Sahitya AajTak Day 2 Highlights: दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में साहित्य आजतक 2025 का दूसरा दिन शानदार रहा. यहां साहित्यकारों, इतिहासकारों, गीतकारों और गायकों ने मंच पर जान फूंकी. पूरे दिन अलग-अलग सेशन में कई तरह की चर्चाएं हुईं, साहित्यकारों में पुरस्कार बांटे गए और शाम होते-होते माहौल पूरी तरह सुरीला हो गया. दर्शक तालियों और ठहाकों से गूंजते रहे. यह दिन साहित्य की गहराई और संगीत की मिठास का अनोखा संगम था.
सत्र ‘भारतीयता के नायक-खलनायक’ में इतिहासकार हिंदोल सेनगुप्ता और विक्रम संपत ने भारतीय इतिहास की अनकही कहानियां खोलीं. उन्होंने बताया कि हमारा इतिहास विदेशी नजर से लिखा गया है, जिसमें वीरों और वीरांगनाओं की गाथाएं दब गईं. हिंदोल ने कहा, “अगर आप भारतीय हैं, तो औरंगजेब आपका हीरो नहीं हो सकता.” विक्रम ने मार्क्सवादी इतिहास लेखन पर सवाल उठाए और स्वामी विवेकानंद का हवाला देकर कहा कि इतिहास हमें भविष्य बताता है.
‘अगर आप भारतीय हैं तो औरंगजेब आपका हीरो नहीं हो सकता…’, साहित्य आजतक के मंच से बोले इतिहासकार हिंदोल सेनगुप्ता
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गीतकार मनोज मुंतशिर के सत्र ‘जूते फटे पहन के आकाश पे चढ़े थे’ में संघर्ष की दिलचस्प कहानियां सुनाईं. उन्होंने बताया कि उन्होंने कभी ओरिजिनल गाना नहीं लिखा, बल्कि मोमिन, फिराक और तुलसीदास से सीखा. मुंबई की बारिश में जूते फटे पहनकर सपने देखने की बात कही. एक फिल्म में सिर्फ पत्नी-दोस्त देखने आए, लेकिन हिट गाने जैसे ‘ये गलियां मेरी गलियां’ से सफलता मिली. उन्होंने कविता पढ़ी, “लपक के जलते थे, बिल्कुल शरारे जैसे थे.”
‘मैंने एक भी ओरिजिनल गाना नहीं लिखा…’ साहित्य आजतक में ऐसा क्यों बोले मनोज मुंतशिर?
अभिनेता राजेश तैलंग ने ‘साहित्य तक’ सत्र में ओशो की किताबों से मिली विद्रोही सोच साझा की. 13 साल की उम्र से ओशो पढ़ने लगे, जिससे गंभीरता आई. परिवार के कलाकार होने की वजह से अभिनय में संगीत का साथ मिला, जैसे ‘बंदिश बैंडिट्स’ में पखावज बजाना. टीवी, फिल्म और ओटीटी के फर्क बताए. गालिब, मीर और बच्चन जैसे लेखकों की तारीफ की. उन्होंने अपनी कविता सुनाई, “शिकायतों की फेहरिस्त बनाने बैठा हूं / कागज के बीच एक लकीर बनाई है.”
13 साल की उम्र से पढ़ने लगे थे ओशो, वहीं से आई गंभीरता… साहित्य आजतक में बोले अभिनेता राजेश तैलंग
‘आजतक साहित्य जागृति सम्मान’ समारोह में राज्यसभा उपसभापति हरिवंश ने कई हस्तियों को सम्मानित किया. मालिनी अवस्थी को ‘चंदन कीवाद’ के लिए, गौहर रजा को ‘मिथकों से विज्ञान तक’ के लिए, चित्रा मुद्गल को लाइफटाइम अचीवमेंट, अमोल पालेकर और संध्या गोखले को ‘अमानत एक स्मृतिकोष’ के लिए पुरस्कार मिला. युवा वर्ग में रिंकी झा ऋषिका, रश्मि कुलश्रेष्ठ और अमित तिवारी को किताबों के लिए सम्मानित किया गया. हरिवंश ने कहा कि साहित्य भावनाओं को बचाता है. यह समारोह साहित्य की नई पीढ़ी को प्रेरित करने वाला रहा.
मालिनी अवस्थी और गौहर रजा को ‘आजतक साहित्य जागृति सम्मान’, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने किया सम्मानित
शाम के सुरीले सत्रों ने माहौल बिल्कुल संगीतमय बना दिया. गायिका हरगुन कौर ने ‘मैं प्रेम दा प्याला पी आया’, ‘बुल्ला की जाणां मैं कौन’, ‘लग जा गले’ जैसे गाने गाकर दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया. लाइट्स, तालियां और नाचते कदमों से हॉल जादुई हो गया. कुमार सत्यम ने ‘ये शाम सूफियाना’ में ‘सादगी तो हमारी जरा देखिए’, ‘छाप तिलक सब छीनी’ और परिवार की पुरानी ठुमरी ‘हमरी अटरिया’ सुनाई, जिससे सूफी और शास्त्रीय संगीत का रंग चढ़ा. सुरेश वाडकर ने ‘सपने में मिलती है’ और ‘नैनों में बदरा छाए’ से मंत्रमुग्ध कर दिया.
सुरमयी शाम, धड़कते दिल और तालियों की गूंज… साहित्य आजतक में चला सिंगर हरगुन कौर की आवाज का जादू
दूसरे दिन का समापन सिंगर जसबीर जस्सी ने पंजाबी फोक, सूफी और बॉलीवुड मिक्स से हुआ. बाबा बुल्ले शाह के गीत ‘मौसे नैनां मिला के’, ‘अंखियां उड़ीं दीं’ और हिट्स ‘लौंग डा लशकारा’, ‘दिल ले गई कुड़ी’ गाए. दर्शक खड़े होकर तालियां बजाते रहे, नाचने लगे. स्टैंडिंग ओवेशन मिला. यह शाम साहित्य और संगीत की यादगार शाम बनी, जो तीसरे दिन की उत्सुकता बढ़ा गई.
बाबा बुल्ले शाह के गीतों से जसबीर जस्सी ने बनाया ‘साहित्य आजतक’ की शाम को यादगार
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