मथुरा स्थित के डी मेडिकल कालेज, हास्पीटल एंड रिसर्च सेंटर में हड्डियों की जटिल विकृतियों का सफल इलाज
मथुरा के आसपास के इलाकों में भूजल में मौजूद फ्लोराइड के कारण लोगों में बढ़ रही है हड्डियों की विकृतियां
मथुरा, 01 दिसंबर : मथुरा के आसपास के इलाकों में भूजल में फ्लोराइड की अधिक मौजूदगी के कारण लोगों की हड्डियां खराब हो रही है और अर्थराइटिस और ओस्टियो आर्थराइटिस जैसी जोड़ों की समस्याएं बढ़ रही है।
के डी मेडिकल कालेज, हास्पीटल एंड रिसर्च सेंटर के आर्थोपेडिक विभाग के प्रमुख डा. अमन गोयल ने बताया कि फ्लोराइड युक्त पानी के लगातार पीने से हड्डियां कमजोर हो जाती है, जोड़ों में दर्द होता है और जोड़ों में कड़ापन आ जाता है और उनमें आर्थराइटिस एवं ओस्टियोआर्थराइटिस जैसी समस्याएं हो जाती है। गंभीर स्थिति में हाथ-पैर की हड्डियां टेड़ी हो जाती है। बीमारी के बढ़ जाते पर रीढ़ भी बाँस की तरह सीधा हो जाती है। मरीज न तो झुक सकता और न ही घुटने मोड़ सकता है।
डा. अमन गोयल ने आज आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि जब पैर की हड्डियां टेढी हो जाती है तो मरीज लंगड़ा कर चलने लगता है जिससे घुटने खराब हो जाते हैं और घुटने बदलने की नौबत आ जाती है। के डी हास्पीटल में हर महीने काफी संख्या में ऐसे मरीज इलाज के लिए आते हैं जिनके पैर बिल्कुल टेढ़-मेढ़े हो चुके होते हैं और जिनका घुटना बिल्कुल खराब हो चुका होता है। ऐसे मरीज एक तरह से विकलांग जिंदगी बीता रहे होते हैं लेकिन के डी हास्पीटल के आर्थोपेडिक विभाग में ऐसे मरीजों का इलाज करके उन्हें सामान्य एवं सक्रिय जीवने जीने में सक्षम बनाया है। हड्डियों की जटिल विकृतियों से ग्रस्त ऐसे मरीजों के पैर की हड्डियां सीधी करनी पड़ती है और साथ में खराब घुटने का भी बदलना पड़ता है। कई अस्पतालों में इसके लिए कई सर्जरी की जाती है लेकिन के डी हास्पीटल में एक बार की सर्जरी की मदद से पैर की खराब हड्डियों को ठीक किया जाता है तथा खराब घुटने के स्थान पर कृत्रिम घुटने लगा दिए जाते हैं। आजकल सोने की तरह के कृत्रिम घुटने भी विकसित हुए हैं जिन्हें गोल्डन नी इंम्प्लांट कहा जाता है। अब के डी मेडिकल कालेज, हास्पीटल एंड रिसर्च सेंटर में गोल्डन नी इंम्प्लांट उपलब्ध हो गए हैं। हमारे देष के प्रमुख षहरों के बड़े अस्पतालों में घुटना बदलने की सर्जरी में गोल्डन नी इम्प्लांट का उपयोग पिछले कुछ समय से हो रहा था लेकिन अब मथुरा के मरीज भी गोल्डन नी इंप्लांट अपने षहर में ही लगा सकेंगे।
डा. अमन गोयल ने बताया कि गोल्डन नी इम्प्लांट का इस्तेमाल होने के कारण मरीजों को दोबारा घुटने की सर्जरी कराने की जरूरत खत्म हो गई है। धातु के परम्परागत इम्प्लांट में एलर्जी के कारण इम्प्लांट के खराब होने का खतरा होता था जिससे कई मरीजों को दोबारा घुटना बदलवाना पड़ता था लेकिन गोल्डन नी इम्प्लांट में एलर्जी का खतरा नहीं होता है और साथ ही यह इम्प्लांट 30 से 34 साल तक चलता है जिसके कारण ये इम्प्लांट कम उम्र के मरीजों के लिए भी उपयोगी है। इस सर्जरी में एक घंटे का समय लगता है।
डा. अमन गोयल ने बताया कि गोल्डन नी इंप्लांट की खासियत यह है इसमें धातु और घुटने के उतक (टिश्यू) के बीच सीधा संपर्क नहीं होता है क्योंकि इसमें ‘‘बायोनिक गोल्ड’’ की कोटिंग होती है जो इंप्लांट के अंदर के धातु से घुटने के आसपास के उतक के बीच संपर्क होने से बचाता है। इसके अलावा इंप्लांट के घिसने के कारण निकलने वाले कणों एवं आयनों को भी यह कोटिंग रोकती है। इस तरह से एलर्जी होने का खतरा नहीं होता है। ये धातु कण एवं आयन मरीज के रक्त में घुल कर परेषानी पैदा करते हैं। इस इंप्लांट में धातु की सतह कोमल एवं चिकनी होती है जिससे कम घर्शण होता है और इस तरह से ये इंप्लांट 30 से 35 साल तक चलते हैं जबकि धातु के परम्परागत इंप्लांट 15 से 20 साल तक चलते हैं। गोल्डन नी इंप्लांट की खासियत के कारण विकसित देषों में इसका उपयोग तेजी से हो रहा है साथ ही साथ हमारे देष में भी यह तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।
अस्पताल में गोल्डन नी इंप्लांट सर्जरी कराने वाली मरीज मधुबाला ने कहा कि जब डा. अमन गोयल से से संपर्क किया था तब मेरी हालत बहुत ही अधिक खराब थी। मैं अपने आप चलने-फिरने में भी असमर्थ थी। यहां के डॉक्टर ने घुटने बदलवाने की सलाह दी। डाक्टरों ने गोल्डन नी इंप्लांट लगवाने का परामर्ष दिया जो कि मेरे लिए बिल्कुल नया था। डॉक्टर ने इसके फायदे के बारे में समझाया। मुझे डॉक्टर के अनुभव एवं विषेशज्ञता पर पूरा विष्वास था। इस कारण मैं इसके लिए तैयार हो गई। मैंने गोल्डन नी इम्प्लांट सर्जरी कराई जो पूरी तरह से सफल रही और मैं अब पूरी तरह से चलने-फिरने में सक्षम हूं।
उन्होंने बताया कि इस इंप्लांट के कारण मरीज घुटने को पूरी तरह से मोड़ सकते हैं, वे पालथी मार कर बैठ सकते हैं, झुक सकते हैं और आराम से सीढ़ियां चढ़ सकते हैं। बायोनिक गोल्ड की सतह टाइटेनियम नियोबियम नाइट्राइड से बनी होती है जो पूरी तरह से बायोकम्पेटिबल होती है। इस कोटिंग के कारण इसका रंग गोल्डन होता है और इस कारण से इसे गोल्डन नी इंप्लांट बोला जाने लगा है, क्योंकि यह हूबहू गोल्ड जैसा दिखता है।