Hong Kong – CE welcomes and thanks the country’s recruitment of payload specialists in Hong Kong

CE welcomes and thanks the country’s recruitment of payload specialists in Hong Kong

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     The Chief Executive, Mr John Lee, today (October 2) welcomed and expressed gratitude for the country’s recruitment of payload specialists for the first time in the Hong Kong Special Administrative Region (HKSAR) in the launch of the recruitment of the fourth batch of astronauts. He described the move as uplifting and exciting with great historical significance.

      

     “This year marks the 73rd anniversary of the founding of the People’s Republic of China. This gift by the country to the HKSAR at this joyful moment not only doubled the happiness when Hong Kong people are celebrating the National Day but also fully reflected the country’s care, support and trust to Hong Kong,” Mr Lee said.

      

     “The China Manned Space Agency’s recruitment of payload specialists in the HKSAR provides an opportunity for Hong Kong people to realise their space aspiration and contribute to the country. The HKSAR Government will render its full assistance and co-operation to the country’s selection exercise.

      

     “The recruitment exercise in Hong Kong signifies that the country encourages and welcomes Hong Kong compatriots to contribute to the country’s development. It also demonstrates the country’s confidence in Hong Kong’s level in scientific research and development as well as her care for the development of Hong Kong’s young people.

      

     “This recruitment is also an educational opportunity for all to better understand our country. The HKSAR Government encourages students and various sectors of Hong Kong to take this opportunity to understand more about the remarkable achievements of the national manned space programme and boost their sense of national identity,” Mr Lee said.

      

     Mr Lee has designated the Deputy Financial Secretary, Mr Michael Wong, to take charge of cross-bureau co-ordination as well as publicity and education, and the Secretary for Innovation, Technology and Industry, Professor Sun Dong, to take charge of the selection exercise.

PM thanks Anupam Kher ji for his mother’s blessings


The Prime Minister, Shri Narendra Modi has thanked mother of Shri Anupam Kher and countrymen for their blessings. Shri Kher called on the Prime Minister and presented a Rudraksh mala from her mother to Shri Modi today. 


The Prime Minister tweeted : 


“बहुत-बहुत धन्यवाद @AnupamPKher जी। यह आदरणीया माताजी और देशवासियों का आशीर्वाद ही है, जो मुझे मां भारती की सेवा के लिए निरंतर प्रेरित करता रहता है।”


बहुत-बहुत धन्यवाद @AnupamPKher जी। यह आदरणीया माताजी और देशवासियों का आशीर्वाद ही है, जो मुझे मां भारती की सेवा के लिए निरंतर प्रेरित करता रहता है। https://t.co/6hFfd7ivmJ

— Narendra Modi (@narendramodi) April 23, 2022

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DS




(Release ID: 1819441)
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Text of PM’s reply to the Motion of Thanks to President’s address in Rajya Sabha


माननीय सभापति जी,


राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर यहां पर विस्तार से चर्चा हुई है। मैं राष्ट्रपति जी का धन्यवाद करने के लिए इस चर्चा में हिस्सा लेने के लिए आपने समय दिया, मैं आपका बहुत आभारी हूं। आदरणीय राष्ट्रपति जी ने बीते दिनों कोरोना के इस कठिन कालखंड में भी देश में चहुंदिशा में किस प्रकार से initiative लिए, देश के दलित, पीड़ित, गरीब, शोषित, महिला, युवा उनके जीवन को सशक्तिकरण के लिए, उनके जीवन में बदलाव के लिए देश में जो कुछ भी गतिविधि हुई है, उसका एक संक्षिप्त खाका देश के सामने प्रस्तुत किया। और उसमें आशा भी हैं, विश्वास भी है, संकल्प भी है, समर्पण भी है। अनेक माननीय सदस्यों ने विस्तार से चर्चा की है। माननीय खड़गेजी ने कुछ देश के लिए, कुछ दल के लिए, कुछ खुद के लिए काफी कुछ बातें बताई थी। आनंदशर्मा जी ने भी उनको जरा समय की तकलीफ रही, लेकिन फिर भी उन्होंने कोशिश की। और उन्होंने ये कहा कि देश की उपलब्धियों को स्वीकारा जाए। श्रीमान मनोज झा जी ने राजनीति से अभिभाषण परे होना चाहिए, इसकी अच्छी सलाह भी दी। प्रसुन्न आचार्य जी ने बीर बाल दिवसदिवस और नेताजी से जुड़े कानून के संबंध में भी विस्तार से सराहना की। डॉक्टर फौजिया खान जी ने संविधान की प्रतिष्ठा को लेकर विस्तार से चर्चा की। हर सदस्य ने अपने अनुभव के आधार पर अपने राजनीतिक सोच के आधार पर और राजनीतिक स्थिति के आधार पर अपनी बातें हमारे सामने रखी हैं। मैं सभी माननीय सदस्यों का इसके लिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।


आदरणीय सभापति जी,


आज देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। 75 साल का आजादी के कालखंड में देश को दिशा देने का, देश को गति देने का अनेक स्तर पर प्रयास हुए हैं। और उन सबका लेखा-जोखा लेकर के जो अच्छा है उसे आगे बढ़ाना, जो कमियां हैं उसको correct करना। और जहां नए initiative लेने की आवश्यकता है वो नए initiative लेना और देश जब आजादी के 100 साल मनाएगा, तब हमें देश को कहां ले जाना है, कैसे ले जाना है, किन-किन योजनाओं के सहारे हम ले जा सकते हैं, इसके लिए ये बहुत ही महत्वपूर्ण समय है। और हम सभी राजनीतिक नेताओं ने राजनीतिक क्षेत्र के कार्यकर्ताओं ने अपना ध्यान पर भी और देश का ध्यान भी आने वाले 25 साल के लिए देश को कैसे आगे ले जाना, इसके लिए केंद्रित करना चाहिए और मुझे विश्वास है कि उससे जो संकल्प उभरेंगे, उस संकल्प में सबकी सामूहिक भागीदारी होगी। सबका ownership होगी और उसके कारण जो 75 साल की गति थी, उससे अनेक गुना गति के साथ हम देश को बहुत कुछ दे सकते हैं।


आदरणीय सभापति जी,


कोरोना एक वैश्विक महामारी है और पिछले 100 साल में मानव जाति ने इतना बड़ा संकट नहीं देखा है। और संकट की तीव्रता देखि‍ए, मां बीमार है कमरे में लेकिन बेटा उस कमरे में प्रवेश न कर पाए। पूरे मानव जाति के लिए ये कितना बड़ा संकट था। और अभी भी ये संकट बहुरूपिया है, नये-नये रंग-रूप लेकर के कभी न कभी कुछ न कुछ आफतें लेकर के आता है। और पूरा देश, पूरी दुनिया, पूरी मानव जाति इससे जूझ रही है। हर कोई रास्ते खोज रहे हैं। आज 130 करोड़ के भारत के लिए दुनिया में जब प्रारंभिक कोरोना का प्रारंभ हुआ। चर्चा यह रही कि भारत का क्या होगा? और भारत के कारण दुनिया की कितनी बर्बादी होगी, इसी दिशा में चर्चा हो रही थी। लेकिन ये 130 करोड़ देशवासियों की संकल्प शक्तियों का सामर्थ्य अब उन्होंने जो भी जीवन में उपलब्ध था, उसके बीच में discipline का प्रारंभ करने का प्रयास किया कि आज विश्व में भारत के प्रयासों की सराहना हो रही है और इसका गौरव, ये किसी राजनीतिक दल का कालखंड नहीं था। ये achievement देश का है। 130 करोड़ देशवासियों का है। अच्छा होता इसका यश लेने की भी कोशिश करते आप लोग कि आपके खाते में भी कुछ जमा होता। लेकिन अब ये भी सीखाना पड़े। खैर वैक्सीनेशन के संबंध में अभी प्रश्न काल में हमारे आदरणीय मंत्री जी ने विस्तार से बाते बताई हैं कि जिस प्रकार से भारत वैक्सीनेशन बनाने में innovation में, research में और उसकी implementation में आज भी दुनिया में वैक्सीन के खिलाफ बहुत बड़े आंदोलन चल रहे हैं। लेकिन वैक्सीन से मेरा लाभ हो या ना लाभ हो लेकिन कम से कम वैक्सीन लगाऊंगा तो मेरे कारण किसी और का नुकसान नहीं होगा, इस एक भावना ने 130 करोड़ देशवासियों को वैक्सीन लेने के लिए प्रेरित किया है। ये भारत का मूलभूत चिंतन का प्रतिबिंब है, जो विश्व के लोगों के सामने रखना हर हिन्दुस्तानी का कर्तव्य है। सिर्फ खुद की रक्षा करने का विषय होता तो लूं या ना लूं विवाद होता। लेकिन जब उसके मन में विचार आया कि मेरे कारण किसी को कष्ट ना हो अगर इसके लिए मुझे भी डोज लेना है तो मैं ले लूं और उसने ले लिया। ये भारत के मन का, भारत के मानव मन की, भारत की मानवता की, हम गौरवपूर्ण रूप से दुनिया के सामने कह सकते हैं। आज शत प्रतिशत डोज के लक्ष्य की ओर हम तेज गति से आगे बढ़ रहे हैं। मैं सम्‍मानित सदस्य से या सभी आदरणीय सदस्यों से, इनके सामने हमारे frontline workers, हमारे healthcare workers, हमारे वैज्ञानिक, इन्होंने जो काम किया है, उसकी सराहना करने से भारत की प्रतिभा तो खिलेगी- खिलेगी। लेकिन इस प्रकार से जीवन खपाने वाले लोगों का भी हौसला बुलंद होगा और इसलिए सदन बड़े गौरव के साथ उनका अभिनंदन करता है, उनका धन्यवाद करता है।


आदरणीय सभापति जी,


इस कोरोना काल में 80 करोड़ से भी अधिक देशवासियों को इतने लंबे कालखंड के लिए मुफ्त राशन की व्यवस्था, उनका घर का चूल्हा कभी ना जले, ऐसी स्थिति पैदा ना हो। ये काम भारत ने करके दुनिया के सामने भी उदाहरण प्रस्‍तुत किया। इसीकोरोना काल में जबकि अनेक कठिनाइयां थी, बंधन थे, उसके बावजूद भी, प्रगति में रूकावटों की बार-बार obstacles के बीच भी लाखों परिवारों को, गरीबों को, पक्का घर देने के अपने वादे की दिशा में हम लगातार चलते रहे और आज गरीब का भी घर खर्चा लाखों में होता है। जितने करोड़ों परिवारों को ये घर मिला है ना, हर गरीब परिवार आज लखपति कहा जा सकता है।


आदरणीय सभापति जी,


इसी कोरोना काल में पांच करोड़ ग्रामीण परिवार नल से जल पहुंचाने का काम करके एक नया रिकॉर्ड प्रस्थापित किया है। इसी कोरोना काल में जब पहला लॉकडाउन आया तब भी बहुत समझदारी के साथ, कईयों से चर्चा करने के बाद थोड़ा साहस की भी जरूरत थी कि गांवों में किसानों को लॉकडाउन से मुक्त रखा जाए। निर्णय बड़ा महत्वपूर्ण था लेकिन किया। और उसका परिणाम ये आया कि हमारे किसानों ने कोरोना के इस कालखंड में भी बंपर पैदावार की और एमएसपी में भी रिकॉर्ड खरीदी करके नए विक्रम प्रस्थापित किए। इसी कोरोना काल में इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े हुए कई प्रोजेक्ट्स पूरे किये गए क्योंकि हम जानते हैं कि ऐसे संकट के काल में इंफ्रास्ट्रक्चर पर जो इंवेस्टमेंट होता है वो रोजगार के अवसरों को सुनिश्चित करता है। और इसलिए हमने उस पर भी बल दिया ताकि रोजगार भी मिलता रहे और सारे प्रोजेक्ट्स हम पूरे भी कर पाएं। कठिनाईयां थी लेकिन उसको कर पाए। इसी कोरोना काल में चाहे जम्मू-कश्मीर हो, चाहे नॉर्थ ईस्ट हो, हर काल खंड में विस्तार से इसका विकास की यात्रा को आगे बढ़ाया गया और उसको हमने चलाया है। इसी कोरोना कालखंड में हमारे देश के युवाओं ने खेल जगत के हर क्षेत्र में हिन्दुस्तान का तिरंगा, हमारा परचम लहराने में बहुत बड़ा काम किया, देश को गौरव दिया। आज पूरा देश हमारे युवाओं ने खेल जगत में जिस प्रकार से प्रदर्शन किया है और कोरोना के इन सारे बंधनों के बीच उन्होंने अपनी तपस्या को कम नहीं होने दिया। अपनी साधना को कम नहीं होने दिया और देश का गौरव बढ़ाया है।


आदरणीय सभापति जी,


इसी कोरोना काल में आज जब हमारा देश का युवा स्टार्ट अप यानी भारत का युवा एक पहचान बन गई है, एक synonymous हो गया है। आज हमारे देश के युवा स्टार्ट अप के कारण, स्टार्ट अप की दुनिया में टॉप 3 में हिन्दुस्तान को जगह दिलायी है।


आदरणीय सभापति जी,


इसी कोरोना काल में चाहे COP26 का मामला हो, चाहे G20 समूह का क्षेत्र हो या चाहे समाज जीवन के अंदर अनेक-अनेक विषयों में काम करना हो, चाहे दुनिया के 150 देशों को दवाई पहुंचाने की बात हो, भारत ने एक लीडरशिप रोल लिया है। आज भारत की इस लीडरशिप की दुनिया में चर्चा है।


आदरणीय सभापति जी,


जब संकट का काल होता है, चुनौतियां अपार होती हैं। विश्व की हर शक्ति अपने ही बचाव में लगी होती है। कोई किसी की मदद नहीं कर पाता है। ऐसे कालखंड में उस संकटों से बाहर निकालना और मुझे अटल बिहारी वाजपेयी जी के कविता के वो शब्द हम सबके लिए प्रेरणा दे सकते हैं। अटल जी ने लिखा था-व्याप्त हुआ बर्बर अंधियारा, किन्तु चीर कर तम की छाती, चमका हिन्दुस्तान हमारा।शत-शत आघातों को सहकर, जीवित हिन्दुस्तान हमारा। जग के मस्तक पर रोली सा, शोभित हिन्दुस्तान हमारा।अटल जी के ये शब्द आज के इस काल खंड में भारत के सामर्थ्य का परिचय कराते हैं।


आदरणीय सभापति जी,


इस कोरोना काल में सभी क्षेत्रों को रूकावटों के बीच भी आगे बढ़ने के लिए भरपूर प्रयास किये गए हैं। लेकिन इसमें कुछ क्षेत्र थे जिस पर थोड़ा विशेष बल भी दिया गया। क्योंकि वो व्यापक जनहित में आवश्यक था, युवा पीढ़ी के लिए आवश्यक था। कोरोना काल में जिन विशेष क्षेत्रों पर फोकस किया, उस पर से में दो की चर्चा जरूर करना चाहूंगा। एक एमएसएमई सेक्टर, सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला एक क्षेत्र है, हमने सुनिश्चित किया। इसी प्रकार से खेती-बाड़ी क्षेत्र, इसमें भी कोई रूकावट ना आए, इसको निश्चित किया और उसकी की वजह से मैंने वर्णन किया। बंपर crop हुआ, सरकार ने रिकॉर्ड खरीद भी की। महामारी के बावजूद गेहूं धान की खरीदी की नए रिकॉर्ड बने। किसानों को ज्यादा एमएसपी मिला और वो भी direct benefit transfer की स्कीम के तहत मिला। पैसा सीधा उनके बैंक खातों में जमा हुआ। और मैंने तो पंजाब के लोगों के कई वीडियो देखे क्योंकि पंजाब में पहली बार direct benefit transfer से पैसा गया। उन्होंने कहा साहब मेरा खेत तो उतना ही साइज है, हमारी मेहनत उतनी ही है, लेकिन ये खाते में इतना रुपया एक साथ आता है, ये पहली बार जिंदगी में हुआ है। इससे संकट के समय किसानों के पास कैश की सुविधा रही, ऐसे कदमों से ही इतने बड़े सेक्टर को shocks और disruption से हम बचा पाए। इसी प्रकार से एमएसएमई सेक्टर, ये उन सेक्टरों में था जिसको आत्मनिर्भर भारत पैकेज का सबसे अधिक लाभ मिला। अलग-अलग मंत्रालयों नेजो  पीएलआई स्कीम लांच की, उससे मैन्युफैक्चरिंग को बल मिला। भारत अब लीडिंग मोबाईल मैन्युफैक्चरर बन गया है और एक्सपोर्ट में भी इसका योगदान बढ़ रहा है। ऑटोमोबाइल और बैट्री, इस क्षेत्र में भी पीएलआई स्कीम उत्साहजनक परिणाम दे रही है। जब इतने बड़े सतर पर मैन्युफैक्चरिंग और वो भी ज्यादातर एमएसएमई सेक्टर के द्वारा होता है तो स्वाभाविक है दुनिया के देशों से ऑर्डर भी मिलते हैं, ज्यादा अवसर भी मिलते हैं। और सत्य तो ये है कि इंजीनियरिंग गुड्स जो बड़ी मात्रा में एमएसएमई बनाते हैं, इस समय जो एक्सपोर्ट का आंकड़ा बड़ा बना है, उसमें ये इंजीनियरिंग गुड का भी बहुत बड़ा योगदान है, ये भारत के लोगों के कौशल का और भारत के एमएसएमई की ताकत को प्रदर्शित करता है। हमारी डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री को हम देखें, यूपी और तमिलनाडु में डिफेंस कॉरिडोर बना रहे हैं। MoUs  जो हो रहे हैं, जिस प्रकार से लोग इस क्षेत्र में आ रहे हैं, एमएसएमई क्षेत्र के लोग इसमें आ रहे हैं, डिफेंस के सेक्टर में, ये अपने आप में उत्साहवर्धक है कि देश के लोगों में ये सामर्थ्य है और देश को डिफेंस के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए हमारे एमएसएमई क्षेत्र के लोग बहुत साहस जुटा रहे हैं, आगे आ रहे हैं।


आदरणीय सभापति जी,


एमएसएमई, कुछ GEM, उसके माध्यम से सरकार में जो सामान की खरीदी होती है, उसका एक बहुत बड़ा माध्यम बनाया है और वो प्लेटफार्म के कारण आज बहुत सुविधा बनी है। उसी प्रकार से हमने एक बहुत बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय किया है और निर्णय ये है कि सरकार में 200 करोड़ से, 200 करोड़ रुपये तक के जो टेंडर होंगे वो टेंडर ग्लोबल नहीं होंगे। उसमें हिन्दुस्तान के लोगों को ही अवसर दिया जायेगा और जिसके कारण हमारे एमएसएमई सेक्टर को और उसके द्वारा हमारे रोजगार को बल मिलेगा।


आदरणीय सभापति जी,


इस सदन में आदरणीय सदस्यों ने रोजगार के संबंध में भी कुछ महत्वपूर्ण बातें उठाई हैं। कुछ लोगों ने सुझाव भी दिये हैं। कितनी जॉब्स क्रिएट हुए हैं, ये जानने के लिए EPFO payroll, ये EPFO payroll सबसे विश्वस्त माध्यम माना जाता है। साल 2021 में लगभग एक करोड़ बीस लाख नए EPFO के payroll से जुड़े और ये हम ना भूलें, ये सारे फॉर्मल जॉब्स हैं, मैं इंफॉर्मल की बात नहीं कर रहा, फॉर्मल जॉब्स हैं। और इन्हीं में भी 60-65 लाख 18-25 साल की आयु के हैं, इसका मतलब ये हुआ कि ये उम्र पहली जॉब की है। यानी पहली बार जॉब मार्केट में उनकी एंट्री हुई है।


आदरणीय सभापति जी,


रिपोर्ट बताती है कि कोरोना की पहले के तुलना में कोविड रिस्ट्रिक्‍शन खुलने के बाद हायरिंग दो गुनी बढ़ गई है। नेस्कॉम की रिपोर्ट में भी यही ट्रेंड की चर्चा है। इसके अनुसार 2017 के बाद, direct indirect करीब नेस्कॉम का कहना है, 27 लाख जॉब्स IT Sector मेंऔर ये सिर्फ स्किल की दृष्टि से नहीं, उससे ऊपर के लेवल के लोग होते हैं जिनको रोजगार प्राप्त हुआ है। मैन्युफैक्चरिंग बढ़ने की वजह से भारत के ग्लोबल एक्सपोर्ट में वृद्धि हुई है और उसका लाभ रोजगार के क्षेत्र में सीधा-सीधा होता है।


आदरणीय सभापति जी,


साल 2021 में, यानी सिर्फ एक साल में भारत में जितने यूनिकॉर्न्‍स बने हैं, वो पहले के वर्षों में बने कुल यूनिकॉर्नस से भी ज्यादा है। और ये सब रोजगार की गिनती में अगर नहीं आता है, तो फिर तो रोजगार से ज्यादा राजनीति की चर्चा ही मानी जाती है।


आदरणीय सभापति जी,


कई माननीय सदस्यों ने महंगाई के लिए चर्चा की है। 100 साल में आई इस भयंकर वैश्विक कोरोना की महामारी, पूरी दुनिया को प्रभावित किया है। अगर महंगाई की बात करें तो अमेरिका में 40 साल में सबसे अधिक महंगाई का ये दौर अमेरिका झेल रहा है। ब्रिटेन, 30 साल में सबसे अधिक महंगाई की मार से आज परेशान है। दुनिया के 19 देशों में जहां यूरो करंसी है, वहां महंगाई का दर हिस्टोरिकली हाईस्ट है, उच्चतम है। ऐसे माहौल में भी महामारी के दबाव के बावजूद हमने महंगाई को एक लेवल पर रोकने का बहुत प्रयास किया है, ईमानदारी से कोशिश की है। 2014 से लेकर 2020 तक, ये दर 4-5% प्रतिशत के आसपास थी। इसकी तुलना जरा यूपीए के दौर से करें तो पता चलेगा कि महंगाई होती क्या है? यूपीए के समय महंगाई डबल डिजिट छू रही थी। आज हम एक मात्र बड़ी इकोनॉमी है, जो हाई ग्रोथ और मिडियम इंफ्लेशन अनुभव कर रहे हैं। बाकी दुनिया की इकोनॉमी को देखें, तो वहां की अर्थव्यवस्था में या तो ग्रोथ स्लो हुई है या फिर महंगाई दशकों के रिकॉर्ड तोड़ रही है।


आदरणीय सभापति जी,


इस सदन में कुछ साथियों ने भारत की निराशाजनक तस्वीर पेश की और पेश करने में आनंद आ रहा था, ऐसा भी लगा रहा था। मैं जब इस प्रकार की निराशाएं देखता हूं तो फिर मुझे लगता है कि सार्वजनिक जीवन में, उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, जय-पराजय होता रहता है, उससे छायी हुई व्यक्तिगत जीवन की निराशा कम से कम देश पर नहीं थोपनी चाहिए। मैं जानता नहीं लेकिन हमारे यहां गुजरात में एक बात है, शरद राव जानते होंगे उनके यहां महाराष्ट्र में भी होगा, कहते हैं कि जब हरियाली होती है, खेत जब हरे-भरे होते हैं, और किसी ने वो हरी-भरी हरियाली देखी हो औरउसी समय बाइ एक्सीडेंट अगर उसकी आंखें चली जाएं, तो जीवन भी उसको वो हरे वाला आख़िरी जो चित्र है वह रहता है। वैसा दुख दर्द 2013 तक के जो दुर्दशा में गुजरा और 2014 में अचानक देश की जनता ने जो रोशनी की, उसमें जोआंखें किसी की चली गईं हैं, उनको पुराने दृश्‍य ही दिखते हैं।


आदरणीय सभापति जी,


हमारे यहां शास्त्रों में कहा गया है-महाजनो येन गतः स पन्थाःअर्थात महाजन लोग, बड़े लोग, जिस पथ पर जाते हैं वहीं मार्ग अनुकरणीय होता है।


मैं आदरणीय सभापति जी,


इस सदन में एक बात कहना चाहता हूं, यहां कोई भी हो, किसी दिशा में बैठा हो, उधर हो, यहां हो, कहीं भी हो, लेकिन जन-प्रतिनिधि अपने-आप में छोटा हो, बड़ा हो, क्षेत्र का लीडर होता है, नेतृत्‍व करता है वो। जो भी उसका कमांड एरिया होगा, वहां के लोग उसको देखते हैं, उसकी बातों को फॉलो करते हैं। और ऐसा सोचना ठीक नहीं है कि हम सत्ता में हैं तो लीडर हो वहां बैठ गएतो अरेरेरे क्‍या हो गया। ऐसा नहीं हो है। कहीं पर भी आप हैं, अगर जन-प्रतिनिधि हैं, आप सच्‍चे अर्थ में लीडर हैं। और लीडर अगर इस प्रकार से सोचेगा, ऐसे निराशा से भरा हुआ लीडर होगा तो क्‍या होगा भई। क्‍या यहां बैठें तभी देश की चिंता करनी है और वहां बैठे तो देश की…अपने क्षेत्र के लोगों की नहीं करनी…ऐसा होता है क्‍या?


किसी से नहीं सीखते तो शरद राव से सीखो। मैंने देखा है शरद राव जी इस उम्र में भी, अनेक बीमारियों के बीच भी क्षेत्र के लोगों को प्रेरणा देते रहते हैं। हमें निराश होने की जरूरत नहीं भाई, और क्‍योंकि आप अगर निराश होते हैं तो आपको जो क्षेत्र…भले अब कम हो गया होगा, लेकिन जो भी होगा, हम सबका दायित्‍व है…खड़गे जी, आप भी अधिरंजन जी जैसी गलती करते हैं। आप थोड़ा पीछे देखिए, जयराम जी ने पीछे जाकर दो-तीन लोगों को तैयार किया हुआ है इस काम के लिए। आप प्रतिष्‍ठा से रहिए, पीछ रखा है, रखा हैव्‍यवस्‍था, जयराम जी बाहर जा करके सूचना ले करके आए, समझा रहे थे। अभी थोड़ी देर में शुरू होने वाला है। आप सम्‍मानीय नेता हैं।


आदरणीय सभापति जी,


सत्‍ता किसी की भी हो, सत्‍ता में कोई भी हो, लेकिन देश के सामर्थ्‍य को कम नहीं आंकना चाहिए। हमने देश के सामर्थ्‍य का पूरे विश्‍व के सामने खुले मन से गौरव-गान करना चाहिए, देश के लिए बहुत आवश्‍यक होता है।


आदरणीय सभापति जी,


सदन में हमारे एक साथी ने कहा, ‘Vaccination is not a big deal.’ मैं ये देखकर हैरान हूं कुछ लोगों को भारत की इतनी बड़ी उपलब्धि, उपलब्धि नहीं लग रही है! एक साथी ने ये भी कहाकि टीकाकरण पर व्‍यर्थ खर्च हो रहा है। ये देश सुनेगा तो क्‍या लगेगा ऐसे लोगों के लिए।


आदरणीय सभापति जी,


कोरोना जब से मानव जात पर संकट पैदा कर रहा है। सरकार ने देश और दुनिया में उपलब्‍ध हर संसाधन जुटाने के लिए भरपूर कोशिश की है। हमारे देश के नागरिकों की रक्षा करने के लिए जितना भी हमारा सामर्थ्‍य था, समझ थी, शक्ति थी और सबको साथ ले करके चलने का हमने प्रयास किया है। और जब तक महामारी रहेगी, तब तक सरकार गरीब से गरीब परिवार का जीवन बचाने के लिए जितना खर्च करना पड़ेगा, खर्चा करने के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन कुछ दल के बड़े नेता बीते दो सालों में, उन्‍होंने जो अपरिपक्‍वता दिखाई है उससे देश को भी बहुत निराशा हुई है। हमने देखा है कि कैसे राजनीतिक स्‍वार्थ में खेल खेले गए हैं। भारतीय वैक्‍सीन के खिलाफ मुहिम चलाई गई है। थोड़ा सोचिए, जो पहले आपने कहा था, आज जो हो रहा है, उसको थोड़ा साथ मिलाकर देखिए, हो सकता है सुधार की संभावना हो तो कुछ काम आ जाएगा।


आदरणीय सभापति जी,


देश की जनता जागरूक है। और मैं देश की जनता का अभिनंदन करता हूं कि उनके हर छोटे-मोटे नेताओं ने ऐसी गलती की तो भी उसने इस संकट के समय ऐसी बातों को कान पर लिया नहीं और वैक्‍सीन के लिए कतार में खड़े रहे। अगर ये न हुआ होता तो बहुत बड़ा खतरा हो जाता। लेकिन अच्‍छा हुआ देश की जनता कुछ नेताओं से भी आगे निकल गई, ये देश के लिए अच्‍छा है। 


आदरणीय सभापति जी,


इस पूरा कोरोना काल खंड एक प्रकार से Federal Structure का उत्‍तम उदाहरण मैं कह सकता हूं। 23 बार शायद किसीएक प्रधानमंत्री को एक कार्यकाल में मुख्‍यमंत्रियों की इतनी मीटिंग करने का अवसर नहीं आया होगा। मुख्‍यमंत्रियों के साथ 23 मीटिंगें की गईं और विस्‍तार से चर्चाऐं की गईं। और मुख्‍यमंत्रियों के सुझाव और भारत सरकार के पास जो जानकारियां थीं, उसमें मिल-जुल करके…क्‍योंकि इस सदन में राज्‍यों से जुड़े हुए वरिष्ठ नेता यहां बैठे हैं, और इसलिए मैं ये कहना चाहूंगा, ये अपने-आप में बहुत बड़ी घटना है। 23 मीटिंगें करना इस कालखंड में और विस्‍तार से चर्चा करके रणनीति बनाना और सबको ऑन बोर्ड ले करके चलना और चाहे केंद्र सरकार हो, राज्‍य सरकार हो या स्‍थानीय स्‍वराज की संस्‍था की इकाइयां हों, सबने मिल करके प्रयास किया है। हम किसी के योगदान को कम नहीं आंकते हैं। हम तो इसको देश की ताकत मानते हैं।


लेकिन आदरणीय सभापति जी,


तो भी आत्‍मचिंतन करने की जरूरत है कुछ लोगों को। जब कोरोना की ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई गई, सरकार की तरफ से विस्‍तार से प्रेजेंटेशन देना था, और एक तरफ से कोशिश की गई कि कुछ दल न जाएं, उनको समझाने की कोशिश हुई और खुद भी नहीं आए। ऑल पार्टी मीटिंग का बहिष्‍कार किया। और मैं शरद राव जी का आभार व्‍यक्‍त करना चाहूंगा। शरद राव जी ने कहा, देखिएभई ये कोई यूपीए का‍ निर्णय नहीं है, मैं जिस-जिस को कह सकता हूं, मैं कहूंगा और शरद राव जी आए, बाकी टीएमसी सहित सभी दल के लोग आए और उन्‍होंने अपने बहुमूल्‍य सुझाव भी दिए। ये संकट देश पर था, मानव जाति पर था। उसमें भी आपने बहिष्‍कार किया, ये पता नहीं आपके ऐसी कौन, कहां से आप सलाह लेते हैं, ये आपका भी नुकसान कर रहे हैं। देश रुका नहीं, देश चल पड़ा है। आप यहां अटक गए और हरेक को आश्‍चर्य हुआ, सब लोग…आप दूसरे दिन का अखबार देख लीजिए, क्‍या आपकी आलोचना हुई है, क्‍यों ऐसा किया? इतना बड़ा काम, लेकिन.


आदरणीय सभापति जी,


हमने Holistic Health Care पर फोकस किया। आधुनिक चिकित्‍सा परम्‍परा, भारतीय चिकित्‍सा पद्धति, दोनों को आयुष मंत्रालय ने भी उस समय बहुत काम किए। सदन में कभी-कभी ऐसे मंत्रालयों की चर्चा भी नहीं होती है। लेकिन ये देखना होगा, आज विश्‍व में हमारे आंध्र, तेलंगना के लोग बताएंगे, हमारी हल्‍दी का एक्‍सपोर्ट जो बढ़ रहा है, वो इस कोरोना ने लोगों को भारत की उपचार पद्धति पर आकर्षित किया, उसका परिणाम है। दुनिया के लोगों, आज कोरोना कालखंड में भारत ने अपने फार्मा उद्योग को भी सशक्‍त किया है। पिछले सात साल में हमारा जो आयुष का उत्‍पादन है उसका एक्‍सपोर्ट बहुत बढ़ा है और नए-नए destination पर पहुंच रहा है। इसका मतलब कि भारत की जो traditional medicine है उसने विश्‍व में अपनी एक पहचान बनाना शुरू किया है। मैं चाहता हूं कि हम सब लोग, जहां-जहां हमारा परिचय हो, इस बात को बल दें, क्‍योंकि ये क्षेत्र हमारा दबा हुआ है। अगर हम उसको…और ऐसा समय है कि स्‍वीकृति बन जाएगी…तो हो सकता है कि भारत की जो traditional medicine की परम्‍परा है, ताकत है, वो दुनिया में पहुंचेगी और काम होगा।


आदरणीय सभापति जी,


आयुष्मान भारत के तहत 80 हज़ार से अधिक हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर आज कार्यरत हैं और हर प्रकार की आधुनिक से आधुनिक सेवाओं देने के लिए उनको सजाया जा रहा है। ये सेंटर गांव और घर के पास ही फ्री टेस्ट समेत बेहतर प्राइमरी हेल्थकेयर सुविधा दे रहे हैं। ये सेंटर केंसर, डायबिटीजऔर दूसरी गंभीर बीमारियों को शुरूआत में ही डिटेक्‍ट करने में मदद कर रहे हैं। 80 हजार सेंटर बने हैं और इसको हम और बढ़ाने की दिशा में तेज गति से काम कर रहे हैं। यानी बहुत महत्‍वपूर्ण बीमारियों में भी, गंभीर बीमारियों में भी उनको स्‍थानीय स्‍तर पर मदद मिलने की संभावना है।


आदरणीय सभापति जी,    


वैसे पुरानी परमपरा ये थी कि बजट के पहले कुछ टैक्‍स लगा दो ताकि बजट में चर्चा न हो, बजट में दिखे नहीं और उस दिन शेयर मार्केट गिर न जाये। हमने ऐसा नहीं किया है, हमने उल्‍टा किया। हमने बजट के पहले 64 हजार करोड़ रुपये पीएम आत्‍मनिर्भर स्‍वस्‍थ भारत योजना के तहत Critical Health Infrastructure के निर्माण के लिए राज्‍यों के अंदर बांटे। अगर ये चीज हम बजट में रखते और बहुत बड़ा बजट शानदार दिखता, शानदार तोहै ही, और शानदार दिखता। लेकिन हम उस मोह में रखने के बजाय कोरोना के समय इसकी तत्‍काल व्‍यवस्‍था करने के लिए हमने पहले इसको किया, और 64 हजार करोड़ रुपये हमने इस काम के लिए दिए।


आदरणीय सभापति जी,


इस बार खड़गे जी बड़ा विशेष बोल रहे थे और कह रहे थे, मुझे तो कह रहे थे कि मैं उस पर बोलूं, इधर-उधर न बोलूं, लेकिन वो क्‍या बोले- उसको भी एक बार चैक कर लिया जाये। सदन में कहा गया कि कांग्रेस ने भारत की बुनियाद डालीऔर भाजपा वालों ने सिर्फ झंडा गाड़ दिया।


आदरणीय सभापति जी,


ये सदन में ऐसे ही हंसी-मजाक में कही गई बात नहीं थी। ये उस गंभीर सोच का परिणाम है और वही देश के लिए खतरनाक है। और वो है, कुछ लोग यही मानते हैं कि हिन्‍दुस्‍तान 1947 में पैदा हुआ। अब उसी के कारण ये समस्‍या होती है। और इसी सोच का परिणाम है कि भारत में पिछले 75 साल में जिसको काम करने का 50 साल मौका मिला था उनकी नीतियों पर भी इस मानसिकता का प्रभाव रहा है और उसी के कारण कई विकृतियां पैदा हुई हैं।


ये डेमोक्रेसी आपकी मेहरबानी से नहीं है और आपको, 1975 में डेमोक्रेसी का गला घोंटने वालों को डेमोक्रेसी के गौरव पर नहीं बोलना चाहिए। 


आदरणीय सभापति जी,


ये छोटी सी उम्र में पैदा हुए हैं, ऐसी जो सोच वाले लोग हैं। उन्‍होंने एक बात दुनिया के सामने गाजे-बाजे के साथ कहनी चाहिए थी, वो कहने से कतरा गए। हमें गर्व के साथ कहना चाहिए था कि भारत, मदर इंडिया ये Mother of Democracy है। डेमोक्रेसी, डिबेट, ये भारत में सदियों से चल रहा है। और कांग्रेस की कठिनाई ये है dynasty के आगे उन्‍होंने कुछ सोचा ही नहीं ये उनकी परेशानी है। और पार्टी में, जो डेमोक्रेसी की बात करते हैं ना वो जरा समझें, भारत के लोकतंत्र को सबसे बड़ा खतरा परिवारवादी पार्टियों का है, ये मानना पड़ेगा। और पार्टी में भी जब कोई एक परिवार सर्वोपरि होता है तब सबसे पहली casualty टेलेंट की होती है। देश ने अर्से तक इस सोच का बहुत नुकसान उठाया है। मैं चाहता हूं कि सभी राजनीतिक दल लोकतांत्रिक आदर्शों और मूल्‍यों को अपने दलों में भी विकसित करें, उसको समर्पित करें। और हिन्‍दुस्‍तान की सबसे पुरानी पार्टी के रूप में कांग्रेस इसकी जिम्‍मेदारी ज्‍यादा उठाए।


आदरणीय सभापति जी,


यहां पर ये कहा गया कि कांग्रेस न होती तो क्‍या होता। इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया, यही सोच का परिणाम है ये।


आदरणीय सभापति जी,


मैं जरा बताना चाहता हूं ये कहा गया है-मैं सोच रहा हूं कि कांग्रेस न होती तो क्‍या होता। क्‍योंकि महात्‍मा गांधी की इच्‍छा थी, क्‍योंकि महात्‍मा गांधी को मालूम था कि इनके रहने से क्‍या-क्‍या होने वाला है। और इन्‍होंने कहा था पहले से इसको खत्‍म करो, इसको बिखेर दो। महात्‍मा गांधी ने कहा था। लेकिन अगर न होती, महात्‍मा गांधी की इच्‍छानुसार अगर हुआ होता अगर महात्‍मा गांधी की इच्‍छा के अनुसार कांग्रेस न होती तो क्‍या होता- लोकतंत्र परिवारवाद से मुक्‍त होता, भारत विदेशी चश्‍मे की बजाय स्‍वदेशी संकल्‍पों के रास्‍ते पर चलता। अगर कांग्रेस न होती तो इमरजेंसी का कलंक न होता। अगर कांग्रेस न होती तो दशकों तक करप्‍शन को संस्‍थागत बनाकर नहीं रखा जाता। अगर कांग्रेस न होती तो जातिवाद और क्षेत्रवाद की खाई इतनी गहरी न होती। अगर कांग्रेस न होती तो सिखों का नरसंहार न होता, सालों-साल पंजाब आतंक की आग में न जलता। अगर कांग्रेस न होती तो कश्‍मीर के पंडितों को कश्‍मीर छोड़ने की नौबत न आती। अगर कांग्रेस न होती तो बेटियों को तंदूर में जलाने की घटनाएं न होतीं। अगर कांग्रेस न होती तो देश के सामान्‍य मानवी को घर, सडक, बिजली, पानी, शौचालय, मूल सुविधाओं के लिए इतने सालों तक इंतजार न करना पड़ता।


आदरणीय सभापति जी,


मैं गिनता रहूंगा, गिनता।


आदरणीय सभापति जी,


कांग्रेस जब सत्‍ता में रही, देश का विकास नहीं होने दिया, अब विपक्ष में है तो देश के विकास में बाधा डाल रही है। अब कांग्रेस को ‘Nation’ पर भी आपत्ति है। ‘Nation’ पर आपत्ति है। यदि ‘Nation’ इसकी कल्‍पना गैर-संवैधानिक है तो आपकी पार्टी का नाम Indian National Congress क्‍यों रखा गया? अब आपकी नई सोच आई है तो Indian National Congress नाम बदल दीजिए और आप Federation of Congress कर  दीजिए, अपने पूर्वजों की गलती जरा सुधार दीजिए।


आदरणीय सभापति जी,


यहां पर फेडरेलिज्‍म को लेकर भी कांग्रेस, डीएमसी और लेफ्ट सहित अनेक साथियों ने यहां पर बड़ी-बडी बातें कीं। जरूरी भी है क्‍योंकि ये राज्‍यों के वरिष्‍ठ नेताओं का सदन है। लेकिन सभी साथियों को….


आदरणीय सभापति जी,


धन्‍यवाद आदरणीय सभापति जी। लोकतंत्र में सिर्फ सुनाना ही नहीं होताहै, सुनना भी लोकतंत्र का हिस्‍सा है। लेकिन सालों तक उपदेश देने की आदत रखी है इसलिए जरा बातें सुनने में मुश्किल हो रही है।


आदरणीय सभापति जी,


फेडरेलिज्‍म को लेकर कांग्रेस, टीएमसी, और लेफ्ट सहित अनेक साथियों ने यहां कई विचारों को प्रस्‍तुत किया है। और बहुत स्‍वाभाविक है और इस सदन में इसकी चर्चा होना और स्‍वाभाविक है क्‍योंकि यहां राज्‍य के वरिष्‍ठ नेता, उनका मार्गदर्शन हमें इस सदन में मिलता रहता है, लेकिन जब ये बात करते हैं तब मैं आज सबसे आग्रह करूंगा कि हम फेडरेलिज्‍म के संबंध में हमारे जो कुछ भी विचार हैं, कभी बाबा साहेब अम्‍बेडकर को जरूर पढ़ें, बाबा साहेब अम्‍बेडकर की बातों का स्‍मरण करें। बाबा साहेब अम्‍बेडकर जी ने किस संविधान सभा में कहा था, उसकी को मैं कोट कर रहा हूं, और बाबा साहेब अम्‍बेडकर ने कहा था,


”ये फेडरेशन एक यूनियन है क्‍योंकि यह अटूट है। प्रशासनिक सुविधा हेतु देश और लोगों को विभिन्‍न राज्‍यों में विभाजित किया जा सकता है। प्रशासन के लिए विभिन्‍न राज्‍यों में विभाजित किया जा सकता है, लेकिन देश अभिन्‍न रूप से एक है।”


उन्‍होंने Administrative व्‍यवस्‍थाएं और ‘Nation’ की कल्‍पना को स्‍पष्‍ट किया है। और ये बाबा साहेब अम्‍बेडकर ने संविधान सभा में कहा है। मैं समझता हूं, फेडरेलिज्‍म को समझने के लिए बाबा साहेब अम्‍बेडकर के इतने गहन विचारों से अधिक मैं समझता हूं कि मार्गदर्शन के लिए किसी बात की जरूरत नहीं है। लेकिन विशेषता ये है क्‍या हुआ है हमारे देश में। फेडरेलिज्‍म के इतने बड़े-बड़े भाषण दिए जाते हैं, इतने उपदेश दिए जाते हैं। हम क्‍या वो दिन भूल गए जब एयरपोर्ट पर जरा-जरा सी बातों के लिए मुख्‍यमंत्री हटा दिए जाते थे। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री T. Anjaiah के साथ क्‍या हुआ था, इस सदन के अनेक नेता अच्‍छी तरह जानते हैं। प्रधान मंत्री के बेटे को एयरपोर्ट पर उनका प्रबंध पसंद नहीं आया तो उनको बर्खास्‍त कर दिया गया। इसने आंध्र प्रदेश के करोड़ों लोगों की भावनाओं को आहत किया था। इसी प्रकार कर्नाटक के लोकप्रिय मुख्‍यमंत्री वीरेंद्र पाटिल जी को भी अपमानित करके पद से हटाया गया था, वो कब, जब वो बीमार थे। हमारी सोच कांग्रेस की तरह संकीर्ण नहीं है। हम संकीर्ण सोच के साथ काम करने वाले लोग नहीं हैं। हमारी सोच में राष्‍ट्रीय लक्ष्‍यों, राष्‍ट्रीय टारगेट और regional aspirations, उसके बीच में हम कोई conflict नहीं देखते हैं। हम मानते हैं कि regional aspirations को उतनी ही इज्‍जत के साथ एड्रेस करना चाहिए, समस्‍याओं का समाधान करना चाहिए। और भारत की प्रगति भी तब होगी जब देश विकास को ध्‍यान में रखते हुए regional aspirations को address करें। ये दायित्‍व बनता है, जब हम इस बात को कहते हैं देश को आगे बढ़ाना है, लेकिन इसकी ये भी  शर्त है किजब राज्य प्रगति करते हैं, तब देश की तरक्की होती है। राज्‍य प्रगति न करे और देश की तरक्‍की के लिए हम सोचें तो हो नहीं सकता है। और इसलिए पहली शर्त है राज्‍य प्रगति करे तब देश की तरक्‍की होती है। और जब देश की तरक्‍की होती है, देश समृद्ध होता है, देश के अंदर समृद्धि आती है तो समृद्धि राज्‍यों में percolate होती है और इसके कारण देश समृद्ध बनता है, इस सोच के साथ हम चलते हैं। और मैं तो जानता हूं, मैं गुजरात में था, मुझ पर क्‍या-क्‍या जुल्‍म हुए हैं दिल्‍ली सरकार के द्वारा, इतिहास गवाह है। क्‍या कुछ नहीं हुआ मेरे साथ। गुजरात के साथ क्‍या-क्‍या नहीं हुआ, लेकिन उस कालखंड में भी हर दिन आप मेरे रिकॉर्ड देख लीजिए, मुख्‍यमंत्री के नाते मैं हमेशा एक ही बात कहता था कि गुजरात का मंत्र क्‍या है, देश के विकास के लिए गुजरात का विकास। हमेशा दिल्‍ली में किसी सरकार है सोच करके नहीं चलते थे, देश के विकास के लिए गुजरात का विकास और यही फेडरेलिज्‍म में हम सबका दायित्‍व यही बनता है कि हम देश के विकास के लिए अपने राज्‍यों का विकास करेंगे ताकि दोनों मिल करके देश को नई ऊंचाई पर ले जाएंगे और यही तरीका सही तरीका है, उसी रास्‍ते पर चलना हमारे लिए जरूरी है। और ये बहुत दुखद है, जिनको दशकों तक सरकार चलाने का मौका मिला, और उन्‍होंने राज्‍यों के साथ कैसे-कैसे दमन किए थे। सब यहां बैठे हैं, भुक्‍तभोगी लोग बैठे हुए हैं। कैसे-कैसे दमन किया था। करीब-करीब सौ बार राष्‍ट्रपति शासन ला करके राज्‍य सरकार, चुनी हुई राज्‍य सरकारों को उखाड़ कर फेंक दिया। आप किस मुंह से बातें कर रहे हो? और इसलिए लोकतंत्र का भी आपने सम्‍मान नहीं किया। और वो कौन प्रधानमंत्री है जिसने अपने कालखंड में 50 सरकारों को उखाड़ करके फेंक दिया था, राज्‍य की 50 सरकारों को।


आदरणीय सभापति जी,


इन सारे विषयों के जवाब हर हिन्‍दुस्‍तानी जानता है और इसी की सजा आज उनको भुगतनी पड़ रही है। 


आदरणीय सभापति जी,


कांग्रेस के हाई कमांड जो हैं उनकी नीति तीन प्रकार से कामों को ले करके चलती हैं। एक- पहले डिस्‍क्रेडिट करो, फिर डिस्‍ट्रब्‍लाइज करो और फिर डिसमिस करो। इसी तरीके से अविश्वास पैदा करो, अस्थिर करो, और फिर बर्खास्त करदो। इन्ही बातों को लेकर के चले हैं।


आप जरा बताइये, आदरणीय सभापति जी,


मैं आज कहना चाहता हूं। कि फारुख अब्दुल्ला जी की सरकार को किसने अस्थिर किया था। चौधरी देवीलाल जी की सरकार को किसने अस्थिर किया था। चौधरी चरण सिंह जी की सरकार को किसने अस्थिर किया था। पंजाब में सरदार बादल सिंह की सरकार को किसने बर्खास्त किया था। महाराष्ट्र में बाला साहेब ठाकरे को बदनाम करने के लिए किसने डर्टी ट्रिक्स को उपयोग किया था। कनार्टक में रामकृष्ण हेगड़े और एस. आर बोमई की सरकार को किसने गिराया था। 50 के दशक में केरला की चुनी हुई कम्युनिस्ट सरकार को किसने गिराया था, उस कालखंड में 50 साल पहले। तमिलनाडु में इमरजैंसी के दौरान करुणा निधि जी की सरकार को किसने गिराया था। 1980 में एम.जी.आर की सरकार को किसने डिसमिस किया था। आंध्रपेदेश में किसने एन.टी.आर की सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की थी। और वो भी जब वो बीमार थे। वो कोन सा दल है जिसने मुलायम सिंह जी यादव जी को सिर्फ इसलिए तंग किया था क्योंकि मुलायम सिंह जी केंद्र की बातों के साथ सहमत नहीं होते थे। कांग्रेस ने अपने नेताओं तक नहीं छोड़ा है। आंध्रप्रदेश में कांग्रेस सरकार, अहम भूमिका निभाई, उसके साथ क्या किया। जिस कांग्रेस ने यहां सत्ता में बैठने का उनको मौका दिया था। उनके साथ क्या किया। उन्होंने बहुत शर्मनाक तरीके से आंध्रप्रदेश का विभाजन किया। माईक बंद कर दिये गये। मिर्ची स्प्रे की गई, कोई discussion नहीं हुई। क्या यह तरीका ठीक था क्या? क्या यह लोकतंत्र था क्या ? अटल जी की सरकार ने भी तीन राज्य बनाए थे। राज्य बनाना हमने विरोध नहीं किया है। लेकिन तरीका क्या था। अटल जी ने तीन राज्य बनाए थे। छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड लेकिन कोई तूफान नहीं आया। शांति से सारा निर्णय हुआ। सबने मिल-बैठ करके निर्णय किया। आंध्र, तेलंगाना का भी हो सकता था। हम तेलंगाना के विरोधी नहीं है। साथ मिलकर के किया जा सकता है। लेकिन आपका अहंकार, सत्ता का नशा,  उसने देश के अंदर इस कटुता पैदा की। और आज भी तेलंगाना और आंध्र के बीच में वो कटुता के बीज तेलंगाना का भी नुकसान कर रहे हैं, आंध्र का भी नुकसान कर रहे हैं। और आपको कोई राजनितिक फायदा नहीं हो रहा।  और हमे समझा रहे हैं।


आदरणीय सभापति जी,


हम cooperative federalism के साथ–साथ एक नए बदलाव की ओर चले हैं। और हमने cooperative competitive federalism की बात कही है। हमारे राज्यों के बीच में विकास की स्पर्धा हो, तन्दुरुस्त स्पर्धा हो, हम आगे बढ़ने की कोशिश करें। दल किसी का भी कोई राज क्यों न करता हो। और उसको प्रोत्साहन देना हमारा काम है, और हम दे रहें हैं।


आदरणीय सभापति जी, मैं आज उदाहरण देना चाहता हूं। जीएसटी काउंसिल की रचना अपने आप में भारत के सश्क्त federalism के लिए एक उत्तम स्ट्रक्चर का नमूना है। Revenue के अहम निर्णय GST council में होते हैं। और राज्यों के वित्त मंत्री और भारत के वित्त मंत्री सभी equal टैबल पर बैठकर के निर्णय करते हैं कोई बड़ा नहीं कोई छोटा नहीं। कोई आगे नहीं कोई पीछे नहीं। सब साथ मिलकर के देखते हैं। और देश को गर्व होना चाहिए, इस सदन को ज्यादा गर्व होना चाहिए कि जीएसटी के सारे निर्णय, सैंकड़ो निर्णय हुए हैं। सब के सब सर्वानुमति से हुए हैं। सभी राज्यों के वित्त मंत्री और भारत के वित्त मंत्री ने मिलकर के किए हैं। इससे बड़ा federalism का उत्तम स्वरूप क्या हो सकता है। कौन इसका गौरव नहीं करेगा। लेकिन हम इसका भी गौरव नहीं करते हैं।


आदरणीय सभापति जी,


मैं एक और उदाहरण मैं देना चाहता हूं। Federalism का। हमने देखा कि जैसे सामाजिक न्याय। ये देश में बहुत अनिवार्य होता है। वर्ना देश आगे नहीं बढ़ता है। वैसे ही क्षेत्रीय न्याय भी उतना ही जरूरी होता है। अगर कोई क्षेत्र विकास में पीछे रह जाएगा। तो देश आगे नहीं बढ़ सकता है। और इसलिए हमने एक योजना बनाई है Aspirational district. देश में 100 ऐसे district चुने, अलग–अलग पैरामीटर के आधार पर चुने गए। राज्यों के साथ मशविरा करके चुने गए। और उन एक सौ-सौ से अधिक जो district हैं। वो राज्यों के जो average district हैं उसकी बराबरी तो कम से कम आ जाएं। तो बोझ कम हो जाएगा। और उस काम को हमने किया और आज मैं बड़े संतोष के साथ कहुंगा। बड़े गौरव के साथ कहुंगा। योजना का विचार भले भारत सरकार को आया। लोकिन एक राज्य को छोड़कर के सभी राज्यों ने इसको own किया। सौ से अधिक जिलों की स्थिति बदलने के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार और जिला इकाई आज मिलकर के काम कर रहे हैं। और उसमें सभी दलों की सरकार वाले राज्य हैं। ऐसा नहीं हैं कि वो भारतीय जनता पार्टी के राज्यों वाली सरकारें हैं। और सबने मिलकर के इतने उत्तम परिणाम दिये हैं कि बहुत कम समय में Aspirational district कई पैरामीटर में अपने राज्य की average से भी कुछ आगे निकल गये हैं। और ये समझता हूं कि उत्तम से उत्तम काम है। और मैं बताऊ कुछ आकांक्षी जिले जो Aspirational district हैं। उनके जनधन एकाउंट पहले की तुलना में चार गुना ज्यादा जनधन एकाउंट खोलने का काम किया है। हर परिवार में शौचालय मिले, बिजली मिले, इसके लिए भी उत्तम काम इस Aspirational district पर सभी राज्यों ने किया है। मैं समझता हूं यही federal structure का उत्तम उदाहरण है। और उसी से देश की प्रगति के लिए federal structure का ताकत का उपयोग होना ये उसका उदाहरण है।


आदरणीय सभापति जी,


मैं आज एक और कैसे आर्थिक मदद होती है राज्यों की, किस तरीके से नीतियां कैसे बदलाव लाने से परिवर्तन होता है, उसका भी उदाहरण देना चाहता हूं। वो भी एक समय था जब हमारे प्राकृतिक संसाधन सिर्फ कुछ लोगों की तिजोरियां भरने के काम आते थे। ये दुदर्शा हमने देखी है उसकी चर्चाएं बहुत चली है। अभी संपदा राष्ट्र का खजाना भर रही है। हमने कोयले और माइनिंग सेक्टर में रिफार्म किये। 2000 में हमने पारदर्शी प्रक्रिया के साथ खनिज संसाधनों को ऑक्शन किया। हमने रिफार्म्स की प्रक्रिया को जारी रखा। जैसे वैध लाइसेंस की बिना चार्ज के ट्रांसफर 50 प्रतिशत प्रोबिशस की ओपन मार्केट में सेल्फ बिक्री। Early operationalisationपर 50 प्रतिशत रिबेट। बीते एक साल में माइनिंग revenue लगभग 14 हजार करोड़ रुपए से बढ़कर लगभग 35 हजार करोड़ रुपये पर पहुंचा है। ऑक्शन से जितना भी revenue आया वो राज्य सरकारों को मिला है। ये निर्णय किया है सबसे बड़ी बात ये है। ये सुधार जो लागू हुए हैं इसपे राज्य का ही भला हुआ है। और राज्य का भला होने में देश का भला है ही है। Cooperative federalism का इतना बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय और उड़ीसा इस रिफार्म्स को लागू करने में अग्रिम राज्य रहा है। मैं उड़ीसा के मुख्यमंत्री जी को अभिनंदन देता हूं। कि उनकी सरकार ने सारे रिफार्म्स कंधे से कंधा मिलाकर के काम किया है।


आदरणीय सभापति जी,


यहां पर ये भी चर्चा हुई कि हम इतिहास बदलने की कोशिश कर रहे हैं। कई बार बोला जाता है। बाहर भी बोला जाता है। और कुछ लोग लिखा जाते हैं। मैं देख रहा हूं कि कांग्रेस एक प्रकार से अर्बन नक्सल के चुंगल में फंस गई है। उनकी पूरी सोचने के तरीकों को अर्बन नक्सलों ने कब्जा कर लिया है। और इसलिए उनकी सारी सोच गतिविधि destructive बन गई है। और देश के लिए चिंता का विषय है। बड़ी गंभीरता से सोचना पड़ेगा। अर्बन नक्सल ने बहुत चालाकी पूवर्क कांग्रेस की इस दु शा का फायदा उठाकर के उसके मन को पूरी तरह कब्जा कर लिया है। उसकी विचार प्रवाह को कब्जा कर लिया है। और उसी के कारण बार – बार ये बोल रहे हैं कि इतिहास बदल रहा है।


आदरणीय सभापति जी,


हम सिर्फ कुछ लोगों की यादाश्त को ठीक करना चाहते हैं। थोड़ा उनका मैमोरी पावर बढ़ाना चाहते हैं। हम कोई इतिहास बदल नहीं रहे हैं। कुछ लोगों का इतिहास कुछ ही सालों से शुरू होता है। हम जरा उसको पहले ले जा रहे हैं और कुछ नहीं कर रहे हैं। अगर उनको 50 साल के इतिहास में मजा आता है। तो उनको 100 साल तक ले जा रहे हैं। किसी को 100 साल तक मजा आता है उसको हम 200 साल के इतिहास में ले जा रहे हैं। किसी को 200 साल में मजा आता है तो 300 ले जाते हैं। अब जो 300–350 ले जाएंगे तो छत्रपति शिवाजी का नाम आएगा ही आएगा। हम तो उनकी मैमोरी को सतेज करर रहे हैं। हम इतिहास बदल नहीं रहे। कुछ लोगों का इतिहास सिर्फ एक परिवार तक सीमित है क्या करें इसका। और इतिहास तो बहुत बड़ा है। बड़े पहलु है। भले ऊतार चढ़ाव हैं। और हम इतिहास के दीर्घकालीन कालखंड को याद कराने का प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि गौरवपूर्ण इतिहास को भूला देना इस देश के भविष्य के लिए ठीक नहीं है। ये हम अपना दायित्व समझते हैं। और इसी इतिहास से सबक लेते हुए हमने आने वाले 25 साल में देश को नई उचाईयों पर ले जाने का एक विश्वास पैदा करना है। और मैं समझता हूं ये अमृत कालखंड अब इसी से बढ़ने वाला है। इस अमृत कालखंड मैं हमारी बेटियां, हमारे युवा, हमारे किसान, हमारे गांव, हमारे दलित, हमारे आदिवासी, हमारे पीशद, समाज के हर तबके का योगदान हो। उनकी भागीदारी हो। उसको लेकर के हम आगे बढ़ें। कभी – कभी हम 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की ओर देखेंगे। हमारे आदिवासी क्षेत्रों में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जो योगदान दिया गया है। कभी हमे पढ़ने को नहीं मिल रहा है। इतने महान स्‍वर्णिम पृष्‍ठों को हम कैसे भूल सकते हैं। और हम इन चीजों को याद कराने की कोशिश कर रहे हैं। हमारी कोशिश है देश आत्मविश्वास से भरा हुआ हो, देश आगे बढ़े।


आदरणीय सभापति जी,


महिलाओं के सशक्तीकरण भी हमारे लिए प्राथमिकता है। भारत जैसा देश 50 प्रतिशत आबादी हमारी विकास यात्रा के जो सबका प्रायास का विषय है। उस सबके प्रयास में सबसे बड़ी भागीदार  हमारी माताएं – बहनें हैं। देश की 50 प्रतिशत जनसंख्या और इसलिए भारत का समाज की विशेषता है परंपराओं में सुधार करता है। बदलाव भी करता है। ये जीवंत समाज है। हर युग में ऐसे महापुरुष निकलते हैं जो हमारी बुराईयों से समाज को मुक्त करने का प्रयास करते हैं। और आज हम जानते हैं महिलाओं के संबंध में भी भारत में कोई आज चिंतन होना नहीं है, पहले से हमारे यहां चिंतन हो रहा है। उनके सशक्तिकरण को हम प्राथमिकता दे रहे हैं। अगर हमने मेटरनिटी लीव बढ़ाई तो एक प्रकार से महिलाओं के सशक्तीकरण का और परिवार के सशक्तीकरण का हमारा प्रयास है। और उस दिशा में हम काम कर रहे हैं। बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ, आज उसका परिणाम है कि जेंडर रेश्‍यो में जो हमारे यहां असंतुलन था उसमें काफी अच्छी स्थिति में हम पहुंच गए हैं। और जो रिपोर्टस आ रहे हैं उसमें आज हमारे कुछ स्थानों पर तो हमारे यहां पुरुषों से माताओं–बहनों की संख्या बढ़ रही है। ये बड़े एक आनंद का विषय है, बड़े गौरव का विषय है। जो बुरे दिन हमने देखें थे उसमे से हम बाहर आए हैं। और इसलिए हमे प्रयास करना चाहिए। आज एन.सी.सी. में हमारी बेटियां हैं। सैना में हमारी बेटियां हैं, वायु सेना में बेटियां हैं। हमारी नौसेना में हमारी बेटियां हैं। तीन तलाक की क्रूरप्रथा को हमने खत्म किया। मैं जहां जाता हूं मुझे माताओं -बहनों का आर्शीवाद मिलता है। क्योंकि तीन तलाक की प्रथा जब खत्म होती है तब सिर्फ बेटियों को न्याय मिलता है, एैसा नहीं है। उस पिता को भी न्याय मिलता है, उस भाई को भी न्याय मिलता है, जिसकी बेटी तीन तलाक के कारण घर लौटकर आती है। जिसकी बहन तीन तलाक के कारण घर लौटकर आती है। इसलिए ये पूरे समाज के कल्याण के लिए है। ये सिर्फ कोई महिलाओं के लिए है और पुरुषों के खिलाफ है ऐसा नहीं है। ये मुसलमान पुरुष के लिए भी उतना ही उपयोगी है। क्योंकि वो भी किसी बेटी का बाप है, वो भी किसी बेटी का भाई है। और इसलिए ये उसका भी भला करता है, उसको भी सुरक्षा देता है। और इसलिए कुछ कारणों से लोग बोल पाएं न बोल पाएं लेकिन इस बात से सब लोग एक गौरव का आनंद भरते हैं। कश्मीर में हमने 370 धारा को जो हटाया, वहां की माताओं – बहनों को empower किया। उनको जो अधिकार नहीं थे वो अधिकार हमने दिलवाए हैं। और उन अधिकारों के कारण आज उनकी ताकत बढ़ी है। आज उनकी शादी की उमर में क्या कारण है आज के युग में मेल और फीमेल के बीच में अंतर होना चाहिए। क्या जरूरत है बेटा–बेटी एक समान है तो हर जगह पर होना चाहिए और इसलिए बेटे-बेटी की शादी की उमर समान उस दिशा में हम आगे बढ़े हैं। मुझे विश्वास है कि आज कुछ ही समय में ये सदन भी उसके विषय में सही निर्णय कर करके हमारी माताओं – बहनों के कल्याण के लिए काम करेगा।


आदरणीय सभापति जी,


ये वर्ष गोवा के 60 वर्ष का एक महत्वपूर्ण कालखंड का वर्ष है। गोवा मुक्ति को 60 साल हुए हैं। मैं आज जरा उस चित्र को कहना चाहता हूं। हमारे कांग्रेस के मित्र जहां भी होंगे जरूर सुनते होंगे। गोवा के लोग जरूर सुनते होंगे मेरी बात को। अगर सरदार साबह जिस प्रकार से सरदार पटेल ने हैदराबाद के लिए रणनीति बनाई, initiative लिए। जिस प्रकार से सरदार पटेल ने जुनागढ़ के लिए रणनीति बनाई। कदम उठाए। अगर सरदार साहब की प्रेरणा लेकर के गोवा के लिए भी वैसी ही रणनीति बनाई होती। तो गोवा को हिन्‍दुस्‍तान आजाद होने के 15 साल तक गुलामी में नहीं रहना पड़ा होता। भारत की आजादी के 15 साल के बाद गोवा आजाद हुआ और उस समय के 60 साल पहले के अख़बार उस जमाने की मीडिया रिपोर्ट बताती है। कि तब के प्रधानमंत्री अंतरराष्ट्रीय छवि का क्या होगा। ये उनकी सबसे बड़ी चिंता का विषय था, पंडित नेहरु को। दुनिया में मेरी छवि बिगड जाएगी तो। और इसलिए उनको लगता था कि गोवा की औपनिवेशिक सरकार पर आक्रमण करने से उनकी जो एक ग्लोबल लेवल लीडर की शांतिप्रिय नेता की छवि है वो चकनाचूर हो जाएगी। गोवा को जो होता है होने दो। गोवा को जो झेलना पड़े झेलने दो। मेरी छवि को कोई नुकसान न हो और इसलिए जब वहां सत्याग्रहियों पर गोलियां चल रही थी। विदेशी सल्तनत गोलियां चला रही थी। हिन्दुस्तान का हिस्सा, हिन्दुस्तान के ही मेरे भाई – बहन उनपर गोलियां चल रही थीं। और तब हमारे देश के प्रधानमंत्री ने कहा था कि मैं सेना नहीं दूंगा। मैं सेना नहीं भेजूंगा। सत्याग्रहियों की मदद करने से उन्होंने इनकार कर दिया था। ये गोवा के साथ कांग्रेस ने किया हुआ जुल्म है। और गोवा को 15 साल ज्यादा गुलामी की जंजीरों में जकड़ के रखा गया। और गोवा के अनेक वीरपुत्रों को बलिदान देना पडा। लाठी गोलियों से जिंदगी बशर करनी पड़ी। ये हाल पैदा किये थे।नेहररू जी ने, 15 अगस्त, 1955 को पंडित नेहरु ने लालकिले से जो कहा था। मैं जरा कोट करना चाहता हूं। अच्छा होता कांग्रेस के मित्र यहां होते तो नेहरु जी का नाम सुनकर के कम से कम उनकी दिन बहुत अच्छा जाता। और इसलिए उनकी प्यास बुझाने के लिए मैं बार-बार नेहरू जी को भी याद करता हूं आज कल। नेहरू जी ने कहा था, लाल किले से कहा था मैं उनको कोट करता हूं, कोई धोखे में ना रहे, भाषा देखिए। कोई धोखे में ना रहे कि हम वहां फौजी कार्यवाही करेंगे। कोई फौज गोवा के आसपास नहीं है। अंदर के लोग चाहते हैं। कि कोई शोर मचाकर ऐसे हालात पैदा करे। कि हम मजबूर हो जाएं फौज भेजने के लिए। हम नहीं भेजेंगे फौज, हम उसको शांति से तय करेंगे समझ लें सब लोग इस बात को। ये हुंकार 15 अगस्त को गोवा वासियों के aspirations के खिलाफ कांग्रेस के नेता के बयान हैं। पंडित नेहरू जी ने आगे कहा था। जो लोग वहां जा रहे हैं। लोहिया जी समेत सब लोग वहां सत्याग्रह कर रहे थे, आंदोलन कर रहे थे। देश के सत्याग्रही जा रहे थे। हमारे जगननाथ राज जोशी कनार्टक के उनके नेतृत्व में सत्याग्रह हो रहा था। पंडित नेहरू जी ने क्या कहा? जो लोग वहां जा रहे हैं उनको वहां जाना मुबारक हो, देखिए मजाक देखिए। देश के अपनी आजादी के लिए लड़ने वाले मेरे ही देशवासियों के लिए क्या भाषा कितना अहंकार है। जो लोग वहां जा रहे हैं उनकों वहां जाना मुबारक हो। लेकिन ये भी याद रखें कि अपने को सत्याग्रही कहते हैं तो सत्याग्रह के उसूल, सिद्धांत और रास्ते भी याद रखें। सत्याग्रही के पीछे फौजें नहीं चलती और ना ही फौजों की पुकार होती है। असहाय छोड़ दिया गया मेरे ही देश के नागरिकों को। ये गोवा के साथ किया। गोवा की जनता कांग्रेस के इस रवैये को भूल नहीं सकती है।


आदरणीय सभापति जी,


हमे यहां freedom of expression पर भी बड़े भाषण दिए गए। और आए दिन हमको जरा समझाया जाता है। मैं जरा आज एक घटना कहना चाहता हूं। और ये घटना भी गोवा के एक सपूत की घटना है। गोवा के एक सम्मानीय, गोवा की धरती के एक बेटे की कथा है। अभिव्यक्ति के संबंध में क्या होता था, कैसे होता था, ये उदाहरण मैं देना चाहता हूं। व्यक्ति स्वतंत्रता की बाते करने वाले लोगों का इतिहास मैं आज खोल रहा हूं। क्या किया है, लता मंगेशकर जी के निधन से आज पूरा देश दुःखी है। देश को बहुत बड़ी खोट है। लेकिन लता मंगेशकर जी का परिवार गोवा का है। लेकिन उनके परिवार के साथ कैसा सलुक किया। ये भी देश को जानना चाहिए। लता मंगेशकर जी के छोटे भाई पंडित हृदयनाथ मंगेशकर जी। गोवा का गौरवपूर्ण संतान, गोवा की धरती का बेटा। उन्हें ऑल इंडिया रेडियो से निकाल दिया गया। वो ऑल इंडिया रेडियो में काम करते थे। और उनका गुनाह क्या था? उनका गुनाह ये था कि उन्होंने वीर सावरकर की एक देशभक्ति से भरी कविता की ऑल इंडिया रेडियो पर प्रस्तुति दी थी। अब देखिए हृदयनाथ जी ने एक इंटरव्यू में बताया, उनका इंटरव्यू अवेलेबल है। उन्होंने इंटरव्यू में कहा, जब वो सावरकर जी से मिले कि मैं आपका गीत करना चाहता हूं तो सावरकर जी ने उनको कहा कि तुम जेल जाना चाहते हो क्या? मेरी कविता गाकर के जेल जाना चाहते हो क्या ? तो हृदयनाथ जी ने उनकी देशभक्ति से भरी कविता, उसे संगीतबद्ध किया। आठ दिन के अंदर उनको ऑल इंडिया रेडियो से निकाल दिया गया। ये आपका freedom of expression है। ये स्वतंत्रता की आपकी झूठ बातें देश के सामने आपने रखी है। कांग्रेसी सरकारों के दौरान किस प्रकार जुल्म हुए से सिर्फ हृदयनाथ मंगेशकर जी गोवा के बेटे के साथ हुए ऐसे नहीं। इसकी सूची काफी लंबी है। मजरू सुल्तानपुरी जी को पंडित नेहरू की आलोचना करने के लिए एक साल जेल में बंद कर दिया गया था। नेहरू जी के रवैये की आलोचना करने के लिए प्रोफेसर धर्मपाल जी को जेल में डाल दिया गया था। प्रसिद्ध संगीतकार किशोर कुमार जी को इमरजेंसी में इंदिरा जी के सामने न झुकने के कारण इमरजेंसी के पक्ष में न बोलने के कारण उनको आपातकाल में, आपातकाल में उनको भी निकाल दिया गया था। हम सभी जानते हैं कि एक विशेष परिवार के खिलाफ अगर कोई थोड़ी सी भी आवाज उठाता है। जरा भी आँख ऊंची करता है तो क्या होता है? सीताराम केसरी को हम भलिभांति जानते हैं। क्या हुआ ये हमे पता है।


आदरणीय सभापति जी,


मेरी सदन की सदस्यों से सभी से प्रार्थना है। कि भारत के उज्जवल भविष्य पर भरोसा करें। 130 करोड़ देश्वासियों के सामर्थ्य पर हम भरोसा करें। हम बड़े लक्ष्य लेकर के इसी सामर्थ्य के आधार पर देश को नई ऊँचाई पर ले जाने के लिए हम कृतसंकल्‍पी बनें।


आदरणीय सभापति जी,


हमने मेरे तेरे अपने पराये इस परंपरा को खत्म करना होगा। और एक मत से एक भाव से एक लक्ष्य एक साथ चलना यही देश के लिए समय की मांग है। एक स्वर्णिम काल है पूरा विश्व भारत की तरफ बड़े आशा से बड़े गर्व से देखता है। ऐसे समय हम मौका गवां ना दें। देशवासियों के कल्याण के लिए इससे बड़ा कोई अवसर आने वाला नहीं है। ये मौका हम पकड़ लें 25 साल की यात्रा हमें कही सं कहां पहुंचा सकती है। हमारे देश के लिए हमारी परंपराओं के लिए हम गौरव करें और सभापति जी हम बड़े विश्वास के साथ, साथ मिलकर के चलेंगे। और हमारे यहां तो शास्त्रों में कहा गया है। सम गच्छध्वं सम वदध्वम् सं वो मनांसि जानताम्। यानि हम साथ चलें, साथ चर्चा करें, मिलकर हर कार्य करें  इसी आहवान के साथ मैं राष्ट्रपति जी के अभिभाषण को अनुमदन करता हूं। उनका धन्यवाद भी करता हूं। और सभी आदरणीय सदस्यों ने जो सहवाह किया, विचार रखे, उनका भी धन्यवाद करता हूं। बहुत – बहुत धन्यवाद 


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DS/LP/AK/AK/NS/DK




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PM thanks world leaders for their greetings on India’s 73rd Republic Day


The Prime Minister, Shri Narendra Modi has thanked world leaders for their greetings on India’s 73rd Republic Day.




In response to a tweet by PM of Nepal, the Prime Minister said;


“Thank You PM @SherBDeuba for your warm felicitations. We will continue to work together to add strength to our resilient and timeless friendship.”


Thank You PM @SherBDeuba for your warm felicitations. We will continue to work together to add strength to our resilient and timeless friendship. https://t.co/1ZO5mVoDed

— Narendra Modi (@narendramodi) January 26, 2022

In response to a tweet by PM of Bhutan, the Prime Minister said;


“Thank you @PMBhutan for your warm wishes on India’s Republic Day. India deeply values it’s unique and enduring friendship with Bhutan. Tashi Delek to the Government and people of Bhutan. May our ties grow from strength to strength.”


Thank you @PMBhutan for your warm wishes on India’s Republic Day. India deeply values it’s unique and enduring friendship with Bhutan. Tashi Delek to the Government and people of Bhutan. May our ties grow from strength to strength. https://t.co/cuc2awdmvH

— Narendra Modi (@narendramodi) January 26, 2022

In response to a tweet by PM of Sri Lanka, the Prime Minister said;


“Thank you PM Rajapaksa. This year is special as both our countries celebrate the 75-year milestone of Independence. May the ties between our peoples continue to grow stronger.”


Thank you PM Rajapaksa. This year is special as both our countries celebrate the 75-year milestone of Independence. May the ties between our peoples continue to grow stronger. @PresRajapaksa https://t.co/jycGbiQobG

— Narendra Modi (@narendramodi) January 26, 2022

In response to a tweet by PM of Israel, the Prime Minister said;


“Thank you for your warm greetings for India’s Republic Day, PM @naftalibennett. I fondly remember our meeting held last November. I am confident that India-Israel strategic partnership will continue to prosper with your forward-looking approach.”


Thank you for your warm greetings for India’s Republic Day, PM @naftalibennett. I fondly remember our meeting held last November. I am confident that India-Israel strategic partnership will continue to prosper with your forward-looking approach. https://t.co/2cuoflMo34

— Narendra Modi (@narendramodi) January 26, 2022



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DS/SH




(Release ID: 1792881)
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PM thanks Bill Gates for kind words on Ayushman Bharat Digital Mission

The Prime Minister, Shri Narendra Modi has thanked Bill Gates for the kind words on the Ayushman Bharat Digital Mission. 

In response to a tweet by Bill Gates, the Prime Minister said;

“Thank you @BillGates for the kind words on the Ayushman Bharat Digital Mission. 

There is immense scope in leveraging technology for betterment of health infrastructure and India is working hard in this direction.”

Thank you @BillGates for the kind words on the Ayushman Bharat Digital Mission.

There is immense scope in leveraging technology for betterment of health infrastructure and India is working hard in this direction. https://t.co/eprhyeAbJn

— Narendra Modi (@narendramodi) September 29, 2021

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DS/SH

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