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क्रेडिट कार्ड EMI खरीदारी को आसान बनाती है, लेकिन इसमें ब्याज, प्रोसेसिंग फीस और हिडेन चार्ज जोड़कर कुल खर्च काफी बढ़ जाता है. इसलिए EMI चुनने से पहले कुल लागत जरूर समझें.

नई दिल्ली. आजकल बड़े मोबाइल, फ्रिज, टीवी या लैपटॉप खरीदने का सबसे आसान तरीका क्रेडिट कार्ड EMI है. ग्राहक को लगता है कि बिना जेब पर दबाव डाले धीरे-धीरे किस्तों में भुगतान हो जाएगा. लेकिन क्या वाकई EMI हमेशा फायदेमंद होती है? क्या इसकी असली लागत उतनी ही कम है जितनी दुकानदार या बैंक बताते हैं? आइए आसान भाषा में समझते हैं कि क्रेडिट कार्ड EMI लेने से पहले क्या जानना जरूरी है?
EMI का असली सच: सिर्फ किस्तें नहीं, कई तरह के चार्ज भी लगते हैं
जब भी आप किसी प्रोडक्ट को EMI में बदलते हैं, बैंक आपसे सिर्फ ब्याज ही नहीं लेता, बल्कि कई छिपे चार्ज भी वसूलता है. सबसे पहले आता है प्रोसेसिंग फी. यह 199 रुपये से लेकर 1,000 रुपये तक हो सकता है. कई बार बैंक GST भी जोड़ देते हैं, जिससे लागत और बढ़ जाती है. दूसरा बड़ा चार्ज होता है फोरक्लोजर या प्री-क्लोजर फीस. अगर आप EMI को बीच में बंद करना चाहते हैं, तो बैंक पेनल्टी लगा देता है. कई ग्राहक इस बात से अनजान रहते हैं.
No Cost EMI असल में जीरो नहीं होती
मार्केट में अक्सर जुमला चलता है नो कॉस्ट ईएमआई यानी बिना ब्याज वाली ईएमआई. लेकिन सच्चाई यह है कि नो कॉस्ट ईएमआई में भी ब्याज कहीं न कहीं छिपा होता है. दुकानदार प्रोडक्ट पर जो छूट देता, वह EMI लेने पर नहीं देता. बैंक ब्याज को फोरमैन चार्ज, प्रोसेसिंग फीस आदि के रूप में जोड़ देता है. इसका मतलब यह हुआ कि नो कॉस्ट ईएमआई में भी खरीदार सीधे या परोक्ष रूप से ब्याज चुका ही देता है.
EMI से कैसे बढ़ जाता है कुल खर्च?
मान लीजिए आपने 60,000 रुपये का फोन 12 महीने की EMI पर खरीदा. बैंक ने 14% का ब्याज लगाया. EMI लगभग 5,400 रुपये पड़ेगी.
साल के अंत तक आपका कुल भुगतान होगा-
EMI कुल रकम: लगभग 64,800 रुपये
प्रोसेसिंग फीस: 500–1,000 रुपये
GST: लगभग 90–180 रुपये
यानी कुल खर्च लगभग 65,500 रुपये से 66,000 रुपये तक पहुंच जाएगा. आसान भाषा में कहें तो आपने फोन पर करीब 6,000 रुपये ज्यादा चुका दिए,
कैशबैक EMI बनाम रेगुलर EMI: क्या है अंतर?
कुछ बैंक कैशबैक EMI देते हैं, जिसमें ब्याज का हिस्सा कैशबैक के रूप में बाद में लौटा दिया जाता है. यह स्कीम फायदेमंद हो सकती है, लेकिन केवल उन्हीं ग्राहकों के लिए जो-
- कैशबैक मिलने तक कार्ड एक्टिव रखें
- कोई डिफॉल्ट न करें
- बिल समय पर भरें
- एक छोटी सी देरी होने पर भी कैशबैक कैंसिल हो जाता है.
कब लेना चाहिए EMI का विकल्प?
- अचानक खर्च आ जाए और आपको Lump-Sum देने में मुश्किल हो.
- 0 या कम ब्याज वाली ऑफर पर बड़ा प्रोडक्ट खरीदना हो.
- आपके पास नियमित आय हो और EMI समय पर चुकाने का भरोसा हो.
- आप बजट को व्यवस्थित करना चाहते हों.
कब नहीं लेना चाहिए EMI?
- अगर आप पहले से ही कई EMI भर रहे हैं.
- क्रेडिट कार्ड का बिल समय पर भरने में दिक्कत होती है.
- आपकी खरीदारी जरूरत नहीं, सिर्फ इच्छा पर आधारित है.
- ब्याज दर 14–24% के बीच है, जो पर्सनल लोन से भी ज्यादा होता है.
क्रेडिट स्कोर पर असर
ईएमआई लेने से आपका क्रेडिट कार्ड लिमिट ब्लॉक हो जाती है. अगर आपकी लिमिट बहुत कम बचती है, तो आपका क्रेडिट यूटिलाइजेशन रेशियो बढ़ जाता है, जो क्रेडिट स्कोर पर निगेटिव असर डाल सकता है.
कैसे चुनें सबसे सही EMI?
- सभी बैंकों के ऑफर्स तुलना करें.
- प्रोसेसिंग फीस जरूर पूछें.
- Zero EMI में छिपे चार्ज क्रॉस-चेक करें.
- अगर आप जल्दी लोन बंद करना चाहते हैं, तो प्री-क्लोजर चार्ज जान लें.
- 3 या 6 महीने की छोटी अवधि वाली EMI चुनें क्योंकि ब्याज कम लगता है.
EMI सुविधा है, लेकिन समझदारी जरूरी
क्रेडिट कार्ड EMI आपकी खरीदारी को आसान बनाती है, लेकिन बिना सोचे-समझे EMI लेने से कुल खर्च बढ़ जाता है. इसलिए EMI चुनने से पहले ब्याज दर, प्रोसेसिंग फीस और कुल लागत जरूर समझें. सही जानकारी के साथ EMI फायदा भी देती है और आपका बजट भी संभालती है.
About the Author
विनय कुमार झा
प्रिंट मीडिया से करियर की शुरुआत करने के बाद पिछले 8 सालों से News18Hindi में बतौर सीनियर कॉपी एडिटर कार्यरत हैं. लगभग 4 सालों से बिजनेस न्यूज टीम का हिस्सा हैं. मीडिया में करीब डेढ़ दशक का अनुभव रखते हैं. बिजन…और पढ़ें
प्रिंट मीडिया से करियर की शुरुआत करने के बाद पिछले 8 सालों से News18Hindi में बतौर सीनियर कॉपी एडिटर कार्यरत हैं. लगभग 4 सालों से बिजनेस न्यूज टीम का हिस्सा हैं. मीडिया में करीब डेढ़ दशक का अनुभव रखते हैं. बिजन…
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