एकम के तीसरे ऑनलाइन वर्ल्ड पीस फेस्टिवल में बिखरे आध्यात्मिता के इंद्रधनुषी रंग

संपूर्ण मानव जाति के कल्याण और कोरोना के कारण पूरी दुनिया पर छाई आर्थिक तंगी को खत्म करने के लिए 9 से 15 अगस्त तक ऑनलाइन आयोजित किए जा रहे एकम वर्ल्ड पीस फेस्टिवल का समापन हो गया है। इस वर्ष कोरोना वायरस की महामारी के कारण ऑनलाइन पीस मेडिटेशन फेस्टिवल ऑनलाइन आयोजित किया गया था, जिसमें करोड़ों लोगों ने भाग लिया।

आध्यात्मिक नेता, रहस्यवादी और दार्शनिक श्री प्रीता जी और श्री कृष्णा जी ने मनुष्य की अंतरात्मा पर प्रभाव डालने के लिए एक दैवीय शक्ति केंद्र एकम का निर्माण किया। उन्होंने बताया, “बह्मांड का आध्यात्मिकता के साथ अद्भुत तालमेल है। यह हमें मुसीबत के क्षणों में संबल बंधाने का काम करती है। इसके लिए हमें ध्यान साधना की शरण में जाना पड़ता है, जिससे मनुष्य की आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है।

इस अवसर पर प्रमुख भविष्यवक्ता और आरलिंगटन इंस्टिट्यूट के संस्थापक जॉन पीटरसन भी विश्व शांति पर हुई वार्ता में शामिल हुए।

पीटरसन के साथ शांति वार्ता में कृष्णा जी ने कहा, “आध्यात्मकिता से सराबोर धनी व्यक्ति अपने संस्थान के आर्थिक विकास की नींव सहभागिता के आधार पर रखता है। ऐसे लोग धन या मुनाफा कमाने के लिए किसी का शोषण नहीं करते। वह दूसरों की तरक्की में मदद देकर फलते-फूलते हैं। आध्यातिमक चेतना से सरोबार संपन्न व्यक्ति धरती मां को भी अपनी संपत्ति के हिस्से में हिस्सेदार मानते हैं। इसलिए वह मानवता के कल्याण के लिए संसाधनों में निवेश करते हैं।

श्री कृष्णाजी ने कहा कि विश्व में नई नई वस्तुओं का विकास बढ़ रहा है। अधिक विकास का मतलब ज्यादा खपत है। ज्यादा खपत का मतलब धरती मां का और अधिक शोषण है। हमने ज्यादा से ज्यादा धन कमाने और भौतिकवादी होने के लालच से इस धरती, अपने परिवार और खुद को अस्थिर कर दिया है।

उन्होंने कहा, “शोषण का यह चक्र तब तक चलता रहेगा, जब तक हम आध्यात्मिक रूप से जागृत नहीं होंगे। यह स्थिति तब सुधरेगी जब आध्यात्मिक स्वभाव के संपन्न व्यक्ति आगे आएंगे। हमें एक दूसरे से मुकाबला करने की जगह एक दूसरे को साथ लेकर चलने की आदत डालनी होगी।

श्री कृष्णाजी ने जॉन से बातचीत करते हुए पूछा, “एक भविष्यवक्ता के तौर पर आप मानव प्रवृत्ति में होने वाले बदलाव के लिए किस तरह की भविष्यवाणी करते हैं।“ उन्होंने कहा, “दुनिया पूरी तरह बदलाव की कगार पर है। नई संभावनाओं के दरवाजे खोलने के लिए मानवता के प्रति प्रेम को दिल से महसूस करना चाहिए।“

अंत में श्री प्रीता ने कहा कि आध्यत्मिकता केवल साधु-सन्यासियों के लिए नहीं है। मानवता की भलाई के लिए यह प्रवृत्ति सभी में होनी चाहिए।