संवाद न्यूज एजेंसी, चंबा/मंडी।
Published by: Krishan Singh
Updated Sat, 30 Aug 2025 10:40 AM IST
प्रदेश में चंबा से लेकर मणिमहेश तक मची तबाही के सातवें दिन जिला मुख्यालय पहुंचे यात्रियों ने पहली बार पूरा मंजर बयां किया।

डल झील से भरमौर तक हर जगह मची तबाही।
– फोटो : संवाद
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हिमाचल प्रदेश में चंबा से लेकर मणिमहेश तक मची तबाही के सातवें दिन जिला मुख्यालय पहुंचे यात्रियों ने पहली बार पूरा मंजर बयां किया। भलेई निवासी 27 वर्षीय अभिषेक राजपूत ने बताया कि 23 अगस्त को सुबह 6 बजे अचानक से मौसम खराब हो गया। देखते ही देखते इतनी भयावह स्थिति हो गई कि डल झील का परिक्रमा मार्ग पूरी तरह से लबालब हो गया। पानी का सैलाब इतना बढ़ा कि अस्थायी दुकानें, लंगर और लोगों का सामान पानी के तेज बहाव में बह गए। दो दिन वहीं रहे। 25 अगस्त की सुबह शिव के गूर ने भविष्यवाणी की कि पवित्र स्थल पर गंदगी के कारण ये तबाही हुई।
तकरीबन सभी पुलिया बह गईं
अब लोग कुछ समय बाद घर निकल सकते हैं। श्रद्धालुओं ने हिम्मत दिखाते हुए नीचे मणिमहेश डल से हड़सर के लिए वापसी करनी शुरू की। गौरीकुंड, सुंदरासी, धन्छो, दोनाली, हड़सर से भरमौर तक तबाही मची हुई थी। न रास्ते बचे थे न सड़कें और न आगे हाईवे। सड़कों या रास्तों पर बनीं तकरीबन सभी पुलिया बह गईं हैं। जैसे तैसे वह हड़सर पंहुचे। बाकी लोग फंसे हुए थे। हड़सर से 25 अगस्त को रात लंगर समिति की गाड़ी में भरमौर पहुंचे। यहां दो दिन रुकने के बाद 29 अगस्त की सुबह वे भरमौर से निकले। खड़ामुख टनल से आगे जांघी तक जगह-जगह हाईवे तबाह हो चुका है।
श्रद्धालुओं ने ये कहा
ऊना निवासी रजत कुमार ने बताया कि मणिमहेश यात्रा पर बाइकों पर गए श्रद्धालु अपनी जान बचाकर चंबा पैदल ही पहुंच रहे हैं, लेकिन उन्हें भरमौर और हड़सर में खड़े अपने वाहनों की चिंता सता रही है। हड़सर और भरमौर में करीब 3,000 हजार बाइकें सड़क के किनारे खड़ी हैं। शुक्रवार को जांघी पहुंचे बोधराज, केवल और राहुल ने कहा कि मणिमहेश में 27 अगस्त को खराब हालात को देख अपनी खच्चरों के साथ डल झील से हड़सर के लिए रवाना हुए तो धन्छो पहुंचने पर पानी का बहाव काफी बढ़ गया। दुनाली और धन्छो में नाले पर बनीं दोनों पुलियां बह गईं। इसके बाद वापस आठ किलोमीटर गौरीकुंड की चढ़ाई चढ़ी। वहां से दूसरी तरफ से हड़सर जाने वाले रास्ते से फिर से उतराई शुरू की।
‘समितियां न होतीं तो अब तक कई लोग भूखे प्राण त्याग चुके होते’
जम्मू-कश्मीर निवासी शिव कुमार, सुनील कुमार रिंकू और संसार चंद ने कहा कि अपनों से चार दिन से बात न होने के कारण परेशान थे। हमीरपुर निवासी देवेंद्र कुमार ने कहा कि लंगर समितियां न होतीं तो अब तक कई लोग भूखे प्राण त्याग चुके होते। इस प्रकार की अव्यवस्था पहली बार यात्रा के दौरान देखने को मिली है। गौरव निवासी बिलासपुर ने बताया कि हड़सर में 10 हजार से अधिक वाहन क्षतिग्रस्त हुए हैं। अनीता बोलीं, 2000 लोगों के साथ खड़ामुख में फंसी थी, ऊपर से भराभराकर पहाड़ियां गिर रही थीं। वहां पर पुलिस जवानों के फोन, वॉकीटॉकी तक कार्य नहीं कर रहे थे।
पैरों में पड़ गए छाले, सड़कों को बहाल करने में महीनों लग जाएंगे
मंडी जिला के लडभड़ोल क्षेत्र की रहने वाली महिला अनीता देवी ने वहां पर भयावह मंजर बताते हुए कहा कि प्रशासन की लापरवाही से वहां लोग जिंदगी और मौत के पालने में झूल रहे हैं। मात्र चार इंच बचे रास्ते पर जान जोखिम में डालकर सफर किया और सुरक्षित चंबा पहुंचे। अनीता देवी के साथ लडभड़ोल क्षेत्र के ही नौ लोग साथ थे। खड़ामुख से चंबा पैदल पहुंची अनीता ने बताया कि बुधवार को वह करीब 2000 लोगों के साथ खड़ामुख में फंसी थी। कुछ लोग वहां टनल के अंदर तो कोई टनल के बाहर थे। रविवार से बुधवार तक लोग वहां फंसे रहे। पहाड़ियां भरभरा कर गिर रही थीं, बच्चे रो रहे थे। नेटवर्क न होने से न तो वहां प्रशासन और न ही घर में अपनों से कोई संपर्क हो रहा था। वहां दो जेसीबी मशीनें खड़ी थी, लेकिन ऑपरेटर अनुमति मिलने पर ही कार्य शुरू करने की बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि रविवार को सुंदरासी में बादल फटा था। कोई मदद के लिए नहीं पहुंचा। अब वहां सड़कों को बहाल करने में महीनों लग जाएंगे। अब बड़ी मुश्किल से अन्य लोगों के साथ खड़ामुख से लेकर चंबा तक पैदल आएं हैं। पैरों में छाले पड़ गए है। महिला ने कहा कि मणिमहेश यात्रा को कमाई का जरिया न बनाया जाए। सरकार और प्रशासन सुविधाएं भी उपलब्ध करवाएं। इस तरह की परिस्थितियों में सबसे पहले मोबाइल नेटवर्क होना जरूरी है।
बुजुर्ग ने खोल दिया घर, कहा- 6 महीने का रखा है राशन, पकाओ और खाओ
मणिमहेश यात्रा में फंसे यात्रियों की मदद के लिए लूणा गांव के एक बुजुर्ग ने मदद को हाथ बढ़ाए। घर में जमा करके रखा 6 माह का राशन इस्तेमाल के लिए खोल दिया। कहा कि यहां रहो, राशन पकाओ और खाओ। यूपी से दोस्तों के साथ मणिमहेश यात्रा से लौटे उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर निवासी शिवम ने बताया कि 25 अगस्त की रात 10 बजे वह लूणा गांव पहुंचे। यहां पहले से करीब 50 गाड़ियां और 400 के करीब लोग फंसे हुए थे। एक दुकान खुली थी वो भी खाने-पीने की वस्तुएं खत्म होने के बाद बंद हो गई। छोटे बच्चों के साथ चार परिवार भी यहां फंसे थे। लोगों की परेशानी देख एक स्थानीय बुजुर्ग ने अपना घर लोगों के ठहरने के लिए खोल दिया। घर में रखे बिस्तर, गद्दे, चादरें सभी प्रभावितों को इस्तेमाल के लिए दे दीं। घर के एक कमरे में अगले 6 महीनों के लिए राशन जमा करके रखा था। बुजुर्ग ने यह राशन भी आपदा में फंसे लोगों के लिए खोल दिया। शिवम ने बताया बुजुर्ग ने मदद न की होती तो लोगों को कई दिनों तक भूखे रहना पड़ता।
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