Khabaron Ke Khiladi:चिराग का दावा, ओवैसी की चिट्ठी, तेजस्वी की यात्रा; बिहार में बढ़ते चुनावी पारे का विश्लेषण

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला

Published by: संध्या

Updated Sat, 20 Sep 2025 05:10 PM IST

बिहार में चुनाव है इसका पता वहां तेजी होती राजनीति हलचलों से पता चल रहा है। चिराग पासवान, असदुद्दीन ओवैसी और तेजस्वीर की यात्रा बिहार में चर्चा की विषय बन रही है।

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– फोटो : अमर उजाला

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बिहार में इस हफ्ते तीन बड़े घटनाक्रम हुए। पहला चिराग पासवान को मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा, दूसरा असदुद्दीन ओवैसी का लालू यादव को चिट्ठी लिखकर महागठबंधन में शामिल करने के लिए कहना और तीसरा तेजस्वी यादव का एक नई यात्रा लेकर निकलना। ये घटनाक्रम यह बताते हैं कि बिहार पूरी तरह से चुनावी मोड में आ चुका है। अब इन सारे घटनाक्रमों का क्या मतलब है? क्या मायने हैं? इसी पर इस हफ्ते खबरों के खिलाड़ी में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार समीर चौगंवकर, पूर्णिमा त्रिपाठी, अवधेश कुमार और राकेश शुक्ल मौजूद रहे।  

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समीर चौगांवकर: देखिए वोट अधिकार यात्रा कांग्रेस की यात्रा थी, राहुल गांधी की यात्रा थी, तेजस्वी यादव उसके अंदर शामिल हुए थे। तेजस्वी यादव को लग रहा था कि जिस तरीके से उन्होंने राहुल गांधी को 2019 में प्रधानमंत्री पद का दावेदार बता दिया था। उसी तरह राहुल गांधी भी बिहार के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में तेजस्वी यादव को समर्थन देंगे। जब पत्रकारों ने राहुल से पूछा कि क्या तेजस्वी को मुख्यमंत्री के रूप में आप देखना चाहेंगे? घोषित करेंगे। इस पर राहुल गांधी ने बहुत साफ जवाब नहीं दिया। 

तो तेजस्वी यादव को यह लगा कि जिस तरीके से इस पूरी यात्रा को कांग्रेस की रैली के रूप में इसको देखा गया है। तो अब जो असली मुद्दे हैं उसको लेकर यात्रा की जाए और कांग्रेस को भी यह संदेश देने की कोशिश की जाए कि बिहार का सबसे बड़ा नेता तेजस्वी यादव और महागठबंधन के भी नेता वही हैं और वही मुख्यमंत्री बनेंगे। यह भी सही है कि महागठबंधन की सरकार आएगी तो तेजस्वी ही मुख्यमंत्री होंगे। कोई दूसरा विकल्प नहीं है।  

पूर्णिमा त्रिपाठी: अब कोई यह उम्मीद करें कि एक बार राहुल गांधी के साथ यात्रा करके तेजस्वी घर बैठ जाएंगे। और वो फील्ड में नहीं जाएंगे, लोगों के बीच में नहीं जाएंगे क्योंकि एक बार राहुल के साथ यात्रा कर चुके है, तो ऐसा तो होने वाला नहीं है। तेजस्वी को हमने पिछली बार भी देखा था। वो एक दिन में आठ-आठ जगह जाकर रैलियां कर रहे थे। बहुत धुआंधार प्रचार उन्होंने उस वक्त भी किया था। तो तेजस्वी पूरी तरह से चुनावी मोड में हैं और वो राहुल गांधी के साथ हों या अकेले हों जब तक चुनाव नहीं हो जाते हैं। वह इसी तरह हमें सक्रिय दिखेंगे और इसमें किसी को कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए। इसमें भी कोई शक नहीं है कि आरजेडी की तरफ से सीएम का चेहरा भी वही है और गठबंधन में एक अघोषित विचार भी यही है कि आफ्टर इलेक्शन सीएम वही बनेंगे। 

महिला और युवा तो हमेशा से बिहार की राजनीति में बहुत ज्यादा इफेक्टिव रहे हैं। नीतीश की सफलता का भी राज यही है कि महिलाएं उनको पूरा भरपूर समर्थन करती हैं। युवाओं का समर्थन भी उनको मिलता है। तो अगर कोई दूसरे किसी वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है तो उसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी। 

राकेश शुक्ल: ओवैसी भी बड़े खांटी  राजनेता है क्योंकि इस बीच में एक सुगबुगाहट हुई थी कि ओवैसी वोट काटते हैं लालू का मुस्लिम वोट ले जाते हैं। वो 2015 में पहला चुनाव लड़े कोई अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। 2020 में वो पांच सीट जीते। उसमें से चार विधायक आरजेडी में चले गए। इस बार चुनाव के पहले लालू प्रसाद की तरफ से अंडर करंट यह मैसेज दिया गया कि ओवैसी सिर्फ वोट काटने के लिए लड़ रहे हैं। ओवैसी ने एक बड़ा दांव खेला है। उन्होंने यह प्रस्ताव भेजा कि भाई हमें आप महागठबंधन में शामिल कर लीजिए। लालू उनको शामिल नहीं करेंगे तो उनके वोटर को यह मैसेज जाएगा कि यह पॉलिटिक्स करने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। वोट काटने के लिए नहीं लड़ रहे।

अवधेश कुमार: चिराग पासवान जी का उत्तर यह आया है कि हमारा कार्यकर्ता अगर नहीं कहता कि हमारे नेता मुख्यमंत्री बनेंगे तब हमको सोचना पड़ता। हर पार्टी के कार्यकर्ताओं को अपने नेता के बारे में यही सोचना चाहिए।  चिराग पासवान इतने व्यवहारिक हैं कि उनको पता है कि आज की स्थिति में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की धारणा क्या उनको मुख्यमंत्री बनने के लिए जनता दल का भी सपोर्ट तो चाहिए ना। हम का भी सपोर्ट चाहिए। भारतीय जनता पार्टी का भी सपोर्ट चाहिए। ऐसे तो मुख्यमंत्री नहीं बन सकते हैं। राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन में भी उनकों मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने की संभावना नहीं है। उनकी आकांक्षाएं भी होंगी। लेकिन उनको भी पता है कि सच क्या होना है। 

बीजेपी का इस बार जो आधार है वो यह है कि कोई बड़ा भाई नहीं, कोई छोटा भाई नहीं। टिकट का जो आधार होगा किसी पार्टी में वह जीत होगा। एकदम जीत होगा, वह सर्वे के आधार पर होगा। पिछला परफॉर्मेंस होगा और बाकी वहां का सामाजिक समीकरण होगा और विपक्ष के उम्मीदवार को मिलाकर होगा। यह एक आधार बन चुका है। सभी पार्टियों को बता दिया गया है। तो, यह मानस एनडीए में बीजेपी ने तैयार किया है।

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