किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले उसके बारे में हम बहुत बार सोचते है और फिर उस काम में हो रहे नुकसान से डरते भी है. फिर उस डर के चलते हम उस काम को करने से पहले ही छोड़ देते है. देखा जाए तो डरना मनुष्य की आम प्रवृत्ति है और इस डर में भी उसे एक अलग तरह का सुख मिलता है डर का सुख. यह सुख और कुछ नहीं किसी बड़े काम या पहल न करने का सुख होता है. अगर आप कोई भी पहल करके या रिस्क लेकर काम न करेंगे तब जिंदगी में आगे ही नहीं बढ़ सकते परंतु मनुष्य प्रवृत्ति होती है कि किसी भी तरह के बदलाव को खासतौर पर जिसमें काफी सारी हिम्मत और रिस्क शामिल हो तब उस काम को नहीं करने का ही मन बना लेता है. हालांकि करियर की बात हो या जिंदगी में कुछ नया करने की बात हो मन में शंका उठना स्वाभाविक है और उस शंका का निवारण भी हमें ही करना होता है. कुछ साथी ऐसे होते हैं जो अपनी बात पर कायम रहते हैं फिर चाहे सफलता मिले या असफलता वे सबकुछ अपने दम पर अपनी हिम्मत पर करने का माद्दा रखते हैं. जबकि कुछ साथी किसी अन्य द्वारा भी जरा सी शंका जाहिर करने पर अनिर्णय की स्थिति में आ जाते हैं जबकि वे स्वयं इस बात से आश्वस्त रहते हैं कि जो काम वे करने जा रहे हैं वह अ’छा है और ऐसा किया जाना चाहिए. परंतु केवल शंका भर जाहिर करने से सबकुछ मामला गड़बड़ हो जाता है.
गौरतलब है कि किसी भी कार्य को करने के पहले योजनाबद्ध तरीके से चलना चाहिए और सोच-समझकर कार्य करना ही चाहिए पर कई बार ऐसी परिस्थितियां आन पड़ती हैं जब सोचने-समझने का समय नहीं बल्कि केवल निर्णय लेना होता है ऐसे समय व्यक्ति की असल परीक्षा होती है. व्यक्ति परिस्थितियों से डर बहुत जल्दी जाता है और कई बार जरा सी प्रेरणा ही उसे इन विपरित परिस्थितियों से सामना करने की प्रेरणा भी दे देती है.
कम्युनिकेशन अपने आप में काफी बड़ा, विस्तृत और आकर्षक विषय है. समाज में विभिन्न स्तरों पर संवाद की जरूरत और किस प्रकार का संवाद होना चाहिए, इस पर कई बातें निर्भर करती हैं. कॉर्पोरेट वल्र्ड में भी कम्युनिकेशन पर काफी ध्यान दिया जाता है. कम्युनिकेशन में सकारात्मकता आपको घर से लेकर आपके ऑफिस में सहायक सिद्ध होगी. घर पर अगर आप परिवार के किसी सदस्य के साथ बातचीत कर रहे हैं और उसमें कोई बात आपको अच्छी नहीं लगी तब आप तत्काल उस पर प्रतिक्रिया देते हैं और टोक देते हैं. खासतौर पर जब बात युवा साथी की हो तब उसे टोकना जरूरी भी है ताकि वह अपने कम्युनिकेशन में बदलाव लाए, पर यहां भी बात सकारात्मकता की लागू होती है. अगर आपने डांट कर अपनी बात मनाने के लिए कोई बात कही तब कुछ भी नहीं होने वाला और हो सकता है कि अगली बार आप संवाद स्थापित करने का मौका ही छोड़ दे.
अगर बात कॉर्पोरेट वल्र्ड की है तब कार्यालयों में यह देखा जाता है, अगर कोई कर्मचारी समय पर नहीं आता है तब छुट्टी से लेकर नोटिस देने जैसे कितने ही कार्य होते हैं. एक कंपनी में तो देरी से आने वाले को सभी स्टॉफ के सामने डांटने जैसी परंपरा ही थी, परंतु इससे क्या व्यवस्थाओं में परिवर्तन लाया जा सकता है क्या? या फिर कम्युनिकेशन इसमें किस तरह का हो सकता है, इस बारे में विचार किया जाए. पॉजिटिव कम्युनिकेशन की बात की जाए तब कार्यालय में देरी से आने वाले कर्मचारी को इस बात के लिए प्रेरित किया जाए कि चलिए आज कोई समस्या होगी बावजूद इसके आप थोड़ा ही देर से आए. आप कल और जल्दी आ सकते हैं. हो सकता है कि इससे कर्मचारी के मन पर थोड़ा असर पड़े और वह जल्दी आने के लिए प्रेरित हो, जबकि दूसरी ओर अगर आपने उसे डांटा है तब उसका नकारात्मक असर ही पड़ेगा. वह ऑफिस में जल्दी जरूरी आएगा, पर अपना आउटपुट जैसा चाहिए वैसा नहीं देगा.
घर पर भी युवाओं या किशोरों से बातचीत के दौरान या सामान्य रूप से बातचीत के दौरान भी अगर आप किसी विवाद को समाप्त करना चाहते हैं तब बातचीत की शुरुआत जिन मुद्दों पर असहमति है उनसे न करके जिन बातों पर सहमति है, उससे करेंगे तब बात बनेगी जरूर. कॉर्पोरेट वल्र्ड में किसी भी उत्पाद या किसी अन्य कंपनी से डील करते वक्त इस बात का ध्यान रखा जाता है. दोनों साझा रूप से किन बातों पर सहमत हैं. एक बार हां की मुहर लग जाने के बाद अन्य बातें करने में आसानी हो जाती है. कॉर्पोरेट वल्र्ड में भावनाओं की कद्र थोड़ी कम ही होती है और खासतौर पर सेल्स के क्षेत्र में कंपनियों को टारगेट पूर्ण होने से मतलब होता है. इस कारण सॉरी की बात ही न कहें, बल्कि तर्क के सहारे अपनी बात रखें. जब घर की बात हो तब यही सॉरी सब कुछ हो जाता है. माता-पिता के सामने अगर आपने गलत बात बोल दी है और आपको सही मायने में पछतावा हो रहा है तब एक सॉरी से काफी बात बन सकती है, पर ऐसा नहीं है कि आप बार-बार सॉरी कहते रहें और गलतियां करते रहें. दोस्ती यारी हो या फिर कार्यालय में आपके किसी के साथ दोस्ताना तालुक हो. संबंधों में स्वच्छ और स्पष्ट संवाद जरूरी है और जब भी आपको लगे गाड़ी थोड़ी भी पटरी से उतर रही है तब स्वयं पहल कर संवाद स्थापित करने का प्रयत्न जरूर करें. संघर्ष के बिना जिंदगी जीना यानी बिना मेहनत के फल खाने जैसा है. संघर्ष युवा साथी को सोना बनाता है और जिंदगी की भट्टी में जब वह अनुभव के साथ तपता है तब जिंदगी का असल अर्थ उसे समझ में आता है. अनुभव का कोई विकल्प नहीं है, यह हम सुनते भी हैं और बात सही भी है. पर यह बात भी उतनी ही सही है कि अगर आप संघर्ष करना नहीं जानते तब जिंदगी में आगे बढऩे की ललक भी स्वयं में समाप्त कर देंगे.
जिंदगी में संघर्ष सभी स्तरों पर है और आपको किला सभी दूर लड़ाना पड़ता है. आप चाहे करियर की बात करें या नौकरी की या फिर स्वयं को आर्थिक रूप से मजबूत करने की बात हो बिना संघर्ष किए कोई भी मुकाम हासिल नहीं कर सकते. संघर्ष अपने साथ बहुत सारी बातें लाता है जिसमें मेहनत से लेकर विपरित परिस्थितियों से सामना करना भी शामिल रहता है.
हम अपना कार्य तो हमेशा ही बेहतरी से करने का प्रयास करते हैं, बावजूद इसके और भी अनेक लोग ऐसे हैं जिनके लिए हम कार्य कर सकते हैं. मेरे विचार से आदर्श शिक्षक और आदर्श विद्यार्थी दोनों में कुछ गुणों का होना जरूरी है. शिक्षा प्रणाली में समय के साथ निश्चित रूप से बदलाव हुआ है. आज अभिभावकों के साथ ही विद्यार्थी भी अपने करियर को लेकर खासे जागरूक हुए हैं. मगर सभी तक यह संदेश पहुंचाना जरूरी है कि करियर के लिए ज्ञान के साथ ही स्किल्स भी आवश्यक है. आजकल का विद्यार्थी हर चीज जल्दी पाना चाहता है. समर्पण और मेहनत की भावना उसमें कम हुई है. इसके लिए कुछ हद तक अभिभावक भी जिम्मेदार हैं. क्योंकि उन्होंने अपनी अपेक्षाओं का बोझ विद्यार्थियों पर लाद दिया है. ऐसा नहीं होना चाहिए. विद्यार्थियों के लिए यही कहूंगा कि सफलता के लिए समर्पण और मेहनत ही विकल्प है. इसलिए इससे न कतराते हुए अपने कार्य में आगे बढ़ें. सफलता देर से सही मगर मिलेगी जरूर. बिना मेहनत के सफलता नहीं मिल सकती. साथ ही विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ ही संस्कारों और सभ्यता का ज्ञान भी दिया जाए.

सक्सेस गुरु ए के मिश्रा
लेखक: चाणक्य आईएएस एकेडमी के निदेशक हैं