Last Updated:
Ground Report: आलम साय माझी का मिट्टी से बना दो मंजिला घर आज भी सरगुजा की शान बना हुआ है. उन्होंने सीमित संसाधनों में ऐसा निर्माण किया जो समय की कसौटी पर खरा उतरा.
Ground Report: छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के माझी समाज के आलम साय ने 1960 के दशक में अपने हुनर, मेहनत और लगन से मिट्टी और लकड़ी के सहारे दो मंजिला मकान बनाकर एक मिसाल कायम की. उस दौर में जब लोग गुज़ारे के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब आलम साय ने बिना पैसे के अपने हाथों से ऐसा घर खड़ा किया जो आज भी मजबूती से खड़ा है. नीचे वाले हिस्से में उन्होंने मवेशियों के लिए जगह बनाई, जबकि ऊपर वे खुद रहते थे. लकड़ी के बीम और सीढ़ियों से जुड़ा यह अनोखा मकान आज भले ही समय के असर से कमजोर पड़ रहा हो, लेकिन यह साबित करता है कि मेहनत और पारंपरिक ज्ञान से मिट्टी का घर भी मजबूत और टिकाऊ हो सकता है.
परंपरा, मेहनत और हुनर की मिसाल
छत्तीसगढ़ के सरगुजा ज़िले की पहचान उसकी समृद्ध आदिवासी संस्कृति और पारंपरिक जीवनशैली से होती है. यहां के लोग आज भी प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीवन जीते हैं. इन्हीं परंपराओं के बीच माझी समाज के एक शख्स ने 1960 में ऐसा कारनामा किया, जो आज भी लोगों के लिए प्रेरणा बन चुका है. यह कहानी है आलम साय माझी की, जिन्होंने उस समय में मिट्टी से दो मंजिला मकान बनाकर इतिहास रच दिया था ,वो भी बिना किसी आर्थिक सहारे या आधुनिक साधनों के..
जब मिट्टी, लकड़ी और जज़्बे ने गढ़ा मजबूत
उस दौर में जब लोग रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब आलम साय ने अपने हुनर और मेहनत के दम पर ऐसा घर बनाया जो आज भी मजबूती से खड़ा है.
उन्होंने यह मकान जंगल के बीच बनाया था. घर की नींव मिट्टी की सख्त परतों और लकड़ी के मजबूत बीमों से तैयार की गई थी. ऊपर चढ़ने के लिए लकड़ी की सीढ़ी बनाई गई.
घर का निचला हिस्सा मवेशियों के लिए, जबकि ऊपरी मंजिल परिवार के रहने के लिए थी.
64 साल बाद भी खड़ा है मिट्टी का अद्भुत घर
समय के साथ यह मकान थोड़ा जर्जर जरूर हुआ है, लेकिन अब भी यह मजबूती से खड़ा है. मिट्टी और लकड़ी से बने इस घर ने 60 से ज्यादा सालों का सफर देखा है और आज भी यह पारंपरिक निर्माण तकनीक की मिसाल पेश करता है.आलम साय गर्व से कहते हैं,अगर मिट्टी को सही तरह से तैयार किया जाए, तो उससे तीन मंजिला मकान भी बनाया जा सकता है..
ग्रामीण शिल्पकला का जीवंत प्रतीक जानिए
आज जब पक्के मकान और आधुनिक निर्माण तकनीकें आम हो गई हैं, तब भी आलम साय का यह घर लोगों को आकर्षित करता है. यह मकान न सिर्फ आलम साय की मेहनत और कला का प्रतीक है, बल्कि सरगुजा की ग्रामीण शिल्पकला और पारंपरिक वास्तुकला का भी जीवंत उदाहरण है, जो भी इस घर को देखता है, बरबस पूछ बैठता है — “कब बनाया गया ये मकान?” और जवाब आता है… “सन 1960 में…
आज भी लोगों के लिए हैरत और प्रेरणा का केंद्र
भले ही वक्त बदल गया हो और कंक्रीट के मकान आम हो गए हों, लेकिन आलम साय का मिट्टी का यह दो मंजिला घर आज भी यह साबित करता है कि मेहनत, हुनर और सही तकनीक से कुछ भी संभव है. यह घर आज भी सरगुजा की पहचान और परंपरा की गौरवशाली निशानी के रूप में खड़ा है.
About the Author
Anuj Singh
Anuj Singh serves as a Content Writer for News18MPCG (Digital), bringing over Two Years of expertise in digital journalism. His writing focuses on hyperlocal issues, Political, crime, Astrology. He has worked a…और पढ़ें
Anuj Singh serves as a Content Writer for News18MPCG (Digital), bringing over Two Years of expertise in digital journalism. His writing focuses on hyperlocal issues, Political, crime, Astrology. He has worked a…
और पढ़ें
