Nobel Prize 2025: शरीर की शक्तिशाली प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करना आवश्यक है अन्यथा यह हमारे अपने अंगों पर ही हमला कर सकती है। मैरी ई. ब्रुनको, फ्रेड राम्सडेल और शिमोन साकागुची को इस संबंध में उनकी अभूतपूर्व खोजों के लिए 2025 का फिजियोलॉजी या मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार मिला।
यह पुरस्कार शरीर की रक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) को बेहतर समझने की खोज- पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस के लिए मिला है। इन खोजों ने अनुसंधान की नई राह खोल दी है। इससे कैंसर तथा ऑटोइम्यून रोगों के उपचारों को और प्रभावी बनाने में मदद मिल सकती है।
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The 2025 #NobelPrize in Physiology or Medicine has been awarded to Mary E. Brunkow, Fred Ramsdell and Shimon Sakaguchi “for their discoveries concerning peripheral immune tolerance.” pic.twitter.com/nhjxJSoZEr
— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 6, 2025
पिछले साल का पुरस्कार अमेरिकी नागरिक विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रुवकुन को सूक्ष्म ‘आरएनए’ (राइबोन्यूक्लिक एसिड) की खोज के लिए दिया गया था। यह सम्मान 1901 से 2024 के बीच 115 बार 229 नोबेल पुरस्कार विजेताओं को प्रदान किया जा चुका है।
खोज की महत्वपूर्ण बातों को जानिए
पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस एक ऐसा तरीका है जिससे शरीर अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को अनियंत्रित होने और शरीर के ही ऊतकों पर हमला करने से रोकता है। जिस खोज के लिए वैज्ञानिकों ने इस साल का नोबेल दिया गया है उसमें ये पता लगाया गया है कि नियामक टी कोशिकाओं के रूप में जानी जाने वाली विशेष प्रतिरक्षा कोशिकाएं शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कैसे संतुलित रखती हैं?
टी सेल्स, श्वेत रक्त कोशिकाओं का एक प्रकार हैं जो संक्रमणों से शरीर की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये बोन मैरो में उत्पन्न होती हैं और थाइमस ग्रंथि में परिपक्व होती हैं इसीलिए इनका यह नाम पड़ा है। प्रतिरक्षा प्रणाली कई प्रकार की टी कोशिकाएं बनाती है, जिनमें से प्रत्येक की विशिष्ट भूमिकाएं होती हैं। जहां अधिकांश टी कोशिकाएं बैक्टीरिया, वायरस और कैंसर कोशिकाओं जैसे हानिकारक आक्रमणकारियों का पता लगाने और उन्हें नष्ट करने वाले तंत्र की तरह काम करती हैं।
वहीं नियामक टी कोशिकाएं शांतिदूतों की तरह काम करती हैं। नियामक-टी कोशिकाएं प्रतिरक्षा प्रणाली को शरीर के अपने ऊतकों पर गलती से हमला करने से रोकती हैं, जिसे ऑटो इम्यून कहते हैं।
खोज की प्रगति को समझिए
- शिमोन सकागुची ने सन 1995 में पहली बार नियामक-टी कोशिकाओं की पहचान की और उस समय की प्रचलित मान्यता को चुनौती दी कि इम्यून टॉलरेंस केवल थाइमस में हानिकारक कोशिकाओं को हटाकर ही स्थापित होती है, इस प्रक्रिया को सेंट्रल टॉलरेंस के नाम से जाना जाता है। उन्होंने खोज के माध्यम से दिखाया कि एक अतिरिक्त परत मौजूद होती है जिसकी मदद से ये कोशिकाएं शरीर में संचारित होती हैं।
- मैरी ब्रुनको और फ्रेड रामस्डेल ने 2001 में फॉक्सपी3 जीन की खोज करके अगली छलांग लगाई, जो नियामक टी कोशिकाओं के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने पाया कि इस जीन में म्यूटेशन चूहों और इंसानों दोनों में गंभीर ऑटोइम्यून विकारों का कारण बनता है, जैसे कि आईपीईएक्स सिंड्रोम नामक एक दुर्लभ स्थिति में होता है। सकागुची ने बाद में साबित किया कि फॉक्सपी3 नियामक टी कोशिकाओं के निर्माण और कार्य को नियंत्रित करता है।
इन तीनों वैज्ञानिकों के बारे में जानिए
- मैरी ई. ब्रुनको (जन्म 1961) ने अमेरिका के प्रिंसटन विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और वर्तमान में सिएटल स्थित इंस्टीट्यूट फॉर सिस्टम्स बायोलॉजी में वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।
- फ्रेड रैम्सडेल (जन्म 1960) ने 1987 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और वर्तमान में सैन फ्रांसिस्को स्थित सोनोमा बायोथेरेप्यूटिक्स में वैज्ञानिक सलाहकार हैं।
- शिमोन साकागुची (जन्म 1951) ने 1976 में एम.डी. और 1983 में क्योटो विश्वविद्यालय, जापान से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वे ओसाका विश्वविद्यालय के इम्यूनोलॉजी फ्रंटियर रिसर्च सेंटर में विशिष्ट प्रोफेसर हैं।
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स्रोत
They understood how the immune system is kept in check
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