हमारे वर्तमान के लिए नहीं हैं, ये हमारे और हमारे देश के भविष्य के लिए भी हैं। ये हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हैं। उदाहरण के तौर पर, आज पर्यावरण देश और दुनिया के सामने एक बड़ा संकट है। इसका समाधान भारत की संस्कृति और संस्कारों में है। सिख समाज इसका जीता जागता उदाहरण है।सिख समाज में हम जितनी चिंता पिंड की करते हैं, उतनी ही पर्यावरण और planet की भी करते हैं। प्रदूषण के खिलाफ़ प्रयास हों, कुपोषण से लड़ाई हो, या अपने सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा हो, आप सभी इस तरह के हर प्रयास से जुड़े नज़र आते हैं। इसी श्रंखला में मेरा आपसे एक आग्रह भी और है। आप जानते हैं कि अमृत महोत्सव में देश देश के सभी जिलों में यानि हर जिले में 75 अमृत सरोवर का संकल्प लिया है। आप भी अपने पिंडों में अमृत सरोवरों के निर्माण का अभियान चला सकते हैं।




साथियों,


हमारे गुरुओं ने हमें आत्मसम्मान और मानव जीवन के गौरव का जो पाठ पढ़ाया, उसका भी प्रभाव हमें हर सिख के जीवन में दिखता है। आजादी के अमृतकाल में यही आज यही देश का भी संकल्प है। हमें आत्मनिर्भर बनना है, गरीब से गरीब व्यक्ति का जीवन बेहतर करना है। इन सब प्रयासों में आप सभी की सक्रिय भागीदारी होना और आप सबका सक्रिय योगदान बहुत अनिवार्य और आवश्यक है। मुझे पूरा भरोसा है, गुरुओं के आशीर्वाद से हम सफल होंगे और जल्द एक नये भारत के लक्ष्य तक पहुंचेंगे। इसी संकल्प के साथ, आप सभी को मैा बहुतबहुत धन्यवाद देता हूं। आपका यहां आना वो मेरे लिए संगत से भी बहुत ज्यादा है। और इसलिए आपकी कृपा बनी रहें और मैं हमेशा कहता हूं ये प्रधानमंत्री निवास स्थान ये मोदी का घर नहीं है। ये आपका अधिकार क्षेत्र है ये आपका है। इसी भाव से इसी अपनेपन से हमेशा हमेशा हम मिलकर के मा भारती के लिए, हमारे देश के गरीबों के लिए, हमारे देश के हर समाज के उत्थान के लिए हम अपना कार्य करते रहें। गुरुओं के आर्शीवाद हम पर बने रहें। इसी एक भावना के साथ मैं फिर एक बार आप सबका धन्यवाद करता हूं। वाहे गुरु का खालसा। वाहे गुरु की फतह।


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DS/LP/AK/DK




(Release ID: 1821416)
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PM’s message at Khelo India University Games inauguration


The Prime Minister, Shri Narendra Modi shared his message at the inauguration of the Khelo India University Games today. The games were declared open by the Vice President of India Shri M. Venkaiah Naidu in Bengaluru today. Governor of Karnataka Shri Thaawar Chand Gehlot, Chief Minister Shri Basavaraj Bommai, Union Minister of Youth Affairs and Sports Shri Anurag Singh Thakur, Minister of State, Ministry of Youth Affairs and Sports Shri Nisith Pramanik were among those present on the occasion.


The Prime Minister said that Bengaluru symbolizes the youthful enthusiasm of the country and is pride of the professionals. He said that it is significant that a confluence of startups and sports is happening here. “Holding of the Khelo India University Games in Bengaluru will add to the energy of this beautiful city.”, he said. The Prime Minister saluted the resolve of the organizers as organization of the Games amidst the challenges of the pandemic epitomizes the determination and passion. This youthful passion is driving India in every field with new momentum, the Prime Minister added.


The Prime Minister underlined the importance of team spirit as the first mantra of success. “This team spirit we get to learn from sports. You will experience it directly in the Khelo India University Games. This team spirit also gives us a new way of looking at life”, the Prime Minister said. Similarly, holistic approach and 100 percent dedication are the key requirements of success in sports. Strengths and learnings from the sports field also takes one forward in life. “Sports, in real sense, is the genuine support system of life”, Shri Modi emphasized. The Prime Minister also drew similarities between sports and life with regards to various aspects such as passion, challenges, learning from defeat, integrity and ability to live in the moment. “Wearing the victory well and learning from defeat is an important art that we learn in the sports field”, he said.


The Prime Minister told the athletes that they are the youth of New India and they are also the flag bearers of Ek Bharat Shreshth Bharat. The Youthful thinking and approach is shaping the country’s policies today. The Prime Minister said that today’s youth has made fitness a mantra of country’s progress. Many initiatives are freeing the sports from the shackles of old mode of thinking. Measures like emphasis on sports in the new education policy, modern infrastructure for sports, transparent selection process or increasing use of modern technology in sports are fast becoming the identity of New India, hopes and aspirations of its youth, and foundation of decisions of New India. “Now new Sports Science Centers are being established in the country. Dedicated sports universities are coming up. This is for your convenience and to fulfill your dreams” the Prime Minister said.


The Prime Minister reiterated the link between sports power and power of the country as recognition in sports adds to the recognition for the country. He recalled his meeting with Tokyo Olympics contingent and remembered the glow and satisfaction of doing something for the country on the faces of the athletes. The Prime Minister exhorted the players to play for the country while participating in the Games.



My message at the start of Khelo India University Games being held in Bengaluru. https://t.co/fnMkV7Tkzx

— Narendra Modi (@narendramodi) April 24, 2022


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DS/TS




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Text of PM’s address during 400th Parkash Purab celebrations of Sri Guru Tegh Bahadur Ji at Red Fort


वाहे गुरु जी का खालसा।




वाहे गुरु जी की फ़तह॥




मंचस्थ सभी महानुभाव, इस कार्यक्रम में उपस्थित सभी देवियों और सज्जनों और वर्चुअली दुनिया भर से जुड़े सभी महानुभाव!




गुरू तेग बहादुर जी के 400वें प्रकाश पर्व को समर्पित इस भव्य आयोजन में, मैं आप सभी का ह्रदय से स्वागत करता हूं। अभी शबद कीर्तन सुनकर जो शांति मिली, वो शब्दों में अभिव्यक्त करना मुश्किल है।




आज मुझे गुरू को समर्पित स्मारक डाक टिकट और सिक्के के विमोचन का भी सौभाग्य मिला है। मैं इसे हमारे गुरूओं की विशेष कृपा मानता हूं। इसके पहले 2019 में हमें गुरु नानकदेव जी का 550वां प्रकाश पर्व और 2017 में गुरू गोविंद सिंह जी का 350वां प्रकाश पर्व मनाने का भी सौभाग्य मिला था।




मुझे खुशी है कि आज हमारा देश पूरी निष्ठा के साथ हमारे गुरुओं के आदर्शों पर आगे बढ़ रहा है। मैं इस पुण्य अवसर पर सभी दस गुरुओं के चरणों में आदरपूर्वक नमन करता हूँ। आप सभी को सभी देशवासियों को और पूरी दुनिया में गुरुवाणी में आस्था रखने वाले सभी लोगों को मैं प्रकाश पर्व की हार्दिक बधाई देता हूँ।




साथियों,




ये लालकिला कितने ही अहम कालखण्डों का साक्षी रहा है। इस किले ने गुरु तेग बहादुर साहब जी की शहादत को भी देखा है और देश के लिए मरमिटने वाले लोगों के हौसले को भी परखा है। आज़ादी के बाद के 75 वर्षों में भारत के कितने ही सपनों की गूंज यहां से प्रतिध्वनित हुई है। इसलिए, आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान लाल किले पर हो रहा ये आयोजन, बहुत विशेष हो गया है।




साथियों,




हम आज जहां हैं, अपने लाखोंकरोड़ों स्वाधीनता सेनानियों के त्याग और बलिदान के कारण हैं। आजाद हिंदुस्तान, अपने फैसले खुद करने वाला हिंदुस्तान, लोकतांत्रिक हिंदुस्तान, दुनिया में परोपकार का संदेश फैलाने वाला हिंदुस्तान, ऐसे हिंदुस्तान के सपने को पूरा होते देखने के लिए


कोटिकोटि लोगों ने खुद को खपा दिया।




ये भारतभूमि, सिर्फ एक देश ही नहीं है, बल्कि हमारी महान विरासत है, महान परंपरा है। इसे हमारे


ऋषियों, मुनियों और गुरुओं ने सैकड़ोंहजारों सालों की तपस्या से सींचा है, उसके विचारों को समृद्ध किया है। इसी परंपरा के सम्मान के लिए, उसकी पहचान की रक्षा के लिए दसों गुरुओं ने अपना जीवन समर्पित कर दिया था।




इसलिए साथियों,




सैकड़ों काल की गुलामी से मुक्ति को, भारत की आज़ादी को, भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक यात्रा से अलग करके नहीं देखा जा सकता। इसीलिए, आज देश आजादी के अमृत महोत्सव को और गुरु तेगबहादुर जी के 400वें प्रकाश पर्व को एक साथ मना रहा है, एक जैसे संकल्पों के साथ मना रहा है।




साथियों,




हमारे गुरूओं ने हमेशा ज्ञान और अध्यात्म के साथ ही समाज और संस्कृति की ज़िम्मेदारी उठाई। उन्होंने शक्ति को सेवा का माध्यम बनाया। जब गुरु तेगबहादुर जी का जन्म हुआ था तो गुरु पिता ने कहा था


‘‘दीन रच्छ संकट हरन


यानी, ये बालक एक महान आत्मा है। ये दीनदुखियों की रक्षा करने वाला, संकट को हरने वाला है। इसीलिए श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब ने उनका नाम त्यागमल रखा। यही त्याग, गुरु तेगबहादुर जी ने अपने जीवन में चरितार्थ भी करके दिखाया। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने तो उनके बारे में लिखा है




तेग बहादर सिमरिए, घर नौ निधि आवै धाई।




सब थाई होई सहाई




अर्थात्, गुरु तेगबहादुर जी के सुमिरन से ही सभी सिद्धियाँ अपने आप प्रकट होने लगती हैं। गुरू तेगबहादुर जी का ऐसा अद्भुत आध्यात्मिक व्यक्तित्व था, वो ऐसी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।




साथियों,




यहाँ लालकिले के पास यहीं पर गुरु तेगबहादुर जी के अमर बलिदान का प्रतीक गुरुद्वारा शीशगंज साहिब भी है! ये पवित्र गुरुद्वारा हमें याद दिलाता है कि हमारी महान संस्कृति की रक्षा के लिए गुरु तेगबहादुर जी का बलिदान कितना बड़ा था। उस समय देश में मजहबी कट्टरता की आँधी आई थी। धर्म को दर्शन, विज्ञान और आत्मशोध का विषय मानने वाले हमारे हिंदुस्तान के सामने ऐसे लोग थे जिन्होंने धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार की पराकाष्ठा कर दी थी। उस समय भारत को अपनी पहचान बचाने के लिए एक बड़ी उम्मीद गुरु तेगबहादुर जी के रूप में दिखी थी। औरंगजेब की आततायी सोच के सामने उस समय गुरु तेगबहादुर जी, हिन्द दी चादरबनकर, एक चट्टान बनकर खड़े हो गए थे। इतिहास गवाह है, ये वर्तमान समय गवाह है और ये लाल किला भी गवाह है कि औरंगजेब और उसके जैसे अत्याचारियों ने भले ही अनेकों सिरों को धड़ से अलग कर दिया, लेकिन हमारी आस्था को वो हमसे अलग नहीं कर सका। गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान ने, भारत की अनेकों पीढ़ियों को अपनी संस्कृति की मर्यादा की रक्षा के लिए, उसके मानसम्मान के लिए जीने और मरमिट जाने की प्रेरणा दी है। बड़ी-बड़ी सत्ताएँ मिट गईं, बड़े-बड़े तूफान शांत हो गए, लेकिन भारत आज भी अमर खड़ा है, भारत आगे बढ़ रहा है। आज एक बार फिर दुनिया भारत की तरफ देख रही है, मानवता के मार्ग पर पथप्रदर्शन की उम्मीद कर रही है। गुरु तेगबहादुर जी का आशीर्वाद हम नए भारतके आभामण्डल में हर ओर महसूस कर सकते हैं।




भाइयों और बहनों,




हमारे यहाँ हर कालखंड में जब-जब नई चुनौतियाँ खड़ी होती हैं, तो कोई कोई महान आत्मा इस पुरातन देश को नए रास्ते दिखाकर दिशा देती है। भारत का हर क्षेत्र, हर कोना, हमारे गुरुओं के प्रभाव और ज्ञान से रोशन रहा है। गुरु नानकदेव जी ने पूरे देश को एक सूत्र में पिरोया। गुरु तेगबहादुर जी के अनुयायी हर तरफ हुये। पटना में पटना साहिब और दिल्ली में रकाबगंज साहिब, हमें हर जगह गुरुओं के ज्ञान और आशीर्वाद के रूप मेंएक भारतके दर्शन होते हैं।




भाइयों और बहनों,




मैं अपनी सरकार का सौभाग्य मानता हूं कि उसे गुरुओं की सेवा के लिए इतना कुछ करने का अवसर मिल रहा है। पिछले वर्ष ही हमारी सरकार ने, साहिबजादों के महान बलिदान की स्मृति में 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाने का निर्णय लिया है। सिख परंपरा के तीर्थों को जोड़ने के लिए भी हमारी सरकार निरंतर प्रयास कर रही है। जिस करतारपुर साहिब कॉरिडोर की दशकों से प्रतीक्षा की जा रही थी, उसका निर्माण करके हमारी सरकार ने, गुरू सेवा के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। हमारी सरकार ने पटना साहिब समेत गुरु गोबिन्द सिंह जी से जुड़े स्थानों पर रेल सुविधाओं का आधुनिकीकरण भी किया है। हमस्वदेश दर्शन योजनाके जरिए पंजाब में आनंदपुर साहिब और अमृतसर में अमृतसर साहिब समेत सभी प्रमुख स्थानों को जोड़कर एक तीर्थ सर्किट भी बना रहे हैं। उत्तराखंड में हेमकुंड साहिब के लिए रोपवे बनाने का काम भी आगे बढ़ रहा है।




साथियों,




श्री गुरुग्रंथ साहिब जी हमारे लिए आत्मकल्याण के पथप्रदर्शक के साथ-साथ भारत की विविधता और एकता का जीवंत स्वरूप भी हैं। इसीलिए, जब अफ़ग़ानिस्तान में संकट पैदा होता है, हमारे पवित्र गुरुग्रंथ साहिब के स्वरूपों को लाने का प्रश्न खड़ा होता है, तो भारत सरकार पूरी ताकत लगा देती है। हम केवल गुरुग्रंथ साहिब के स्वरूप को पूरे सम्मान के साथ शीश पर रखकर लाते हैं, बल्कि संकट में फंसे अपने सिख भाइयों को भी बचाते हैं। नागरिकता संशोधन कानून ने पड़ोसी देशों से आए सिख और अल्पसंख्यक परिवारों को देश की नागरिकता मिलने का रास्ता साफ किया है। ये सब इसलिए संभव हुआ है, क्योंकि हमारे गुरुओं ने हमें मानवता को सर्वोपरि रखने की सीख दी है। प्रेम और सौहार्द हमारे संस्कारों का हिस्सा है।




साथियों,




हमारे गुरु की वाणी है,




भै काहू को देत नहि,


नहि भै मानत आन।




कहु नानक सुनि रे मना,


ज्ञानी ताहि बखानि॥




अर्थात्, ज्ञानी वही है जो किसी को डराए, और किसी से डरे। भारत ने कभी किसी देश या समाज के लिए खतरा नहीं पैदा किया। आज भी हम पूरे विश्व के कल्याण के लिए सोचते हैं। एक ही कामना करते हैं। हम आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं, तो उसमें पूरे विश्व की प्रगति लक्ष्य को सामने रखते हैं। भारत विश्व में योग का प्रसार करता है, तो पूरे विश्व के स्वास्थ्य और शांति की कामना से करता है। कल ही मैं गुजरात से लौटा हूं। वहां विश्व स्वास्थ्य संगठन के पारंपरिक चिकित्सा के ग्लोबल सेंटर का उद्घाटन हुआ है। अब भारत, विश्व के कोनेकोने तक पारंपरिक चिकित्सा का लाभ पहुंचाएगा, लोगों के स्वस्थ्य को सुधारने में अहम भूमिका निभाएगा।




साथियों,




आज का भारत वैश्विक द्वंदों के बीच भी पूरी स्थिरता के साथ शांति के लिए प्रयास करता है, काम करता है। और भारत अपनी देश की रक्षासुरक्षा के लिए भी आज उतनी ही दृढ़ता से अटल है। हमारे सामने गुरुओं की दी हुई महान सिख परंपरा है। पुरानी सोच, पुरानी रूढ़ियों को किनारे हटाकर गुरुओं ने नए विचार सामने रखे। उनके शिष्यों ने उन्हें अपनाया, उन्हें सीखा। नई सोच का ये सामाजिक अभियान एक वैचारिक innovation था। इसीलिए, नई सोच, सतत परिश्रम और शत-प्रतिशत समर्पण, ये आज भी हमारे सिख समाज की पहचान है। आजादी के अमृत महोत्सव में आज देश का भी यही संकल्प है। हमें अपनी पहचान पर गर्व करना है। हमें लोकल पर गर्व करना है, आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना है। हमें एक ऐसा भारत बनाना है जिसका सामर्थ्य दुनिया देखे, जो दुनिया को नई ऊंचाई पर ले जाए। देश का विकास, देश की तेज प्रगति, ये हम सबका कर्तव्य है। इसके लिएसबके प्रयासकी जरूरत है। मुझे पूरा भरोसा है कि गुरुओं के आशीर्वाद से, भारत अपने गौरव के शिखर तक पहुंचेगा। जब हम आज़ादी के सौ साल मनाएंगे तो एक नया भारत हमारे सामने होगा।




गुरू तेग बहादुर जी कहते थे




साधो,


गोबिंद के गुन गाओ।




मानस जन्म अमोल कपायो,


व्यर्था काहे गंवावो।




इसी भावना के साथ हमें अपने जीवन का प्रत्येक क्षण, देश के लिए लगाना है, देश के लिए समर्पित कर देना है। हम सभी मिलकर देश को विकास की नई ऊंचाई पर ले जाएंगे, इसी विश्वास के साथ, आप सभी को एक बार फिर हार्दिक शुभकामनाएँ।




वाहे गुरु जी का खालसा।




वाहे गुरु जी की फ़तह॥


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DS/ST




(Release ID: 1818857)
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Text of PM’s address while unveiling 108ft statue of Hanuman ji in Morbi, Gujarat


नमस्‍कार!


महामंडलेश्वर कंकेश्वरी देवी जी और राम कथा आयोजन से जुड़े सभी महानुभाव, गुजरात की इस धर्मस्थली में उपस्थित सभी साधु-संत, महंत, महामंडलेश्वर, एच सी नंदा ट्रस्ट के सदस्यगण, अन्य विद्वान और श्रद्धालुगण, देवियों और सज्जनों! हनुमान जयंती के पावन अवसर पर आप सभी को, समस्त देशवासियों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं! इस पावन अवसर पर आज मोरबी में हनुमान जी की इस भव्य मूर्ति का लोकार्पण हुआ है। ये देश और दुनियाभर के हनुमान भक्तों, राम भक्‍तों के लिए बहुत सुखदायी है। आप सभी को बहुत-बहुत बधाई!


साथियों,


रामचरित मानस में कहा गया है कि- बिनु हरिकृपा मिलहिं नहीं संता, यानि ईश्वर की कृपा के बिना संतों के दर्शन दुर्लभ होते हैं। मेरा यह सौभाग्य है कि बीते कुछ दिनों के भीतर मुझे मां अम्बाजी, उमिया माता धाम, मां अन्नपूर्णा धाम का आशीर्वाद लेने का मौका मिला है। अब आज मुझे मोरबी में हनुमानजी के इस कार्य से जुड़ने का, संतों के समागम का हिस्सा बनने का अवसर मिला है।


भाइयों और बहनों,


मुझे बताया गया है कि हनुमान जी की इस तरह की 108 फीट ऊंची प्रतिमा देश के 4 अलग-अलग कोनों में स्थापित की जा रही हैं। शिमला में ऐसी ही एक भव्य प्रतिमा तो हम पिछले कई वर्षों से देख रहे हैं। आज यह दूसरी प्रतिमा मोरबी में स्थापित हुई है। दो अन्य मूर्तियों को दक्षिण में रामेश्वरम और पश्चिम बंगाल में स्थापित करने का कार्य चल रहा है, ऐसा मुझे बताया गया।


साथियों,


ये सिर्फ हनुमान जी की मूर्तियों की स्थापना का ही संकल्प नहीं है, बल्कि ये एक भारत श्रेष्ठ भारत के संकल्प का भी हिस्सा है। हनुमान जी अपनी भक्ति से, अपने सेवाभाव से, सबको जोड़ते हैं। हर कोई हनुमान जी से प्रेरणा पाता है। हनुमान वो शक्ति और सम्बल हैं जिन्होंने समस्त वनवासी प्रजातियों और वन बंधुओं को मान और सम्मान का अधिकार दिलाया। इसलिए एक भारत, श्रेष्ठ भारत के भी हनुमान जी एक अहम सूत्र हैं।


भाइयों और बहनों,


इसी प्रकार रामकथा का आयोजन भी देश के अलग-अलग हिस्सों में लगातार होता रहता है। भाषा-बोली जो भी हो, लेकिन रामकथा की भावना सभी को जोड़ती है, प्रभु भक्ति के साथ एकाकार करती है। यही तो भारतीय आस्था की, हमारे आध्यात्म की, हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा की ताकत है। इसने गुलामी के मुश्किल कालखंड में भी अलग-अलग हिस्सों को, अलग-अलग वर्गों को जोड़ा, आज़ादी के राष्ट्रीय संकल्प के लिए एकजुट प्रयासों को सशक्त किया। हज़ारों वर्षों से बदलती स्थितियों के बावजूद भारत के अडिग-अटल रहने में हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति की बड़ी भूमिका रही है।


भाइयों और बहनों,


हमारी आस्था, हमारी संस्कृति की धारा सद्भाव की है, समभाव की है, समावेश की है। इसलिए जब बुराई पर अच्छाई को स्थापित करने की बात आई तो प्रभु राम ने सक्षम होते हुए भी, खुद से सब कुछ करने का सामर्थ्‍य होने के बावजूद भी उन्‍होंने सबका साथ लेने का, सबको जोड़ने का, समाज के हर तबके के लोगों को जोड़ने का, छोटे-बड़े जीवमात्र को, उनकी मदद लेने का और सबको जोड़ करके उन्‍होंने इस काम को संपन्न किया। और यही तो है सबका साथ, सबका प्रयास। ये सबका साथ, सबका प्रयास का उत्तम प्रमाण प्रभु राम की ये जीवन लीला भी है, जिसके हनुमान जी बहुत अहम सूत्र रहे हैं। सबका प्रयास की इसी भावना से आज़ादी के अमृतकाल को हमें उज्जवल करना है, राष्ट्रीय संकल्पों की सिद्धि के लिए जुटना है।


और आज जब मोरबी में केशवानंद बापूजी की तपोभूमि पर आप सब के दर्शन का मौका मिला है। तब तो हम सौराष्ट्र में दिन में लगभग 25 बार सुनते होंगे कि अपनी यह सौराष्ट्र की धरती संत की धरती, सूरा की धरती, दाता की धरती, संत, सूरा और दाता की यह धरती हमारे काठियावाड की, गुजरात की और एक प्रकार से अपने भारत की अपनी पहचान भी है। मेरे लिए खोखरा हनुमान धाम एक निजी घर जैसी जगह है। इसके साथ मेरा संबंध मर्म और कर्म का रहा है। एक प्रेरणा का रिश्ता रहा है, बरसों पहले जब भी मोरबी आना होता था, तो यहाँ कार्यक्रम चलते रहते थे और शाम को मन होता था, चलो जरा हनुमान धाम जा आते हैं। पूज्य बापू के पास 5-15 मिनट बिताते हैं, उनके हाथ से कुछ प्रसाद लेते जाये। और जब मच्छु डेम की दुर्घटना बनी, तब तो ये हनुमान धाम अनेक गतिविधियों का केंद्र बना हुआ था। और उसके कारण मेरा स्वाभाविक रूप से बापू के साथ घनिष्ठ संबंध बना। और उन दिनों में चारो तरफ जब लोग सेवाभाव से आते थे, तब यह सब स्थान केन्द्र बन गये। जहां से मोरबी के घर-घर में मदद पहुंचाने का काम किया जाता था। एक सामान्य स्वयंसेवक होने के कारण मैं लंबे समय आपके साथ रहकर उस दुख के क्षण में आपके लिए जो कुछ किया जा रहा था, उसमें शामिल होने का मुझे मौका मिला। और उस समय पूज्य बापू के साथ जो बातें होती थी, उसमें मोरबी को भव्य बनाने की बात, ईश्वर की इच्छा थी और अपनी कसौटी हो गई ऐसा बापू कहा करते थे। और अब हमें रुकना नहीं है, सबको लग जाना है। बापू कम बोलते थे, परंतु सरल भाषा में आध्यात्मिक दृष्टि से भी मार्मिक बात करने की पूज्य बापू की विशेषता रही थी। उसके बाद भी कई बार उनके दर्शन करने का सौभाग्य मिला। और जब भूज-कच्छ में भूकंप आया, मैं ऐसा कह सकता हूँ कि मोरबी की दुर्घटना में से जो पाठ पढा था जो शिक्षण लिया था, ऐसी स्थिति में किस तरह काम चाहिए, उसका जो अनुभव था, वो भूकंप के समय काम करने में उपयोगी बना। और इसलिए मैं इस पवित्र धरती का खास ऋणी हुं, कारण जब भी बड़ी सेवा करने का मौका मिला तब मोरबी के लोग आज भी उसी सेवाभाव से काम करने की प्रेरणा देते है। और जैसे भूकंप के बाद कच्छ की रौनक बढ गई है, ऐसी आफत को अवसर में पलटने का गुजरातियों की जो ताकत है, उसको मोरबी ने भी बताया है। आज आप देखो चीनी माटी उत्पादन, टाइल्स बनाने काम, घडी बनाने का काम कहो, तो मोरबी ऐसी एक औद्योगिक गतिविधि का भी केन्द्र बन गया है। नहीं तो पहले, मच्छु डेम के चारो तरफ ईटों के भठ्ठे के सिवाय कुछ दिखाई नहीं देता था। बडी-बडी चिमनी और ईटों की भठ्ठी, आज मोरबी आन, बान और शान के साथ खडा है। और मैं तो पहले भी कहता था, कि एकतरफ मोरबी, दूसरी तरफ राजकोट और तीसरी तरफ जामनगर। जामनगर का ब्रास उद्योग, राजकोट का इंजीनियरिंग उद्योग और मोरबी का घड़ी का उद्योग कहो की सिरामिक का उद्योग कहो..इन तीनों का त्रिकोण देखते हैं तो लगता है कि हमारे यहां नय़ा मिनी जापान साकार हो रहा है। और यह बात आज मैं देख रहा हु, सौराष्ट्र के अंदर आए तो ऐसा त्रिकोण खड़ा हुआ है, और अब तो उसमें पीछे खड़ा  हुआ कच्छ भी भागीदार बन गया है। इसका जितना उपयोग करेंगे, और जिस तरह मोरबी में इन्फ्रास्ट्रक्चर  का विकास हुआ है, वह मुख्य रूप से सबके साथ जुड़ गया है। इस अर्थ में मोरबी, जामनगर, राजकोट और इस तरफ कच्छ. एक तरह से रोजगारी की नई तक पैदा करने वाला एक सामर्थ्यवान, छोटे-छोटे उद्योगों से चलता केन्द्र बनकर उभरा है। और देखते ही देखते मोरबी एक बड़े शहर का रूप लेने लगा, और मोरबी ने अपनी खुद की पहचान बना ली है। और आज दुनिया के अनेक देशों में मोरबी के प्रोडक्ट पहुंच रहे हैं। जिसके कारण मोरबी की अलग छाप बन गई है, और यह छाप धरती पर जो संतो, महंतो, महात्माओं ने कुछ न कुछ, जब सामान्य जीवन था तब भी उन्होने तप किया, हमें दिशा दी और उसका ये परिणाम है। और अपना गुजरात तो जहां देखो वहां श्रद्धा-आस्था का काम चलता ही है, दाताओं की कोई कमी नहीं, कोई भी शुभ काम लेकर निकलो तो दाताओ की लंबी लाइन देखने को मिल जाती है। और एक प्रकार से स्पर्धा हो जाती है। और आज तो काठियावाड एक प्रकार से यात्राधाम का केन्द्र बन गया है, ऐसा कह सकता हूँ, कोई जिला ऐसा बाकी नहीं है, जहां महीने में हज़ारों की मात्रा में लोग बाहर से न आते हो। और हिसाब करें तो, एक प्रकार से यात्रा कहो कि टूरिज्म को, इसने काठियावाड की एक नई ताकत खड़ी की है। अपना समुद्र किनारा भी अब गूंजने लगा है, मुझे कल नार्थ-ईस्ट के भाइयों से मिलने का मौका मिला, उत्तर-पूर्वीय राज्यों  के भाइयों, सिक्किम, त्रिपुरा, मणिपुर के लोगों से मिलने का मौका मिला। वो सब थोड़े दिन पहले गुजरात आये थे, और पुत्री की शादी करने के लिये साजो-सामान में भागीदार बने, श्रीकृष्ण और रुकमणी के विवाह में रुकमणी के पक्ष से सब आये थे। और यह घटना खुद में ताकत देती है, जिस धरती पर भगवान कृष्ण का विवाह हुआ था, उस माधवपुर के मेले में पूरा नॉर्थ-ईस्ट उमड़ पडा, पूरब और पश्चिम के अद्भूत एकता का एक उदाहरण दिया। और वहां से जो लोग आये थे उनके हस्त शिल्प की जो बिक्री हुई, उसने तो नॉर्थ-ईस्ट के लिए आवक में एक बड़ा स्रोत खडा कर दिया है। और अब मुझे लगता है कि ये माधवपुर का मेला जितना गुजरात में प्रसिद्ध होगा, उससे ज्यादा पूर्व भारत में प्रसिद्ध होगा। आर्थिक गतिविधि जितनी बढती है, अपने यहां कच्छ के रण में रणोत्सव का आयोजन किया, और अब जिसको रणोत्सव जाना हो तो वाया मोरबी जाना पड़ता है। यानि की मोरबी को जाते-जाते उसका लाभ मिलता है, अपने मोरबी के हाई-वे के आस-पास अनेक होटल बन गए है। कारण कच्छ में लोगों का जमावडा हुआ, तो मोरबी को भी उसका लाभ मिला, और विकास जब होता है, और इस प्रकार मूलभूत विकास होता है, तब लंबे समय के सुखकारी का कारण बन जाता है। लंबे समय की व्यवस्था का एक भाग बन जाता है, और अब हमने गिरनार में रोप-वे बनाया, आज बुजुर्ग भी जिसने जीवन में सपना देखा हो, गिरनार ना जा सका हो, कठिन चढाई के कारण, अब रोप-वे बनाया तो सब मुझे कहते 80-90 साल के बुजुर्गो को भी उनके संतान लेकर आते है, और वे धन्यता प्राप्त करते है। पर इसके साथ-साथ श्रद्धा तो है, परंतु आवक अनेक स्त्रोत पैदा होते है। रोजगारी मिलती होती है, और भारत की इतनी बड़ी ताकत है कि हम कुछ उधार का लिये बिना भारत के टूरिज्म का विकास कर सकते हैं। उसे सही अर्थ में प्रसारित-प्रचारित करें, और उसके लिए पहली शर्त है कि सभी तीर्थ क्षेत्रों में ऐसी सफाई होनी चाहिए, कि वहां से लोगों को सफाई अपनाने का शिक्षण मिलना चाहिए। नहीं तो हमें पहले पता है कि मंदिर में प्रसाद के कारण इतनी तकलीफ होती है, और अब तो मैंने देखा है कि प्रसाद भी मंदिर में पैकिंग में मिलता है। और जब मैंने कहा प्लास्टिक का उपयोग नहीं करना तो मंदिरों में अब प्रसाद प्लास्टिक में नहीं देते, जिसमें बड़ी मात्रा में गुजरात के मंदिर प्लास्टिक में प्रसाद नहीं देते। इसका अर्थ यह हुआ कि अपने मंदिर और संतो, महंतो जैसे समाज बदलता है, संजोग बदलते हैं, और उस संजोग के हिसाब से कैसे सेवा करनी उसके लिए लगातार काम करते रहते हैं। और परिवर्तन लाते रहते हैं, हम सबका काम है कि हम सब उसमें से कुछ सीखे, अपने जीवन में उतारे, और अपने जीवन के अंदर सबसे ज्यादा लाभ लें। आजादी के अमृत महोत्सव का समय है, अनेक महापुरुषों ने देश की आजादी के लिए बलिदान दिया है। परंतु उससे पहले एक बात ध्यान रखना चाहिए, कि 1857 के पहले आजादी की जो पूरी पृष्ठभूमि तैयार की, जिस आध्यात्मिक चेतना का वातावरण खड़ा किया। इस देश के संतो, महंतो, ऋषि-मुनियों, भक्तों ने, आचार्यो ने और जो भक्ति युग का प्रारंभ हुआ, उस भक्ति युग ने भारत की चेतना को प्रज्ज्वलित किया। और उससे आजादी के आंदोलन को एक नई ताकत मिली, अपने यहां संत शक्ति, सांस्कृतिक विरासत, उसका एक सामर्थ्य रहा है, जिन्होंने हमेशा सर्वजन हिताय, सर्वन सुखाय, सर्वजन कल्याण के लिए समाज जीवन में कुछ न कुछ काम किया है, और इसके लिए तो हनुमान जी को याद रखने का मतलब ही सेवाभाव-समर्पणभाव । हनुमानजी ने तो यहीं सिखाया है, हनुमानजी की भक्ति सेवापूर्ति के रूप में थी। हनुमानजी की भक्ति समर्पण के रुप में थी। मात्र कर्मकांड वाली भक्ति हनुमानजी ने कभी नहीं किया, हनुमानजी ने खुद को मिटाकर, साहस कर, पराक्रम कर खुद की सेवा की उंचाइओ को बढाते गये। आज भी जब आजादी के 75 वर्ष मना रहे हैं तब हमारे अन्दर का सेवाभाव जितना प्रबल बनेगा, जितना परोपकारी बनेगा, जितना समाज जीवन को जोड़ने वाला बनेगा। ये राष्ट्र ज्यादा से ज्यादा सशक्त बनेगा, और आज अब भारत ऐसे का ऐसे रहे, ये जरा भी नहीं चलेगा, और अब हम जागते रहें या सोते रहें पर आगे बढ़े बिना छुटकारा नहीं है, दुनिया की स्थिति ऐसी बनी है, आज सारी दुनिया कहने लगी है कि आत्मनिर्भर बनना होगा। अब जब संतों के बीच में बैठा हुं, तब हम लोगों को नहीं सिखाए, लोकल के लिए वोकल बनो, वोकल फॉर लोकल ये बात लगातार कहनी चाहिए कि नहीं। अपने देश में बनी, अपने लोगों द्वारा बनाई गई, अपने मेहनत से तैयार की हुई चीज ही घर में उपयोग करें, ऐसा जो वातावरण बनेगा, आप सोचिए कितने सारे लोगों को रोजगार मिलेगा। बाहर से लाने में अच्छा लगता है, कुछ 19-20 का फर्क हो, पर भारत के लोगों ने बनाया हो, भारत के पैसे से बना हो, भारत के पसीने की उसमें महक हो, भारत के धरती की महक हो, तो उसका गौरव और उसका आनंद अलग ही होता है। और उससे अपने संतो-महंतो जहां जाये वहां भारत में बनी हुई चीज़ें खरीदने के आग्रही बने। तो भी हिन्दुस्तान के अंदर रोजी-रोटी के लिए किसी प्रकार की तकलीफ ना हो ऐसे दिन सामने आ जाये, और जब हम हनुमानजी की प्रशंसा करते हैं कि हनुमानजी ने ये किया, वो किया। लेकिन हनुमानजी ने क्य़ा कहा वहीं हमारे जीवन के अंदर की प्रेरणा है। हनुमानजी हमेशा कहते हैं-


”सो सब तब प्रताप रघुराई, नाथ न कछू मोरि प्रभुताई”, यानी अपने हर काम अपनी हर सफलता का श्रेय हमेशा उन्‍होंने प्रभु राम को दिया, उन्‍होंने कभी ये नहीं कहा कि मेरे कारण हुआ है। जो कुछ भी हुआ है प्रभु राम के कारण हुआ है। आज भी हिन्‍दुस्‍तान जहां भी पहुंचा है, आगे जहां भी संकल्‍प करना चाहता है, उसका एक ही रास्‍ता है, हम सभी भारत के नागरिक….और वही शक्ति है। मेरे लिए तो 130 करोड़ मेरे देशवासी, वही राम का स्‍वरूप हैं। उन्‍हीं के संकल्‍प से देश आगे बढ़ रहा है। उन्‍हीं के आशीर्वाद से देश आगे बढ़ रहा है। उस भाव को ले करके हम चलें, इसी भाव के साथ मैं फिर एक बार इस शुभ अवसर पर आप सबको अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं। हनुमान जी के श्री चरणों में प्रणाम करता हूं।


बहुत-बहुत धन्‍यवाद!


डिस्क्लेमर: प्रधानमंत्री के संबोधन के बीच उनके गुजराती भाषा में किये गए उद्बोधन का यहाँ भावानुवाद किया गया है, मूल भाषण हिंदी और गुजराती भाषा में हैं।


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DS/LP/ST/NS




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