रांची : दिल्ली की आवोहवा दिनोंदिन खराब होती जा रही है। हवा की गुणवत्ता के सूचकांक (एक्यूआई) में गिरावट हो रही है। हवा की गुणवत्ता में गिरावट के कारण सांस की बीमारियों से संबंधित ओपीडी में आने वाले नए रोगियों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। वायु प्रदूषण और धूल के कणों के स्तर में वृद्धि के कारण अधिक संख्या में लोग घरघराहट, सांस की तकलीफ और सीने में जकड़न से पीड़ित हो रहे हैं।

मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशलिटी, साकेत के पल्मोनोलॉजी विभाग के एसोसिएट डायरेक्टर और लंग ट्रांसप्लांट मेडिसिन के प्रमुख डॉ. विवेक सिंह ने कहा, ‘‘देश में वायु प्रदूषण के बढ़ने के कारण सभी लोगों का स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। विषेशकर बच्चों के लिए यह स्थिति अधिक चिंताजनक है क्योंकि इसका सामना करने के लिए उनके महत्वपूर्ण अंग पर्याप्त रूप से परिपक्व नहीं होते हैं। यह बच्चों में उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को भी नष्ट कर देता है और संक्रमण, छींक आने और सांस में घरघराहट जैसी समस्याएं पैदा करता है। सांस से संबिंधत समस्याओं का पता लगाने के लिए पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट (पीएफटी) किया जाता है जिससे यह पता चलता है कि फेफड़ों में कितनी हवा रह सकती है, कोई व्यक्ति अपने फेफड़ों से कितनी जल्दी हवा को अंदर और बाहर ले जा सकता है, और फेफड़े कितनी अच्छी तरह से ऑक्सीजन लेते हैं और शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालते हैं। इस जांच से फेफड़ों की बीमारियों का भी पता लगाया जा सकता है और इसकी गंभीरता को मापा जा सकता है। पीएफटी की रिपोर्ट खराब आने का मतलब है कि फेफड़े की कार्यक्षमता और पल्मोरनी रोग होने की अधिक संभावनाएं हैं।’’

प्रदूषण के सबसे घातक रूप के रूप में वायु प्रदूषण उभरा है और यह दुनिया भर में समय से पहले होने वाली मौतों का चौथा प्रमुख जोखिम कारक है। दुनिया भर में समय से पहले होने वाली कुल मौतों में से एक – चौथाई से अधिक मौत भारत में होती है।

विष्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यु एच ओे) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में सबसे आगे है। शीर्ष 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 शहर भारत के हैं। दिल्ली का प्रदूषण सालाना 43 लाख मौतों में योगदान देता है जो निमोनिया, स्ट्रोक, फेफड़ों के कैंसर, हृदय रोग और क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के कारण होती हैं।

डॉ. सिंह ने कहा, ’’पीएम 2.5 का बढ़ना अधिक उम्र के लोगों के लिए समस्या पैदा करता है। इसके कारण 5 साल से कम उम्र के बच्चों में सांस लेने में तकलीफ होने लगती है क्योंकि इसके कारण उनका इम्यून सिस्टम खराब हो जाता है। जबकि बुजुर्गों को सीने में जकड़न, साइनुसाइटिस, अस्थमा और सांस लेने में कठिनाई की शिकायत होती है। चूंकि पीएम 2.5 अत्यंत बारीक होता है, इसलिए यह बच्चों के विकसित हो रहे फेफड़ों में बैठ सकता है और अस्थमा और अन्य श्वसन समस्याओं को और बदतर कर सकता है।’’

पर्यावरण में कोयला से होने वाला प्रदूषण भारत में हमेशा महत्वपूर्ण होगा क्योंकि यह ऊर्जा उत्पादन का प्रमुख स्रोत है। इसके सूक्ष्म कण इतने हल्के होते हैं कि वे हवा में तैरते रहते हैं और फेफड़ों में गहराई में बैठ जाते हैं। फेफड़ों के कैंसर, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और हृदय रोग से भी इसका संबंध है।

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, लोगों को स्मोक जैसी ष्वसन संबंधित परेशानियां पैदा करने वाली चीजों से बचने की सलाह दी जाती है। उन्हें अधिक ट्रैफिक वाले समय के दौरान सैर नहीं करने और पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों के साथ अच्छे पौष्टिक आहार (हरी पत्तेदार सब्जियां और मौसमी फल) लेने की सलाह दी जाती है। स्वास्थ्य से संबंधित किसी प्रकार की समस्या होने पर खुद दवा लेने से बचें और डॉक्टरों की सलाह पर नियमित रूप से इनहेलर का उपयोग करें। इसके अलावा घरों के अंदर वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए एयर प्यूरिफायर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि बाहर जाना जरूरी हो, तो बाहर जाते समय एन95 मास्क का उपयोग करें।’’

वायु की खराब गुणवत्ता को देखते हुए लोगों की जागरूकता बढ़ाने और समस्या को प्रभावी ढंग से हल करने के तरीके खोजने की तत्काल आवश्यकता है।